44मीरा जी तेरो कहा लागे गोपाल
सखी री मेरो प्रीतम नंद को लाल
साँप पिटारा भेज्यो राणा दे ओ मीरा के हाथ
न्हाय धोय जब पूजन लागी है गये सालग राम मीरा
जहर का प्याला भेज्यो राधा दो मीरा के हाथ
चरणा धोय चरणामृत लीन्हों हे गये अमृत राज मीरा
राणा खड़ा सूतजी लिये दऊँ मीरा को मार
तेरे मारे मरे न मीरा राखन हारों करतार मीरा
45
तेरे मन्दिर में ऐ मोहन मैं क्या क्या ले के आई हूँ
तुम्हें अपना बनाने को मैं क्या क्या ले के आई हूँ
मैं निर्धन हूँ भिखारी हूँ मुझे मत भूलना भगवान
तुम्हारी पूजा करने को में तुलसी पत्र लाई हूँ
अगर डूबी भवर में नाव तो इसमें है हँसी तेरी
यह डूबी नाव को अपने, खिवैया ले के आई हूँ
मुझे अभिमान है तेरा खड़ी हूँ द्वार पर तेरे
तुम्हें अपना बनाने को मैं तुलसी पत्र लाई हूँ
46गोविन्द हरे गोपाल हरे गोबर धन धारी श्याम हरे
गोपाल मुरारी जगधारी माधव मुकुन्दा जय जय जय
भव बन्धन जय रघुनन्दन जय वेकुन्ठ निवासी जय जय जय
वो भाग्यवान नर होता है भूले से जो भज लेता है
वह यम यमपुर यम दूतों को ललकार चुनोती देता है
गोविन्द हरे ..............................
47भगवान तुम्हारे दरशन को एक दरश भिखारी आया है
भगवान के दरशन भिक्षा को दो नैन कटोरे लाया है
चलो श्याम चले बीजनपुर करताल पे बाजी बासुरिया
मन कामना रूपिन गोपिन संग मधुवन में रास रचाया है
एक प्रेम के सुन्दर मण्डप में दिन रात युगल जोड़ी झूले
भगवान तुम्हारे झूलन को आशाओं का बाग लगाया है
तुम मुझमें रहो मैं तुममें रहूँ पूरणा हो मेरी अभिलाषा
तुम एक अनेक हो मन मोहन संसार में जिया भरमाया है
48जीवन का मैने सोंप दिया सब भार तुम्हारे हाथों में
उद्वार पतन अब मेरा हो सरकार तुम्हारे हाथों में
हम तुमको नही कभी भजते फिर भी तुम हमें नही तजते
अपकार हमारे हाथों में उपकार तुम्हारे हाथेां में
हममें तुममें बस भेद यही हम नर हैं तुम नारायण हो
हम हैं संसार के हाथों में ससांर तुम्हारे हाथों में
कल्पना बनाया करते हैं एक सेतु विरह सागर में
जिससे हम पहुँचा करते हैं भगवान तुम्हारे हाथों में
हम बिन्दु कह रहे हैं भगवान हम नाव विरह सागर में हैं
मझधार हमारे हाथों में पतवार तुम्हारे हाथों में
49पार्वती गनेश लाल को हँस हँस गोद खिलावत है
ले अमृत मुख धोय लाल को उपर खेस चढ़ावत है
पीले लाल उजल रंग वत्सर चुन चुन के पहनावत है
मोती चूर मगध के लड्डू अपने हाथ खिलावत हैं
मूसा घेर लियो पर्वत पर लाल के वान वनावत है
श्याम सखी पर किरपा कीजे दरशन दे अपनावत है
50गनपत चलो हमारे संग
बलदाऊ भय्या खड़े बुलावे श्री कृणा जोंड़े हाथ
धूप दीप ने वेद्य आरती गल फूलों के हार
पान सुपारी ध्वजा नारियल हरी दूब चड़ाऊँ
मोती चूर मगध के लड्डू भर लड्डू के थाल
सवा मन का करे जो कलेवा जीमों बरात के साथ
रूक्मण व्याह के घर ले आये हो रहे मगंल चार
चन्द सखी मज वाल श्याम छवि सुफल भये सब काज
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