Thursday, 10 July 2025

braj ke bhajan

 9 दिखा दे रूप ईश्वर का मुझे गुरूदेव करूणा कर 

कोई बैकुन्ठ के ऊपर कोई कैलाश पर्वत में 

कोई सागर के अन्दर में बता दे सोया शय्या पर 

कोई दुर्गा गजानन को कहे जगदीश सूरज को 

कोई सब सृप्री का कर्त्ता चतुमुर्ख देव परमेश्वर 

धरे नित ध्यान योगी जन कोई निर्गुणा निरजंन का 

कोई मूरत पुजारी है कोई अगनी के हैं चाकर 

सकल संसार में पूरसा कहे वेदांत के वादी 

वो बह्नानन्द संशय को मिटाकर तार भव सागर 

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30गुरू हमें दे गये ज्ञान गुदड़िया 

खाने को एक वन फल देगे पीने को दे गये एक तुगड़िया 

बैठक को एक आसन देगें सोवन को एक काली कमरिया 

राम भजन को तुलसी की माला भजन करन को दे गये खंजड़िया 

कहत कबीर सुनो भई साधो हरि के दरश की में हो गई चेरिया 

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31गुरू पइया लागू राम से मिलाय दीजो रे 

बहुत दिनन से सोवे मेरा मनवा भज की बेरिया जगाय दीजो रे 

विष से भरे पड़े घर भीतर अमृत बूद चुआय दी जो रे 

रत अधियारी मेरे घर भीतर दीपक ज्योति जलाय दीजो रे 

कहत कबीर सुनो भई साधो आवाागमन मिटाय दीजो रे 

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32दिवस शुभ जन्में का आया बधाई है बधाई है

सुयश गुरूदेव का छाया बधाई है बधाई है

हरा है कट भक्तों का तभी भगवान कहलाये

आनन्द जग बीच है छाया बधाई है बधाई है

पढ़ाया पाठ सत्संग का जलाया ज्ञान का दीपक

सुकृति का छत्र फहराया बधाई है बधाई है 

घटाकर मान खल दल का पढ़ाया ज्ञान गीता का 

सभी ने हर्ष गुन गाया बधाई है बधाई है ☺





सतगुरू 

33सतगुय पिया मोरी रंग दे चुंदरिया 

रंग दे रंगा दे मोल मंगादे दया धर्म की लगी वजरिया

सत्य धर्म की चुनरी रंगा दे दया धर्म की डाली बुन्दकिया 

ऐसी चुन्दरी प्रभुजी रंगा दो धोवी धोवे चाहे सारी उमरिया 

जब में चुन्दरी ओड़ के बैठी दया धर्म की लागी नजरिया

कहत कबीर सुनों भई साधो हरि चरनन की हो जँाऊ दसिया 


34अगर सतगुरू जी हमें न जगाते 

तो सतसंग की गंगा में हम कैसे नहाते

जो उपदेश साबुन को हम न लगाते 

तो शान्ति सफाई को हम कैसे पाते अगर 

भक्ति के लोटे में भर कर गंगा जल

तो विश्वास चन्दन की बिन्दी न लगाते अगर 

सुमरिन की साड़ी वो हमको पहिनाते 

तो शन्ति के मूरत में हम कैसे आते

वो सोहन सोहन कहते जगाते

तो मुवित की डोली में हम कैसे जाते

ये गुरू की मदद हो और प्रभु की कृपा हो 

तो संसार सागर से हमको छुड़ाते अगर 

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35दरशन कर लीजे जन्म सुधारे मगंला आरती

पहली झाँकी गजानन्द की गबरी पुत्र मनाय

ऋद्धि सिधि संग मे बैठी लड्डू का भोग लगाय 

दरशन ......................

दूजी झाँकी कृपा चन्द्र की करलो चित्त लगाय 

मोर मुकुट पीताम्बर सोहे गल फूलों के घर 

दरशन ...............................

तीजी झाँकीं राम चन्द्र की शोभा वरन न जाय 

शीश मुकुट कानों में कुण्डल धनुष वाण लिये हाथ 

दरशन .........................

चोथी झाँकी चार भुजा की करलो चित्त लगाय 

सबरी दुनिया दरशन को धावे कर दिया बेज पार 

दरशन .........................

पाँचई झाँकी द्वारकानाथ की शोभा वरन न जाय 

रेल पेल से दरशन दीजो मीरा के महाराज 

दरशन ..................

छटई झाँकी मोर मुकुट की शोभा वरन न जाय 

तुलसी दल चरणामृत ले के रोग धोग सब जाय

सातई झाँकी जगन्नाथ की करलो चित्त लगाय

छप्पन भोग छत्तीसो व्यंजन प्रेम से भोज लगाय 

आठई झाँकी बद्री विशाल की करलो चित्त लगाय 

ऊँचे नीचे पर्वत चढ़कर तपत कुइ मेरो नाहाय 

नोई झाँकी हनुमान की शोभा वरन न जाय 

लाल लगोहे सोटे वाले गदा लिये है हाथ 


36खड़े हम दर पर दरशन को खबर कर दो रघुन्नदन को 

यद्यपि आपने कृपा कर दिया रूप धनवान 

किचिंत भक्ति के बिना सब ही है वेकाम 

करूँ क्या लेकर इस धन को खबर ...........

खेल तमाशे में सदा दौड़ दौड़़ मन जाय 

भजन भयंकर सा लगे बुद्धि भृष्ट हो जाय 

कहाँ तक रोऊ इस मन को खबर 

लख चौारासी योनि में नाना कष्ट उठाय 

जियन मरण से है दुखी पड़े शरण में आय 

झुकाये हुये हैं गरदन को खबर .....

पापों से नइया भरी डूब रही मॅंझधार 

कुछ डूबी डूबन चली राम नाम आधार 

लगा दो बेड़ा पार इसको खबर ...........


37भगवान तुम्हारे दरशन को उन्मत भिखारिन आई है

चरणों में अर्पित करने को व्याकुल उर अन्तर लाई है

निठुर जग के बन्धन में फँस पहचान न पाई थी तुमको 

अपनों ने भी ठुकराया जब तब ज्ञात हुआ तेरा मुझको 

निज घर को भी तज अब तुझसे ही अपना कहलाने आई हूँ 

भगवान दरशन ...............

ले भव्य भावना का दीपक स्नेह भरा तन मन धन से 

बाती की हूँ समता किससे बह स्वंय बनी अपने पन से 

खारे आँसू के मोती की जय माला पिरो कर लाई हूँ 

भगवान दरशन ................

मुख पर उसके जो झलक रही जो भरी ह्नदय में विरह व्यथा 

ऐसा भी कोई मिला नही जो सुनते उसकी करूणा कथा 

युग युग सचितं करके ही मैं यह भेट चढ़ाने आई हूँ 

भगवान दरशन ....................................

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38निर्बल के प्राण पुकार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

सासों के स्वर झनकार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

आकाश हिमालय सागर में पृथ्वी पाताल चराचर में 

यह मधुर बोल गुंजार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

जब दया दृष्टि हो जाती है जलती खेती हरियाली है 

इस आस पर जन आधार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

सुख दुखों की चिन्ता है ही नही भय है विश्वास न जाय 

टूटे न लगा यह तार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

तुम हो करूणा के धाम सदा सेवक है राधेश्याम सदा 

बस इतना सदा विचार रहे जगदीश हरे जगदीश हरे 

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39पितृ मात सखा एक स्वामी सखा तुम ही एक नाथ हमारे हो 

जिनके कहु और आधार नहीं उनके तुम ही रखवारे हो 

प्रतिपाल करो सगरे जग अतिशय करूणा उर धारे हो 

भूल है हम ही तुमको तुमसे हमरी सुधि जाहि विसारे हो 

शुभ शान्ति निकेतन प्रेम निधे मन मन्दिर के उजियारे हो 

उपकारन लो कहु अन्त नहीं छिन ही दिन जो विस्तारे हो 

महाराज महा महिमा तुम्हरी समझे विरले बुधिवारे हो 

इस जीवन के तुम जीवन हो इन प्रानन के तुम प्यारे हो 

तुमसे प्रभु पाय प्रताप हरी कोह के अब और सहारे हो 

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40दया निधि तेरे दर को छोड़ कर किस दर जाऊँ मै। 

सुनता मेरी कोन है जिसे सुनाऊँ मेै। 

जब से याद भुलाई तेरी लाखों कष्ट उठाये हैं 

ना जानू या जीवन अन्दर कितने पाप कमायें हैं

हूँ शरमिन्दा आपसे क्या बतलाऊ में दया निधि ....

तुमतो संत जनों के स्वामी तुमको सब फरमाते हैं

ऋषी मुनि और योगी सन्त तुमरा ही यश गाते हैं 

छीटां दे दो ज्ञान का क्या बतलाऊँ में दया निधि ....

ये तो मेरे पाप कपट हैं पास न आने देते हैं 

जो में चाहूँ मिलूँ आपसे दरशन पाऊँ में दया निधि ....

बीती है सो बीती स्वामी बाकी उमर सवाँरू में 

चरणो के ढिग बैठ आपके गीत प्रीत कके गाँऊ में 

छीव दे दो ज्ञान का होश में आऊँ में दया निधि ...

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