ऐसा भी होता है।
हमारे घर में बाहर बगीचा है। कभी क्भी पक्के स्थान पर छोटे छोटे सांप के बच्चे निकल आते हैं जो लहराते है । बड़े सॉंप भी जब तब निकल आते है । शाम को हम सब बाहर बैठे थे, मेरी बुआजी को बार-बार जाँघो के निचले हिस्से पर कुछ काटता सा चुभता सा लग रहा था। बार बार उन्होंने साड़ी, पेटीकोट झाड़ा कोई कीड़ा तो नहीं है। एक दो बार झटकारने के बाद ठीक लगने लगा तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि चींटी वगैरह होगी। दूसरे दिन स्नान के समय जब वे नहा रही थी तो फर्श पर उन्हें पाँच, छः इंच के आसपास पानी के साथ बहता भूरा सा सांप का बच्चा दिखाई दिया वो जोर से चीखीं । वह एक ओर जाकर वह टिक गया शायद दबने से मर गया था। वो कपड़े पहनकर जल्दी से बाहर आई उनकी चीख सुनकर सब आगये ‘हाय’ घास में से ये सांप का बच्चा चढ़ गया था । खेैर मर गया । पर घास में ध्यान से जाना अब इसे उठाकर जला दो हाय मैने सॉप मार दिया। बच्चा था जहर तो नहीं होगा पर था तो सॉंप बहुत पाप चढेगा’ उनका कहना चालू था । सब परेशान हो गये । मेरे भाई ने चिमटे से उसे उठाया और उजाले में लाया तो ठठाकर हंस पड़ा। किसी वृक्ष की आगे की डंडी थी। एक तरफ से पूँछ की तरह और दबने से पिचकने से साँप की तरह लग रही थी। टूटने वाले हिस्से में मुँह सा पिचका बन गया था । कच्ची डंडी थी सुुबह तक भूरी हो गई थी। और कुछ लहरदार सी बन गयी थी। उस दिन पेटीकोट मंे साँप कहकर सब हंसते रहे और बुआजी को चिढ़ाते रहे। ‘हाँ तो बुआ पंडित जी को सोने का सांप कब दे रही हो। ’
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