Saturday, 19 July 2025

Bhajan

 44मीरा जी तेरो कहा लागे गोपाल 

सखी री मेरो प्रीतम नंद को लाल 

साँप पिटारा भेज्यो राणा दे ओ मीरा के हाथ 

न्हाय धोय जब पूजन लागी है गये सालग राम मीरा 

जहर का प्याला भेज्यो राधा दो मीरा के हाथ 

चरणा धोय चरणामृत लीन्हों हे गये अमृत राज मीरा 

राणा खड़ा सूतजी लिये दऊँ मीरा को मार 

तेरे मारे मरे न मीरा राखन हारों करतार मीरा 

45

तेरे मन्दिर में ऐ मोहन मैं क्या क्या ले के आई हूँ 

तुम्हें अपना बनाने को मैं क्या क्या ले के आई हूँ 

मैं निर्धन हूँ भिखारी हूँ मुझे मत भूलना भगवान 

तुम्हारी पूजा करने को में तुलसी पत्र लाई हूँ 

अगर डूबी भवर में नाव तो इसमें है हँसी तेरी 

यह डूबी नाव को अपने, खिवैया ले के आई हूँ 

मुझे अभिमान है तेरा खड़ी हूँ द्वार पर तेरे 

तुम्हें अपना बनाने को मैं तुलसी पत्र लाई हूँ 

46गोविन्द हरे गोपाल हरे गोबर धन धारी श्याम हरे 

गोपाल मुरारी जगधारी माधव मुकुन्दा जय जय जय 

भव बन्धन जय रघुनन्दन जय वेकुन्ठ निवासी जय जय जय 

वो भाग्यवान नर होता है भूले से जो भज लेता है

वह यम यमपुर यम दूतों को ललकार चुनोती देता है 

गोविन्द हरे ..............................


47भगवान तुम्हारे दरशन को एक दरश भिखारी आया है 

भगवान के दरशन भिक्षा को दो नैन कटोरे लाया है

चलो श्याम चले बीजनपुर करताल पे बाजी बासुरिया 

मन कामना रूपिन गोपिन संग मधुवन में रास रचाया है

एक प्रेम के सुन्दर मण्डप में दिन रात युगल जोड़ी झूले 

भगवान तुम्हारे झूलन को आशाओं का बाग लगाया है

तुम मुझमें रहो मैं तुममें रहूँ पूरणा हो मेरी अभिलाषा 

तुम एक अनेक हो मन मोहन संसार में जिया भरमाया है


48जीवन का मैने सोंप दिया सब भार तुम्हारे हाथों में 

उद्वार पतन अब मेरा हो सरकार तुम्हारे हाथों में 

हम तुमको नही कभी भजते फिर भी तुम हमें नही तजते 

अपकार हमारे हाथों में उपकार तुम्हारे हाथेां में 

हममें तुममें बस भेद यही हम नर हैं तुम नारायण हो 

हम हैं संसार के हाथों में ससांर तुम्हारे हाथों में 

कल्पना बनाया करते हैं एक सेतु विरह सागर में 

जिससे हम पहुँचा करते हैं भगवान तुम्हारे हाथों में 

हम बिन्दु कह रहे हैं भगवान हम नाव विरह सागर में हैं

मझधार हमारे हाथों में पतवार तुम्हारे हाथों में 



49पार्वती गनेश लाल को हँस हँस गोद खिलावत है

ले अमृत मुख धोय लाल को उपर खेस चढ़ावत है

पीले लाल उजल रंग वत्सर चुन चुन के पहनावत है

मोती चूर मगध के लड्डू अपने हाथ खिलावत हैं

मूसा घेर लियो पर्वत पर लाल के वान वनावत है

श्याम सखी पर किरपा कीजे दरशन दे अपनावत है


50गनपत चलो हमारे संग 

बलदाऊ भय्या खड़े बुलावे श्री कृणा जोंड़े हाथ 

धूप दीप ने वेद्य आरती गल फूलों के हार 

पान सुपारी ध्वजा नारियल हरी दूब चड़ाऊँ

मोती चूर मगध के लड्डू भर लड्डू के थाल

सवा मन का करे जो कलेवा जीमों बरात के साथ 

रूक्मण व्याह के घर ले आये हो रहे मगंल चार 

चन्द सखी मज वाल श्याम छवि सुफल भये सब काज 




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