Friday, 10 January 2025

bhajan brij 15

 हम परेदशी फकीर कोई दिन याद करोगे

रमता राम फकीर कोई दिन याद करोगे

माय भी छोड़ी बाप भी छोड़ा छोड़ा है सकल शरीर

महल भी छोड़ा दुमहला भी छोड़ा है सकल जगीर

हाथ में कूड़ी बगल में सोटा घोटगें गोमती के तीर 


देवी जी

हँस पूछे श्री भगवान शारदा के बहिनी

एक बहिनी बम्बई में बसत है मुम्बा देवी उसका नाम 

एक बहिनी कलकत्ता बसत है काली मइया उसका नाम 

एक बहिनी कानपुर मेंबवसत है तपेश्वरी उनका नाम

एक बहिन बिन्ध्याचल में बसत है बिन्धेश्वरी उनका नाम 

एक बहिन मेरठ में बसत है नोचन्दी उनका नाम 

एक बहिन हरिद्वार में बसत है मन्सा देवी उनका नाम

एक बहिन नीम सार बसत है जिसका लालता नाम 


☺ये लाली लाल लहँगा चमके दरबार में

चुनरी लहराई तेरी मतवाली चाल से 

ये लालो लाल लहँगा चमके दरबार मंे

एक तो माता सिंह सवारी दूजे कोढ़ी आया 

केाढ़ी को काया देना अपने दरबार में 

ये लालो लाल लहँगा चमके दरबार में

एक तो माता सिंह सवारी दूजे अन्धा आया 

अन्धे को आँखें देना अपने दरबार में 

एक तो माता सिंह सवारी दूजे बाझँन आई 

बाझँन को पुत्र देना अपने दरबार में 

ये लालो लाल लहँगा चमके दरबार में

एक तो माता सिंह सवारी दूजे कन्या आई 

कन्या को घर वर देना अपने दरबार में 

ये लालो लाल लहँगा चमके दरबार मंे

एक तो माता सिंह सवारी दूजे भक्त आये

भक्तों को दरशन देना अपने दरबार में 

ये लालो लाल लहँगा चमके दरबार में



☺शिव आये जसोदा के द्वार मात मुझे दर्शन करा दो

मेरा सोया हुआ है गोपाल बाबा ले भिक्षा जा

कैलाश पर्वत से आया हूँ माता तेरे घर जन्मा है जग का विधाता

तेरे अंगना में छायी बहार मात मुझे दर्शन करा दो

मुश्किल से बाबा ये दिन आया बीती उमरिया में ये लाल पाया

इतना करो तुम विचार बाबा ले भिक्षा जा

जिसको तू माता समझती है बेटा वो तो है सारे जग का विधाता

मेरे जीवन का प्राण अधार मात मुझे दर्शन करा दो

गले में सोहे बाबा मुण्डों की माला देखेगा डर जावेगा लाला

इतना करो तुम विचार ले भिक्षा जा 

जिसको डराता है संसार सारा उसको डराऊंगा मेैं क्या बेचारा

पैया पड़ूं मैं तुम्हारा मात मुझे दर्शन करा दो

डरती हुई माता अन्दर को धायी गोदी में अपनी कन्हैया को लाई 

शिवजी को देखकर कृष्ण मुस्काये 

लाखों इसी में प्रणाम मात मुझे दर्शन करा दो।




☺भोला डोल रहे पर्वत पर अपनी पार्वती के संग 

एक तो भोला खाये धतूरा दूजे खाये भंग 

तीजे भोला चरस चढ़ावे हो रहे नशे में दंग 

भोला डोल .............................

कान में भोला के कुडंल सोहे गले में काला भुजंग 

सिर पर उनके चन्द्र विराजे जटा से बह रही गंग 

भोला डोल .............................

एक तो उनको बूढा नादिया दूजे करे हुड़दंग

तीजे गनपत गोद विराजे पार्वती के संग

भोला डोल .......................................................

डमडम डम डम डमरू बाजे और बाजे मृदंग

श्याम जी की वंशी बाजे राधा जी के संग 


☺अकुलाती देखो सकुचाती चली पनियाँ भरन शिवनारि 

सागर में उतारी गागरिया 

रूप देख कर कहे समुन्दर कौन पिता महतारी

कौने दिशा की रहने वाली कौन पुरुष की नारी 

अरे हाँ कौन पुरुष की नारी 

होले से गिरजा बोले क्या छाया रूप अपार रे सागर 

राजा हिमाचल पिता हमारे मैनावत महतारी

भोला नाथ है पति हमारे मैं उनकी घरवाली 

अरे हाँ मैं उनकी घरवाली जल लें जाँऊ 

मेरे पति नहावे ये सुन मेरी पुकार

कहे समुन्द्रर छोड़ भोला को घर घर अलख जगाय 

चौदह रतन भरे मेरे घर में बैठी भोज उड़ाओ 

पीवे भंगिया वह वो रगिया क्यों सहती कष्ट अपार रे 

बात सोच कर अपने मन में झट भोला ढिग आइ

आप के होते तके समुन्द्र सारी व्यथा सुनाई अरे हाँ 

शिव कियो जतन सागर को मथंन लियो

 चौदह रतन निकाल रीे सागर ..........................

☺इस तन में रमा करना इस मन में रमा करना

वैकुन्ठ तो यही है इसमें ही बसा करना

हम मोर वन के मोहन नाचा करेगें वन में 

तुम श्याम घटा वन कर उस वन में उड़ा करना

होकर के हम पपीहा पी पी रटा करेगें

तुम स्वाति बूँद बनकर प्यासे पे दया करना

हम राधे श्याम जम में तुम को ही निहारेगें

तुम दिव्य ज्योति बनकर आँखों में रहा करना

जसोदा आना सुन्दर श्याम हमारे घर कीर्तन में

आप भी आना संग गोपियो को लाना आकर रास रचाना 

आप भी आना ग्वाल वालों को लाना आकर माखन लुटाना

आप भी आना संग राधाजी को लाना आकर वंशी बजाना

आप भी आना नन्द बाबाजी को लाला मात जसोदा को लाना

आप भी आना संग अर्जुन को लाना गीता ज्ञान सुनाना

आप भी आना संग नारद जी को लाना वीरातान सुनाना

आप भी आना संग शंकर जी को लाना डमरू की धुन सुनाना

आप भी आना सारे देवों को लाना कीर्तन में धूम मचाना



ऐसे कपटी श्याम ऐसे कपटी कुंजनवन 

छोड़ चले उद्धव कुजंनवन

जो मैं होती चन्दन की लकड़ी 

श्याम लगाते तिलक माथ्ेा विच रहती रे उद्धव माथे ...

.जो मैं होती बाँस की बंसी श्याम बजाते बीन 

अधर विच रहती रे उद्धव 

जो मैं होती मोर की पंखी श्याम लगाते मुकुट

 माथे विच रहती रे उद्धव ...................

.जो मैं होती सीप की मोती श्याम पहनते हार 

ह्नदय विच रहती रे उद्धव ह्नदय विच .....

जो मैं होती बन की हिरनियाँ श्याम मारते वाण 

प्राण तज देती रे उद्धव प्राण तज देती ................

जो मैं होती जल की मछलियाँ श्याम करत स्नान 

चरण गहि लेति  रे उद्वव ........

☺श्रीमन नारायण नारायण नारायण

वासुदेव घर जन्म लियो है मात पिता कुल तारायण

भक्त हेतु जसुदा घर आये सुमर सुमर भये तारायण

मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल शंख चक्र गदा धारायण

शबरी के फल रूचि खाये भक्त सुदामा तारायण

दुर्योधन घर मेवा त्यागी साम बिदुर घर हारायण

गज और ग्राह लड़े जल भीतर लड़त लड़त गज हारायण

गज की टेर सुनी रघुनन्दन धाय पधारे धारायण

अजामिल सुत हेतु पुकारे नाम लेत भये तारायण

वृन्दावन में रास रचायो सहस्त्र गोपी एक नारायण

इन्दर कोप कियो ब्रज ऊपर नख पर गिरधर धारायण

चारांे बेद भागवत गीता बाल्मीकि जी रामायण

रामा तुलसी दासजी की रामायण

रामा वेद व्यास जी की पारायण श्री मन नारायण

इतना नाम जपो निशि वासर कोट पाप भये तारायण

श्री मन नारायण नारायण नारायण

 भज मन नारायण नारायण 


Monday, 6 January 2025

Bhajan 14 braj ke

 

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Saturday, 4 January 2025

Bhajan 13

 मित्र सुदामा आये श्याम तेरे मिलने को

शीश पगा तन में नहीं जामा आपन नाम बताये सुदामा

नैनन नीर बहाये श्याम तेरे मिलने को 

नंगे पैरन फटी विवाई चितवत महल चकित रघुराई 

वेश दरिद्र बनाये श्याम तेरे मिलने को 

प्रभु कौ मित्र बतावत आपन सुनत कृष्णा उठे नंगे पैरन

चल द्वारे तक आये श्याम तेरे मिलने को 

ह्नदय लगाय श्याम अति रोये 

                        अंखियन के जल से पग धोये

हँसकर वचन सुनाये श्याम तेरे मिलने को

कहो मित्र कुछ कही है भाभी ने 

                         कहु सोगात दई भाभी ने 

पोटली काँख दबाये श्याम तेरे 

तन्दुल चाबि लोक एक दीन्हों 

                        याचक विप्र अजाचक कीन्हों 

रूकमनि हाथ दबाये श्याम तेरे मिलने को 



48☺

जय जय श्री ब्रजराज बिहारी राधे श्याम श्यामा श्याम 

सुर नर मुनि के हो हितकारी राधे श्याम श्यामा श्याम 

ग्वाल वंश का मान बढ़ायो नन्द बाबा की धेनु चरायो

होवे खुशी यशोदा भारी राधे श्याम श्यामा श्याम

गोपिन के कभी वस्त्र चुरावे लूटि लूटि दधि माखन खावे 

लीला करे नित न्यारी राधे श्याम श्यामा श्याम

मुरली की धुन मधुर बजावे ब्रज नारिन संग रास रचावे

नाचे दे दे तारी राधे श्याम श्यामा श्याम

करूणा सुन गज की यदु नन्दन लिया उबार ग्राह के बन्धन 

कीन्ही नही अबेरी राधे श्याम श्यामा श्याम

रूचि रूचि प्रेम के तन्दुल खायो सुदामा के तुमको दुख न सायो

सुख सम्पत्ति दे सारी राधे श्याम श्यामा श्याम

दुपद सुता ने तुम्हें पुकारी दुष्ट दुःशासन खेंचत साड़ी

होन न दियो उधारी राधे श्याम श्यामा श्याम

कौरव के लखि जुल्म करारे बने पाण्डवों के रखवारे 

चक्र सुदर्शन धारी राधे श्याम श्यामा श्याम

कंस असुर आदिक संहारे सकल सुरन्ह के काज सवारे

श्याम की हो जय कारी राधे श्याम श्यामा श्याम

☺59

क्या कहूँ हाल अपने घर का सुख तो है लेकिन चैन नहीं

घर में बहुये हैं बच्चे हैं नौकर भी अच्छे हैं 

मौजों के भरे समुन्दर मे सुख तो है लेकिन चैन नही

ष्षट रसमय व्यंजन मिलते हैं बिजली के पंखे चलते हैं

है बर्फ के टुकड़े थर्मस में सुख तो है लेकिन चैन नही

रहता है खूब नशा धन का उस पर भी मान बड़प्पन का 

इस माया वाले दफ्तर में सुख तो है लेकिन चैन नही

जो हमसे मिलने आते हैं यहाँ और बड़ाई गाते हैं

मित्रों के बढ़िया आदर में सुख तो है लेकिन चैन नही

जब मिले नही आराम यहाँ तो जायें हे भगवान कहाँ

है हाल यही सारे जग का सुख तो है लेकिन चैन नही


☺60

कान्हा गागरिया मत फोड़े ब्रज की रैन अधेरी में

जो कान्हा तुम्हें भूख लगेगो माखन धरौ मटुकिया में

जो कान्हा तुम्हें प्यास लगेगी पानी धरौ सोरइियन में

जो कान्हा तुम्हें तलफ लगेगी बीज धरे पिटारिया में

जो कान्हा तुम्हें नींद लगेगी राधा खड़ी अटरिया में


☺61जसोदा लाल को अपने दिखा दोगी तो क्या होगा

अगर तुम दर्श मोहन का करा दोगी तो क्या होगा

खड़ी ब्रज गोपियाँ सारी तुम्हारे द्वार पर आई 

दिखाने को अगर मोहन मंगा दोगी तो क्या होगा 

जसाोदा लाल को .........................

हमें भी चूम लेने दो वो सुन्दर चन्द्र सा मुखड़ा

कहाँ ब्रजराज प्यारा है बता देागी तो क्या होगा

जसोदा लाल को ..........................

दिखाऊॅं किस तरह आनन्द अपना श्याम प्यारा में 

नजर तुम गोपियाँ उसको लगा दोगी तो क्या होगा 

जसोदा लाल को अपने दिखा तो तो क्या होगा

62दिल तो मेरा हर लिया गोविन्द माधव श्याम ने 

कृष्णा कृष्णा मैं पुकारूँ तेरे घर के सामने 

बन्शी वाले अपनी बन्शी तू सुना दे आन कर 

तेरी चर्चा हम करेगें हर वशर के सामने 

दिल तो मेरा हर लिया ................................

खम्ब से प्रहलाद को तूने बचाया था प्रभु

द्रोपदी की लाज राखी कौरव दल के सामने

मेरी ख्वाहिश है फकत मोहन तेरे दीदार को 

इसलिये धूनी रमाई तेरे दर के सामने 

श्याम जी दर्शन दिखा दो इस दास को आन कर 

हम तुम्हारे सामने हैं तुम हमारे सामने 


☺63वन के लिलहार राधा को छलने चला भेष उनका बनाना गजब हो गया 

जुल्म ढाती है दो चोटियाँ श्याम की माँग सिन्दुर भरना गजब हो गया 

देख आकाश का दिल दहलने लगा सूरज बदली में मुख को छिपाने लगा 

लीला गोदन को जिस दम चले श्याम जी उनका महलांे में आना गजब हो गया  

गोदनी की नजर से नजर जब मिली राधे जान गई छल किया आन कर 

बहुत शर्मिदा थी उस घड़ी राधिका श्याम का मुस्कराना गजब हो गया 

हाथ गालों पर जिस दम धरा श्याम ने छिटकाकर हाथ राधा कहने लगी 

सच बता रे छलिया तू कौन है तुमसे लीला गोदाना गजब हो गया 

मैं हूँ प्रेमी तेरा तू मुझे जानती मैं हूँ छलिया श्याम मुझको पहचान ले

राधा तेरे लिये में जनाना बना तुमसे नजरें मिलाना गजब हो गया 


☺64वृन्दावन वंशी बाज रही नट नागर कुंज बिहारी की

वंशी की धुन सुन राजा इन्द्र जागे जोगी और भोगी वो भी जगे

वन तपसी भी सब मोह गये तो क्या गति होय अनारिन की 

देखो सिर का घड़ा सिर पर ही रहा और हाथ का करूआ हाथ में रहा 

जो ठाढ़ी रही सो ठाड़ी रही जो झुकी रही तो झुकी रही

अब क्या गति होय पनिहारिन की 

जमुना बह न सकी गऊये चर न सकी 

पक्षी उड़ न सके गिरवर चढ न सके 

वन के पक्षी सब मोह गये नट नागर कुंज बिहारी की 

देखो चले पुरवाइया सन सन सन ओर बजे करताल छम छम छम

पग घुंघरू बोले छम छम छम मोहनी जरी है श्याम मुरारी ने 

वृन्दावन वंशी बाज रही नट नागर श्याम मुरारी की 


Friday, 3 January 2025

Bhajan 12

      तैने नाम जपन क्यों छोड़ दिया 

                        तैने राम भजन क्यों छोड़ दिया 

तैने क्रोध न छोड़ा झूठ न छोड़ा 

                        सत्य वचन क्यों छोड़ दिया 

तैने नाम जपन .............................................

झूठे जग में दिल ललचा कर 

                        असल वतन क्यों छोड़ दिया 

तैने नाम .........................................

कौड़ी को तेा तूने खूब संभाला 

                        असल रतन क्यों छोड़ दिया 

जिस सुमरन से अति सुख पावे 

                        वो सुमरन क्यों तैने छोड़ दिया

खालिस एक भगवान भरोसे 

                        तन मन धन क्यों न छोड़ा 

तेने नाम जपन ...........................................................

                  

                 43

                   वन वन डोले लक्ष्मण बोले मेरे भ्राता करो विचार रे

अब कौन चुरायी मात सिया

रो रो कर यू राम पुकारे कहाँ गई जनक दुलारी

बेलि विचारे तुम्ही कहो कहाँ गई जनक दुलारी

लता से पूछे पेड़ से पूछे रो रो करे पुकार रे

अब कौन चुराई मात सिया

हाय हाय चिल्लाते देानों फेरि अगाड़ी आये

आगे चलकर मार्ग में देखे पड़े जटायु पाये

मुख में राम कटा चाम खॅंू की चले फुहार रे

अब कौन चुराई मात सिया

बोले लक्ष्मण सुनो जटायु किसने तुम्हें सताये

वाणी सुनकर जब लक्ष्मण के नैन नीर भर आये

वो दसकन्धर रथ के अन्दर ले गया सीय चुराय रे 

अब कौन चुराई मात सिया 


44

मथुरा न सही कुजंन ही सही रहो मुरली बजाते कहीं न कहीं

कुंजन न सही मधुवन ही सही रहो रास रचाते कहीं न कहीं

चाहे लाख छिपो प्रभु भक्तन से दीदार न दो तरसाओ न तुम 

प्रेमी है जो तेरे दर्शन के चलो पार लगाते कहीं न कहीं

उस वक्त उठाया था गिरवर इस वक्त उठा भी गिरता धरम

मन्दिर न सही इस दिल में सही रहो झलक दिखाते कहीं न कहीं

अब वक्त मुसीबत का है प्रभु दम आखिर आया लवो पर है

नहीं तेरे सिवा कोई और मेरा रहो दुख से बचाते कहीं न कहीं

भक्तों पर विपदा भारी है हर तरफ से आहें जारी है

अब नाथ तेरी इन्तजारी है रहो चाहे निभाते कहीं न कहीं 

45

छोड़कर श्याम ब्रज से है मथुरा गये 

खबर मेरी न लीन्हों तो मैं क्या करूँ

मैं तो उनके विरह में वियोगन बनी 

वह हमको भुलाये तो मैं क्या करूॅं 

मुझसे वादा किया चार दिन का प्रभु

 बीते छः मास मथुरा से आये नहीं

में तो लिख लिख कर पाती पढ़ाती रही 

उनका उत्तर न आये तो मैं क्या करूँ

चूक हमसे भई क्या गये तो भूल 

जो आकर उतना तो हमको बता दे कोई 

रात दिन नाम की मैं तो माला जपूँ 

अब न दामन दिखाये तो क्या कँरू

रो रो ब्रज की ये सखियाँ तड़पती है यूॅं

 जैसे जल के बिना मीन व्याकुल रहे

प्रेम हम गोपियों का वह तोड़कर 

प्रीत कुब्जा से कीन्ही तो मैं क्या करूॅं।


46

कोई कहियो रे हरि आवन की श्याम मिलावन की

 कोई कहियो रे 

आप न आये पाती न भेजी बान पड़ी ललचावन की 

कोई कहियो रे ...................

यह दोऊ नैन कहा नही माने नदिया बहे जैसे सावन की 

कोई कहियो रे ............................

कहा करूॅं कहु कहा नही जाय पंख नही उड ़जावन को 

कोई कहियो रे .......................

भगुवा वेश कियो गोपिन ने अंग भमूत रमावन की 

कोई कहियो रे ..............

चन्द्र सखी आशा में दासी बैठी है दरशन पावन की 

कोई कहियो रे ................................

                          


                


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