8हे मेरे गुरू देव करूणा सिन्धु करूणा कीजिये
हूँ अधम आधीन अशरणा अब शरणा में लीजिये
खा रहा गोते हूँ मैं भव सिन्धु के मझधार में
आसरा है दूसरा कोई न अब संसार में
हे मेरे गुरूदेव करूणा सिन्धु करूणा कीजिये।
मुझमें है जप तप न साधन और नही कुछ ज्ञान है.......
निर्लज्जता है एक बाकी और बस अभिमान है .....
पाप बोझ से लदी नैया भँवर में आ रही
नाथ दोड़ो अब बचाओ जल्द डूबी जा रही है
आप भी यदि छोड़ देगें फिर कहाँ जाऊँगा में
जन्म दुख से नाव कैसे पार कर पाऊँगा में है.......
सब जगह भजुंल भटक कर ली शरणा अब आपकी
पार करना या न करना दोनों मर्जी आपकी है......
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29 दिखा दे रूप ईश्वर का मुझे गुरूदेव करूणा कर
कोई बैकुन्ठ के ऊपर कोई कैलाश पर्वत में
कोई सागर के अन्दर में बता दे सोया शय्या पर
कोई दुर्गा गजानन को कहे जगदीश सूरज को
कोई सब सृप्री का कर्त्ता चतुमुर्ख देव परमेश्वर
धरे नित ध्यान योगी जन कोई निर्गुणा निरजंन का
कोई मूरत पुजारी है कोई अगनी के हैं चाकर
सकल संसार में पूरसा कहे वेदांत के वादी
वो बह्नानन्द संशय को मिटाकर तार भव सागर
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30गुरू हमें दे गये ज्ञान गुदड़िया
खाने को एक वन फल देगे पीने को दे गये एक तुगड़िया
बैठक को एक आसन देगें सोवन को एक काली कमरिया
राम भजन को तुलसी की माला भजन करन को दे गये खंजड़िया
कहत कबीर सुनो भई साधो हरि के दरश की में हो गई चेरिया
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31गुरू पइया लागू राम से मिलाय दीजो रे
बहुत दिनन से सोवे मेरा मनवा भज की बेरिया जगाय दीजो रे
विष से भरे पड़े घर भीतर अमृत बूद चुआय दी जो रे
रत अधियारी मेरे घर भीतर दीपक ज्योति जलाय दीजो रे
कहत कबीर सुनो भई साधो आवाागमन मिटाय दीजो रे
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32दिवस शुभ जन्में का आया बधाई है बधाई है
सुयश गुरूदेव का छाया बधाई है बधाई है
हरा है कट भक्तों का तभी भगवान कहलाये
आनन्द जग बीच है छाया बधाई है बधाई है
पढ़ाया पाठ सत्संग का जलाया ज्ञान का दीपक
सुकृति का छत्र फहराया बधाई है बधाई है
घटाकर मान खल दल का पढ़ाया ज्ञान गीता का
सभी ने हर्ष गुन गाया बधाई है बधाई है
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