Sunday 19 May 2024

bhay ka bhoot

 भय का भूत

दरवाजा खोला कोई नही दिखा पता नही कौन था।‘ अरे माजी मैं हूँ माजी के पीछे से माली बोला आज गॉंव जा रहा हूँ इसलिये इस समय आ गया काम करने ठीक है ।’

‘ठीक है ’वैसे माली शाम को आता था। दो साल पहले पति गुजर गये थे ,तब से बिलकुल अकेली रहतीं थीं । बेटे ने बहुत कहा कि वो भी उनके साथ चलें । पर नही उनका मन नही करता था‘यहाँ अकेले भी मन लगा जाता है वहाँ तो मुझे जेल लगती है’। रिश्तेदार कहते कि क्यों अकेली रहती हो किसी भी दिन टें बोल जाओगी तो पड़ी रहोगी अकेली कोई देखने वाला भी नही होगा। 

‘मरे पीछे क्या? फिर तो मिट्ठी है पड़ा रहे या जले’ उन्हें पर विदेश के नाम से घबराहट होने लगती थी‘ यहाँ सब हैं तुम हो मोटू है सब आते जाते रहते है न फिर क्या परेशानी है ’राधा रानी कहती। उनका सुबह समय मन्दिर में बीत जाता शाम को सत्संग में। ताला लगा कर निकल जातीं वहाँ पर दस महिलाऐं मिल जाती कुछ देर गपशप हो जाती। 

‘सुना है भाभी उस घर में भूत है आपको डर नही लगता।’ मृदुला बहू कहती वह उसकी देवरानी लगती थी चचिया ससुर के बेटे की बहू ,‘मुझे तो कभी नही दिखा भूतबूत न कभी डर लगा।’ राधारानी हँस देती साथ ही कहतीं ‘भूत बूत कुछ नही होता सब मन का भ्रम है भूत तो अपने अन्दर होता है।’ 

‘नहीं भाभी सच में उस घर में छाया सी तो सबने देखी है पता नही कैसे आप रह लेती हो ’,मृदुला बोली ,‘राम राम राम मै तो पाँच मिनट भी नही रह सकती। ’

उस रात राधारानी आँख गड़ा गड़ा कर चारों ओर देखती रही पर उसे भूत नजर नही आया न जरा भी एहसास हुआ। पूर्णमासी निकली अमावस्या निकली पर नहीं भूत नही दिखां पर अब जरा से खटके पर वह चौंक उठती। वैसे भी जब बार बार सब कहते कि इत्ती बड़ी कोठी में डर नही लगता तो वह हँस देती कि कोई क्या ले जायेगा। जो भी लूटने आयेगा तो यह भी पता लगा कर आयेगा कि बुढ़िया के पास कुछ है कि नही। उसके पास पैसे भी तो नही रहते हैं। पर वास्तव में उसे डर नही लगता था। 

चालीस साल हो गये इस कोठी में रहते पता नही लोगों को यह भूत कहाँ से नजर आता है यह अलग बात है कभी दस कमरे की कोठी में से दसों कमरे मरे थे अब नौ कमरे बंद रहते हैं। राधारानी ने सत्संग से आकर कोठी खोली फिर अपने कमरे का ताला खोला न जाने किस किस को क्या दिखता रहता है वह बड़बड़ाने लगीं क्योंकि सत्संग उसके पास वाली कोठी की बड़ी बहू भी जाती थी। सुमित्रा कह रही थी ताई जी क्या कल कोई आया हुआ रात छत पर साया सा था । मुझे लगा कोई मिलने आया होगा नीचे कमरे की तो लाइट जल रही थी ।आप जग रही थी शायद यही कोई दस बज रहे होगें। 

‘पता नही वो तो नौ बजे तक खा पीकर सो गई थीं हाँ बाथरूम के लिये उठी थीं’ ‘होगा’ कहते हुए उन्होंने कमरा खोला हल्की सर्दी सी लगने लगी तो सोचा शॉल निकाल लू और उन्होने आलमारी खोली दो गोल गोल आँखे चमकी और उछलीं ‘भू  त’ वो चीख मारकर बेहोश हो गई जाने कब चूहा आलमारी में घुस गया था। 



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