भारत का आम नागरिक साधारण वस्त्र पहनता है शहरों में वस्त्र विन्यास अवश्य कुछ बदल गया है। पर गाँवों का वस्त्र विन्यास वही है साधारण कपड़े हॉं गाँव की लड़किया शहर में आकर सलवार सूट पहनने लगी है। चेहरा मोहरा साफ रखकर सज कर रहती हैं। उन्हें आप पहचान नही सकते किस वर्ग से है यदि बाल्मीकि वर्ग से थी तब उनका पहनने के वस्त्र अलग होते थे झाड़ू डलिया हाथ में होती थी लंहगा फरिया ही आमतौर पर पहनती थी अब उनको पहचानना मुश्किल हो गया है ऐसे में दलित का बिल्ला लेकर चले वही व्यक्ति पहचाना जा सकता है या आपको मालुम है कि फला व्यक्ति दलित है।
☺दलित में भी स्पर्श्य और अस्पर्श्य अलग अलग है देखने में सब एकसे तब मंदिरों में भीड़ में कौन जा रहा है कौन दर्शन कर रहा है कैसे पंडे पुजारी इस बात को कह सकते हैं कि उनके मंदिर में यदि अस्पर्श्य घुस जाता है तो मंदिर को गंगा जल से धोते हैं उस गंगाजल से जिसमें स्वयं स्पर्श्य अस्पर्श्य सबका मल बहता है गंगाजल को शुद्व कैसे कह पाते हैं जब उसमें सैंकड़ो लाखों स्नान करने वालो के शरीर का मल वह रहा है उस शुद्व कैसे कह सकते हैं उसे किससे धोयेंगे। लेकिन गंगा के प्रति श्रद्धा है तो वह पाप हारिणी कलुष निवारिणी है ।
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