61द्रोपदी रो रो करे पुकार आ जाओ द्वारका वासी युवंराज
पाचों पीतम मेरे बैठे कोई धीर नही देता है दुशासन
अब लाज बचाओ आय आ जाओ द्वारका वासी
सब सभा में राजा बैठे कोई नीति नही करता है
दुशासन चीर उतारे आ जाओ द्वारका वासी
सुन देर तुरत प्रभु आये अम्बर का ढेर लगाये
द्रोपदी कृष्णा कृष्णा गुन गाये आ जाओ द्वारका वासी
62
रथ साजो श्री भगवान द्वारका जइवे
काहे के चार पहिये लगे कोन गाय दुइ बैल
चन्दन काठ चार पहिये लगे है सुरही गइया दुई बैल
कोन रनिया असवार हुई हे कोन राजा गाड़ीवान
रूकमनि रनिया असवार हुई है कृष्णा राजा गाड़ी वान
जब जइवे द्वारका नाथ को दरशन करव छाप ले अइवे द्वारका
श्री द्वारका नाथ तुम्हें में बन्दउ वारम्वार
अम्वर का अम्वार लगा है
633द्रपद सुता की सुनी आपने करूणा भरी पुकार
अम्बर का अम्वार लगा है दुषासन गयो हार
कोरव के रख पुँज बने है पाडव के रखवार
गीता ज्ञान दियो अर्जुन को पाई विजय अपार तुम्हें बन्दउ
विप्र सुदामा को अपनायो दुख दिये सब वर
सुख सम्पत्ति के भरे भडारे दिया मुक्ति का द्वार तुम्हें
गज और ग्राह के फन्द छुड़ाये कोन्ही नहीं अवार
डूबत ब्रज को लियो बचाई नख पर गिरवर धार तुम्हें
सुर वर मुनि के भये सहाय भक्त के रखवार
दासी पर भी कृपा कीजे तकू में वार निहार तुम्हें
64विपत पड़ी शंकर पर भारी धरो भगवान वेा नारी
प्रकट भस्मा सुर वट रसा वीर प्रवल पर्वत आकार शरीर
गया कैलाश ईश के तीर लगा तप करन प्रसुर गंम्भीर
बीते सम्वत सात दिन किया कपट से ध्यान
जगी समाधि शिव भोला की कहा मांग वरदान
असुर धर शिव चरणों में साथ कहावर दीजिये भोलानाथ
धरू जिसके मस्तक पर हाथ भस्म हो जाय वही एक साथ
एव वस्तु शंकर कही उठा असुर हर वाय
धाया हाथ धरन शंकर पर वर निश्चय हो जाय
फिरत भोला भागे ससारी धरो .............
कृष्णा करूणा निधान सुर भूप धरो प्रभु पार्वती का रूप
पहन चून्दण चादर सा रूप किया नख सिख श्रंगार अनूप
गज गामिन भामिन चली दामिन देख लजाय
चंचल चपल चनुर एक सुन्दर नैनो सेन चलाय
मोहनी निश्चर पर डारी धरो ..............
गई भामिन भस्मासुर पास कहे सब हम तुम करे निवास
छोडो जप भोला तपसी की पास करव हिलमिल निवास कैलाश
नाच दिखाओ तुम हमें कि जैसे नाचे ईश
एक हाथ से भाव न ताजो एक हाथ धरो शीश
लगा नाचन गई मीत भारी धरो ....................
हाथ जब सिर पर वो लाया भस्म हो गया न कुछ पाया
कृष्णा तुम्हारी अपार माया किया जिन वैसा उन पाया
विश्व मोहनी रूप की प्रस्तुति करे महेेश
कमला पति ध्वनि निरख मनोहर गावे रूमाल गनेश
65बद्रीनाथ तेरी कठिन चढ़ाई जरा धोके मे आ गई रे
आ मेरी बरजेवाप मेरा वरजे वरजे सगा मेरा वीर
सास मेरी वरजे ससुर मेरा वरजे ननदिया का वीर
पाँच रूपय्या खरच को वाधे वाह में एक डाला मुनाय
गोरी कुडं तप कुड न्हाय नाख कुंड नहाय
जब पेड़ों ने सुफल बुलाया बद्रीनाथ अब राखो लाज
खोलो किवाड़ दरश दिया जन को तुमरे चरणा चल लाय
जब पड़ो ने सुफल कुलाच बद्रीनाथ अब राखो लाज
ऊचें ओर नीचे पहाड़ वने हे वरफी में दिया वोराय
कैलाशी काशी के वासी हर हर विश्व नाथ श्ंाभो
कर डमरू त्रिशूल विराजे तीन नेत्र सुन्दर सुख साजे
मस्तक चन्द्र विराजे हर हर महादेव गंगे
नन्दी वाहन की असुरारी वाये अंग गिरिराज दुलारी
गण पति गोद विराजे हर हर विश्वनाथ गंगे
गले बीच मुंडांे की माला गले नाग लिपटाये काला
सिंगी नाद बजावे हर हर महादेव गंगे
66
ऐसे मन होय करूँ में फिर फेरा
बद्रीनाथ केदार के दर्शन नर नारायन तेरा
जगन्नाथ बलभद्र सहोद्रा चार दिनो का मेला
आते कल द्वारका के दर्शन शरणा गहू में तेरा
गया गजाधर बेनी माधव हरिद्वार का मेला
चन्द्र सखी मन वालश्याम छवि हरि चरणों का चेला
67मैं तो उन दासो का दास जिन्होने मुझे मोह लिया
पृथ्वी दान लेन के कारण लियो बह्ना का रूप
वन वन पड़ो पहरवा मोकू राजा वील के द्वार
शिवरी गिद्व अजामील मोहे मोहे सदन कसेरू
सुआ पढ़ावति गणिाका मोही मोही मीरा बाई
तीन मुठी तन्दुल के कारणा लियो सुदामा मोल
तीन लोक की सकल सम्पदा भक्ति दई अनमोल
68बद्री विशाल लाल बेड़ा पार करेगें
अपना नही दम तो पहाड़ चड़ेले
पैसा भी नही पास जो छप्पन करेगें
लुटिया भी नही पास जो जलपान करेगें
कम्बल भी नही पास जो आराम करेगें
नारद कुंड गोरी कुंड खूब नहायेगें
तपतर कुडं नहाय बद्री आप मिलेगें
करके दयाल दया बद्री आप मिलेगें
69तुमें ढूढं मैं नाथ पहाड़न में तुम्हें ढढू केदार पहाड़न में
अलक नन्दिनी जोर बहुत है मेरा जियरा उलझ गया कगार न में तुम्हें
जगंल जंगल में ढूढ आई मेरा चीर उलझ गया झाड़न में तुम्हें
जगन्नाथ जी पुरी विराजत बद्रीनाथ हिवाइन में
रामेश्वर द्वारका के दरशन तीरथ चारो धामन में तुम्हें
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दुखियों के दुख दूर करे जय जय श्री कृष्णा हरे
जब चारों तरफ अधियारा हो आशा का दूर किनारा हो
जब कोई न खेवन हारा हो तब तू ही बेड़ा पार करे
जय जय श्री कृष्णा हरे
तू चाहे तो सब कुछ करदइे विष को भी तू अमृत कर दे
पूरन करदे उसकी आश्शा जो भी तेरा ध्यान धरे
जय जय श्री कृष्णा हरे
जो शरणा तुम्हारी आ जावे भव सागर से वह तर जाने
बस जो भी तेरा ध्यान धरे उन सब का तू कल्याण करे
जय जय श्री कृष्णा हरे
तुम आप दया के सागर हो मन मोहन बढ़कर नागर हो
मुरली धर तेरा गुणा गान करे जय जय श्री कृष्णा हरे