Saturday, 5 July 2025

Bhajan mala

 21ये कंचन का मृग नाथ मुझे लगता प्यारा है

मोतिन सीग जड़े अति सुन्दर रतन जटिल सब अंग मनोहर

चलता चंचल चाल वहाँ ने आप सवाँरा है ............

महाराज अब ऐसा कीजे मृग चर्म मुझे ला दीजे

त्रिभुवन पति भगवान मान लो वचन हमारा है ..............

इतना सुन सीता की बानी उठे राम सब कारज जानी

एक हाथ तरकश लिये दूसरे धनुष सवाँरा है...............

आगे आगे मृगया जाये पाछे से धाये रघुराई 

एक वाण जब तान मिरग के उर में मारा है.............

गिरा धरन पर घोर चिकारा हा सीता लखन पुकारा

कोमल चित भगवान आपके धाम सिघारा है ..........

हा हा कर सुनी जब सीता कह लक्ष्मन परम समीता 

तुम्हारे भ्रात पर विपत पड़ी जाओ देओ सहारा हैं............

इतनी सुन सीता की बानी कह लक्ष्मणा सुन भात भवानी

त्रिभुवन पति भगवान उन्हें कोन मारन वाला है

क्रोध वन्त सीता उठ वोली हरि इच्छा लक्ष्मणा मति डोली.....

राम रेख खीच कर चला रघुवंश कुमारा है

तुलसी दास ऐसे रघुराई विपत पड़े तब होय सहाई 

त्रिभुवन पति भगवान उन्हें कोन मारन हरा है 

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22मेरी छोटी सी ये नाव तेरे जादू मरे पाँव 

मोहे डर लागे राम कैसे बिठाऊॅं तुम्हें नाव में 

जब पत्थर से हो गई नारी यह लकड़ी की नाव हमारी

करूँ यही रोजगार पालू सब परिवार सुनो सनी दाता कैसे

प्रभु एक बात मानो बिठाऊँ तेरे चरणो की धूल धुलाऊँ 

मेरो सशंय हो जाय दूर अगर तुम्हें हो मंजूर 

तभी बिठाऊॅं तुम्हें नाव में

चरणा बड़े प्रेम से धोये सब पाप जन्म के खोये

हुआ बड़ा ही प्रसन्न संग सिया लखन किये राम 

दरशन आओ बिठाऊँ तुम्हें नाव में.............

चरणा मृत में सबको पिलाऊँ तुम्हें प्ष्ुपों की भेट चढ़ाऊँ

ऐसा समय बार बार नहीं आता सरकार अब तो ..........

वह धीरे से नाव चलाता वह गीत खुशी के गाता 

सोचे यही मन में सूरज डूबे छिन में नही जाय 

वन में बैठे रहे मेरी नाव में मेरी ..............

ले लो मल्हाह उतराई मेरे पल्ले नहीं एक पाई 

करलो यही स्वीकर मेरा होगा बेड़ा पार 

तेरी होगी जय जय कार बैठे आये हैं तेरी नाव में ........

जैसे खिवैया प्रभु तुम हो वैसे खिवैया प्रभु हम हैं

हमने किया नदी पार करना भव सागर से पार 

कमल चढ़ाऊँ तुम्हें नाव में मेरी  


भुवन पर आवत धनुष धरे 

सीता राम लक्ष्मणा भरत शत्रुधन इनमें राम बड़े...

रामचन्द्र चढ़ हाथी आवे हनुमत चंवर धरे

पीताम्बर की कछनी काछे गल जयमाल धरे....

धन्य माग राजा दशरथ के आरति करत खड़े 

अपने मन्दिर से निकली जानकी मुतियन माँग मरे.....

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23काले नाग के नथेया 

दूर खेलन मत जाओ प्यारे ललना मारेगी काहू की गैया 

कहत जसोमति सुनो कन्हेैया तुमको कंस मरेया 

कहत श्याम जी सुन मोरी मय्या हमको कौन मरय्या 

खेलत गेंद गिरी जमुना में कुद पड़े कन्हैया 

नाग भी सोवे नागिन विनिया डुलावे ऐ फन पे नाचे कन्हैया 

नाग नाथ जब बाहर आये जसुमत लेत बलैया।

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24ऐ श्याम सलोना लिये दोनां माँगे दान दही का 

कहाँ की हो तुम सुघड़ ग्वालनी कहाँ तुम्हें है जाना

बरसाने की सुघड़ ग्वालिनी गोकुल हमें है जाना

जो कान्हा तुम्हें दहिया का शौक है तोड़ लाओ पाता बनाय लेओ दोना 

चार कोने का बना है दोना खाली हो गई मटकी भरा नही दोना 

वृन्दावन की कुँज गलिन में पकड़ लियो साड़ी का कोना

जो बात कान्हा तेरे मन में बंसत है वही बात नही होना

चन्द्र सखी भजवाल श्याम की मन में बसे मन मोहना।

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25मेरो मन लागा फकीरी में

हाथ में कूड़ी बगल में सोठा, चारों मुल्क जगीरीे में 

जो सुख है हरि नाम भजन में सो नही भोज अमीरी में 

भाई बन्धु और कुटुम्ब कबीला, बंध्यो है मोह जंजीरो से 

प्रेम नगर में रैन हमारी भील वीन आई सबूरी में 

आखिर ये तन खाक मिलेगा क्यों फिरता मगरूरी में 

भली बुरी सबही सुन लीजे कर गुरजान गरीबी में 

कहत कबीर सुनों भई साधो प्रभु जी मिले सबूरी में 

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26गुरू 

बिना गुरू किये निस्ताव न होयगा।

तू तो कहे मेरे महलदुमहला इसमें तेरा गुजारान दोयगा

तू तो कहे मेरे कुटुम्ब बहुत है इस पर तेरा गुजारा न होयगा

गहरी नदिया नाव पुरानी इसमें तेरा उवार न होयगा

कहत कबीर सुनो भई साधो मानुष तन दुवातन  होयगा।

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27आज हमारे आये गुरूजी

चरण धोय गुरू आसन दोन्हा सिघासन पधरावे गुरूजी

धूप दीय नेवेधे आरती पुष्प मालपहिराये गुरूजी

पाँच बेर परिक्रमा करके चरगो शीष झुकाये।

कहत कबीर सुनो भई साधो आवागमन मिटाये गुरूजी।

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27गुरू चरणा मिले बड़े भाग्य से 

अपने गुरूजी को भोजन कराऊ रामा सिघासन पधराये गुरूजी

अपने गुरूजी को सारी मगाई राया जल मगवाया हरिद्वार से गुरूजी

अपने गुरूजी को विडिया मगाई रामा इलायची मगाई बड़ी दूर से 

अपने गुरूजी की सेज विछाई रामा फूल मगाये चम्पा बाग से 

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गुरू

28हे मेरे गुरू देव करूणा सिन्धु करूणा कीजिये

हूँ अधम आधीन अशरणा अब शरणा में लीजिये

खा रहा गोते हूँ मैं भव सिन्धु के मझधार में 

आसरा है दूसरा कोई न अब संसार में 

हे मेरे गुरूदेव करूणा सिन्धु करूणा कीजिये।

मुझमें है जप तप न साधन और नही कुछ ज्ञान है.......

निर्लज्जता है एक बाकी और बस अभिमान है .....

पाप बोझ से लदी नैया भँवर में आ रही

नाथ दोड़ो अब बचाओ जल्द डूबी जा रही है

आप भी यदि छोड़ देगें फिर कहाँ जाऊँगा में

जन्म दुख से नाव कैसे पार कर पाऊँगा में है.......

सब जगह भजुंल भटक कर ली शरणा अब आपकी

पार करना या न करना दोनों मर्जी आपकी है......

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