Friday, 4 July 2025

amrit bindu

 बच्चे वे हाथ हैं जिनके सहारे हम जीवन स्वर्ग बना सकते हैं - हेनरी बार्ड बीबर

हमें जिन्दगी की सीख विद्वानों केबजाय अज्ञानी माने जाने वाले बच्चों से मिलती है । - महात्मा गांधी

माता पिता सबसे बड़ा उपहार जो अपने बच्चेां को दे सकते हैं जिम्मेदारी की जड़ें और स्वतंत्रता के पंख - डेनिस वेडली

बच्चों को सांचे में डालना नहीं बल्कि मानसिक तौर पर खोलना चाहिये ।  जैस लेयर

खंडित वयस्कों में सुधर के वजाय बच्चों में सषक्ति का भाव निर्मित करना अधिक आसान है -फेडरिक डगलस

बच्चों को आलोचकों की नीं रोल मॉडल की जरूरत होती है - जोसेफ जुबर्ट

युवावस्था के बाद बचचों से मित्रवत् व्यवहार करें वे जैसे जैसे बड़े होंगे अच्छे दोस्त बनते जायेंग ।- चाणक्य

हर बच्चा अपने साथ यह संदेष लाता है कि ईष्वर अब तक इंसान से नाउम्मीद नहीं हुआ है ।


बच्चे गीली मिट्टी की तरह होते हैं उन्हें आकार देना बड़ों के हाथ में है ।

फर्ष से एक एक सीढ़ी चड़ना आदमी को आदमी बनाये रखता है

यात्रा का अंत नहीं होता वह तो रास्त ही रास्त है चरवैति चरवैति


Sunday, 29 June 2025

samay ki umra

 समय की उम्र



समय की उम्र ज्ञात करना भी एक मुश्किल कार्य है। पृथ्वी पर कई तह हैं और ये तह पृथ्वी के बनने के बाद से समय समय पर बनती रहती हैं। रेडियो तरंगों से और अन्य तरीकों से वैज्ञानिक अनुमान लगा लेते हैं। यदि कोई जीव धरातल की सतह में हो तथा सतह के समय का ज्ञान हो तो उससे जीव के काल का पता लग जाता है। जीवाष्मों से सतह की उम्र का भी अंदाज लगता है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। 

मानव के जन्म से करोड़ों वर्ष पूर्व इस पृथ्वी पर सरीसृप जाति के जीवों का साम्राज्य था। नवीनतम खोजों के अनुसार डायनोसोर पृथ्वी पर बाईस करोड़ अस्सी लाख वर्ष पहले विचरण करते थे। अमेरिका और अर्जेन्टीना के वैज्ञानिकों ने समय की मोटी-मोटी परतों को बेधकर एक ज्वालामुखी की राख से यह पता लगाया कि इनका समय बाइस करोड़ पचास लाख वर्ष है। साथ ही एंडीज पर्वत श्रेणी की तराई में एक डायनोसोर के जीवाश्म ढूँढ़ निकाले हैं। पूरा प्राणी भीमकाय न होकर आकार प्रकार में एक कुत्ते जितना है। दो पैरों वाला यह सरीसृप नाक से पूँछ तक एक मीटर से कुछ लम्बा था ,और उसका वजन था 11 किलोग्राम, इस जीव का पता अक्टूबर 1991 में पाल सेरेना और ए फ्रेजे मोनेटो नामक वैज्ञानिकों ने लगाया, इसका नाम उन्होंने ‘इओरेप्टर ’ रखा। अजेंन्टाइना  की स्थानीय भाषा में इसका अर्थ होता है ‘उत्पत्ति काल का जीव’ ।

ये जीव रीढ़ की हड्डी रहित होता था। रीढ़ की हड्डी वाले जानवर में मछली चिड़िया एवम स्तनपायी जानवर आते थे और बिना रीढ़ वालों में रेंगने वाले जानवर आते हैं। इनका रक्त ठंडा होता था ,ये अपने शरीर के तापमान को घटा बढ़ा नहीं सकते थे। उनका जीवन मौसम के साथ चलता था। गर्म दिन इनके लिये खुुशगवार दिन होता और ये सक्रिय रहते थे। ये सभी सरीसृप अंडे देते थे। अब रेंगने वाले जीव केवल गर्म प्रदेशों में ही पाये जाते हैं। ऐतिहासिक काल में धु्रव प्रदेश को छोड़कर अन्य सब स्थानों पर जलवायु विषवत् तथा समसीतोष्ण प्रदेशों के समान गरम थी। 

प्रागैतिहासिक काल का आर्चोसोरस का अंश आज के मगर में तथा समुद्र के विशाल कछुए में देखा जा सकता है। कोई कोई कछुआ 160 किलो का भी होता है। ये विशाल कछुए हिंद महासागर में पाये जाते हैं। सबसे पहले ये रीढ़ वाले प्राणी मछली के रूप में पानी में पाये जाते थे। धीर-धीरे इन प्राणियों ने पानी से बाहर रेंगना प्रारम्भ किया। सबसे प्राचीन पानी का जीव कनाडा में पाया गया जिसे फ्लाईलोनेमस का नाम दिया गया।

धीरे धीरे रंेगने वाले प्राणी बढ़ते गये और स्थान स्थान पर फैल गये। कुछ रेगिस्तान में रहने लगे कुछ दलदल में। ये भयानक छिपकलियाँ विशाल रूप लेती चली गई। ये शाकाहारी होती थीं। ये डायनोसोर आलसी भी होते थे। एक प्रकार का डायनोसोर तो चलता फिरता टैंक था और मोटी मोटी  हड़ीली पर्तो से ढका था। बाईस करोड़ साल पहले डायनोसोर बहुत आम जीव था, लेकिन हमारे लिये विचित्र और अदभुत् संभवतः दूसरे ग्रह के प्राणी के समान। 

प्राप्त जीवाश्मों से ही इनके प्रारम्भिक जीवन खानपान और शारीरिक संरचना के विषय में ज्ञात होता है। इनकी खाल भूरी हरी सी होती थी। मांसाहारी डायनोसोर का जबड़ा मजबूत और नुकीले दांत होते थे, जिससे वे मांस चीर फाड़ सकंे। शाकाहारी जीव के दांत नुकीले न 


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होकर पिसाई मशीन के दांत की तरह सींगों के से होते थे। जिससे डालियाँ आसानी से काटी जा सकें। 

सबसे पहले मेगालोसोरस नामक डायनोसोर का नामकरण हुआ। यद्यपि 1824 तक यह ज्ञात नहीं हो सका कि यह जीव डायनोसोर है या ऐसा प्राणी है कि पृथ्वी पर कभी पाया जाता था। 1600 में छपी एक पुस्तक में मेगालोसोरस की एक विशाल हड्डी का चित्र था उस समय लोगों का यही अनुमान था कि वह किसी विशाल मनुष्य की हड्डी है।

अब तक के ज्ञात डायनोसोर में ब्रेंाकियोसोरस सबसे विशाल था। संभवतः इसका वजन सौ टन या इससे भी अधिक होता था। इसका प्राप्त जीवाश्म 90 फिट लम्बा है। इसका सर 39 फुट जमीन से था। ब्रेकियोसोरस उत्तरी अमरीका और अफ्रीका के दलदली इलाके में पाया जाता था, यद्यपि यह थलीय प्राणी था लेकिन पानी में इसके भारी शरीर को अच्छा सहारा मिलता था। इसके जीवाश्म अधिकतर दलदली इलाकों में पाये जाते हैं। भारी शरीर अपने आपको दलदल में से निकाल नहीं पाता था और वहीं फंस कर मर गया। 

टाइरनोसोरस सभी डायनोसोर क्या अब तक के ज्ञात सभी प्राणियों में भयानक था। इसकी ऊँचाई जमीन से करीब 13 फुट और लम्बाई पचास फुट थी। इसके पेंसिल के समान लंबे लंबे नुकीले दांत थे। टायनोसोरस के जीवाश्म उत्तरी अमेरिका और एशिया में पाये गये। 

कुछ डायनोसोर ऐसे थे जिनके कूल्हे की हड्डी पक्षियों से मिलती हुई थीं। इनमें चार जातियाँ मुख्य थीं आर्नीथोपोडस, स्टेगोसोरस, एन्किलोसोरस, सेरेप्टियोसियन्स। अनीथोपोडस अपने दोनों पिछले पैरों पर चलता था। बाकी के अन्य अपने चारों पैरों पर। स्टेगोसोरस के मछलियों केे शक्ल जैसे शंकु पीठ पर लगे रहते थे। एन्किलोसोरस के पीठ पर मोटी परतें रहती थीं ,सिरेटायसियन्स के सींगों के पीछे झालर सी लगी रहती थी। पैसीसिफैलोसोरस की खोपड़ी मनुष्य की खोपड़ी से पच्चीस गुना मोटी और मजबूत होती थी। लेकिन करीब करीब सभी डायनोसोर का मस्तिष्क मुर्गी के मस्तिष्क के बराबर होता था।

पेट्रोसोरस आकाश में उड़ते थे, लेकिन थे रंेगने वाले जीव ही। हैरानी है कैसे समुद्र से पृथ्वी पर आये और उड़ने कैसे लगे? संभवतः कुछ प्रारम्भिक डायनोसोर जो पेड़ों पर रहते थे। उनके पैरों पर झिल्लियाँ बन गईं। क्योंकि वे एक पेड़ से दूसरे पर कूदते थे। धीरे धीरे वे उनसे ग्लाइडर का काम लेने लगे। आजकल भी कुछ उड़ने वाले पशु जैेसे छिपकली गिलहरी बिलाव पाये जाते हैं। धीरे धीरे पैट्रोसोरस के मजबूत नाड़ी तंत्र भी विकसित हो गया।

सभी पैट्रोसोरस का शरीर छोटा होता था ,लेकिन पंख बड़े बड़े थे। लम्बे भारी जबड़ों में दांत नहीं होते थे, लेकिन नुकीली हड्डियाँ रहती थीं। पैट्रोसोरस के पंख खाल की पतली झिल्ली के समान थे और सामने की ओर से हाथ की कन्नी उंगली जो अप्रत्याशित रूप से लम्बी हो जाती थी। उससे धनुषाकार रूप में जुड़े रहते थे। लम्बी पूँछ संतुलन बनाये रखती थी। पैट्रोनोडोन नामक डायनोसोर चिड़िया के सिर पर हड्डी का सा मुकुट था। संभवतः वह उड़ते समय सिर को सीधा रखने में सहायक होता था। पैट्रोसोर तो अधिक बड़े नहीें होते थे। परन्तु पैट्रोसोडोन के एक पंख का फैलाव करीब पचास फुट का था। 

समुद्र के डायनोसोर में इचीथिसोरस और प्लैसीसोरस बहुतायत में पाई जाने वाली जातियाँ थीं। इचीथिसोरस पानी में ही रहता था जबकि प्लैसीसोरस कभी कभी जमीन पर भी आ जाता था। मौसासोर पानी की विशाल छिपकली जैसा था। प्लैसीसोरस के पैडल नुमा पैर तैरने में सहायक होते थे। विशाल बरमूदा क्षेत्र में खींचा गया लाचनेस का चित्र प्लैसीसोरस से मिलता हुआ है। यद्यपि यह विवादास्पद ही है कि वहाँ क्या देखा गया था।

मैरी एनिंग सन 1799-1847 पहली महिला थीं जिन्हेांने इचियोसोर, पलैसीसोर और 

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पैट्रोसोर के कंकालों को एकत्रित किया था। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन इंगलैंड के डोरसेट शहर में व्यतीत किया और पिता की तरह जीवाश्मों की खोज करती रहीं। डोरसैट तट जीवाश्मों के लिऐ प्रसिद्ध रहा है। 

संभवतः डायनोसोर पृथ्वी पर हुए परिवर्तनों की वजह से अपने को जीवित नहीं रख पाये। पेड़ों और पौधों के आकार प्रकार बदल गये जो उनका भोजन नहीं था। ठंडा खून होने की वजह से पृथ्वी का ठंडा होता वातावरण उन्हें जीवित रखने में असमर्थ हुआ। यह सब अनुमान ही है ,लेकिन वास्तव में इतना विशाल प्राणी अपना आस्तित्व क्यों नही रख पाया यह पहेली ही है?  कई करोड़ वर्ष तक कई युगों में और कई भौगोलिक परिवर्तनों में अपना साम्राज्य रखने के बाद एकाएक थोड़े से समय में क्यों खत्म हो गये?

लेकिन अब उन्हें जगह जगह प्राकृतिक संग्रहालय में देखा जा सकता है। जैसे जैसे जीवाश्म मिलते जाते हैं, उनके कंकालों में और आकृति में सुधार किया जाता है। 

लंदन के क्रिस्टल महल की 1854 की प्रदर्शनी में डायनोसोर को पूर्ण आकृतियों में दिखाया गया था। इनका निर्माण बेन्जामिन वाटर हाउस हाकिन्स ने प्रोफेसर रिचर्ड ओन के निर्देशन में किया था।

मंगोलिया और गोबी रेगिस्तान जीवाश्म अन्वेषकों के लिए भंडार हैं। यहाँ क्रेटेसस युग के डायनोसोर के जीवाश्म बहुतायत में पाये गये। यहाँ पर प्रोटोसरेटॉप के अंडो का समूह पाया गया।

तंजानिया में बींसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ब्रेंकोसोरस, स्टेगोसोरस तथा अन्य उड़ने वाले सरीसृपों के जीवाश्म प्राप्त हुए थे। 

अर्जेंटाइना में सरोपोड और क्रटेसस युग के डायनोसोर मिले थे। ब्रूसेल्स के प्राकृतिक ऐतिहासिक संग्रहालय में 1877 में मिले डायनोसोर को आकार देकर 20 कंकाल रखे हुए हैं।








Friday, 20 June 2025

hasyam sharnam gachhami

 

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Friday, 11 April 2025

Bhajan

 10फुलन के वाजू बन्द फूलन की माला 

गइया चराय घर आये नन्द लाला 

माथे पर मुकुट सोहे कानों में वाला

रतन जड़ित जाके उंगिलिन में छाजा 

आगे आगे दाऊजी पीछे पीछे ग्वाला 

बीच बीच नाचे मदन गोपाल

जामा पचंरगी सोहे पीत दुःशाला 

गले सोहे हीरा लाल मोतीयन माला, 

चन्द्र सखी भज वाल कृष्ण छवि 

निरखि निरखि मन मोहे बृज बाला

फूलन के सेज गले वन माला 

गइया चराय घर आये नन्द लाला 










11राजाराम ने पठ़ाये हनुमान जड़ी तो संजीवन की 

भरी सभा में बीड़ा डालो राम चन्द्र भगवान

इस बीड़ा को कोई नही झेले झेलेगें श्री हनुमान जड़ी सो ............................

उठे पवनसुत बैठ पवन सुत पहुँचे लंका जाय

खबर पड़ी राजा रखया कू पर्वत दियो है जलाय जड़ी तो संजीवन की 

ठाड़े हनुमत सोच करें हैं सोच करे मन मार

संजीवन तो कहूँ नही पाई पर्वत लियो है उठाय जड़ी तो संजीवन की 

उठे पवन सुत बैठ पवन सुत पहुँचे अयोध्या जाय

ताल वान गोदे में मारो राम ही राम पुकार जड़ी तो सजीवन की .............

कोनस के तुम पुतर कहियो कहा तुम्हारो नाम

कोन रजा की करो नौकरी कौन के लागा शक्तिवान जड़ी तो संजीवन ......................

अंजनी के हम पुत्तर कहिये हनुमान मेरो नाम 

राजा राम की करें नौकरी लक्ष्मण के लागा शक्तिवान जड़ी तो संजीवन की 

उठे पवन सुत बैठ पवन सुत पहुँचे लंका जाय 

संजीवन तो घोट पिलाई दई लक्ष्मण लिये है जिलाय जड़ी तो संजीवन की .............

तुलसी दास आस रघुवर की हरि चरणों चित लाय

जैसे कारज  राम के सारे वैसे ही मेरे भी सारो



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12घर आयेगें श्री भगवान शिवरी के मन हरष भयो

वोले वचन मतंग ऋषि तू सुनि शिवरी मेरी बात 

एक दिना तेरे घर आयेगे लक्षमन और श्री राम 

शिवरी के मन हरष मयो..................

वचन सुने निश्चय कर मन में छोड़े गृह के काज 

बार बार घर भीतर आवे देखत लक्ष्मन राम

शिवरी के मन हरष भयो...................

चरण धोय चरणमृत लीन्हो आसन दियो बिछाय 

कन्दमूल फल देनन लागी रूचि रूचि भोग लगाय

शिवरी के मन हरष भयो.............

शिवरी जैसी जात अधम की दीन्ही धाम पठाय 

श्याम कहे विश्वास रखे से घर बैठे प्रभु आय  

 शिवरी के मन हरष भयो................







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13राम दशरथ के घर जन्में घराना हो तो ऐसा हो 

लोग दर्शन को चले आवे सुहाना हो तो ऐसा हो 

यज्ञ का काम करने को मुनीश्वर ले गये वन में 

उड़ये शीष दैत्यन के निशाना हो तो ऐसा हो 

तोड़ डाला धनष्ुा जाकर जनक की राजधानी में 

भूप सब मन में शरमाये लजाना हो तो ऐसा हो

पिता की मान कर आज्ञा राम वनवास चल दिये

न छोड़ा साथ सीता ने जनाना हो तो ऐसा हो

सिया को ले गया रावण बना कर भेष साधु का 

कराया नाश सब अपना ठिकाना हो तो ऐसा हो

प्रीति सुग्रीव से करके गिराया वाण से वाली

दिलायी स्त्री तब उसकी याराना हो तो ऐसा हो 

गया हनुमान सीता को खबर लेने को लंका में 

जला कर के नगर आया सताना हो तो ऐसा हो 

बाँध सेतु समन्दर में उतारा पार सेना को

मिटाया वंश रावण का हराना हो तो ऐसा हो 

राज्य देकर विभीषण को अयोध्या लोटकर आये

वो गंगा बालधर अपना दिखाना हो तो ऐसा हो 



14रावण की सभा में विभीषण के उर लात लगाई भारी है

हा राम राम सुमरन करके चल दिया तुरन्त ब्रह्मचारी है

क्यों अब भी शोखी मार रहे लंका को जलाकर ताप रहे

एक बन्दर शान विगाड़ गया अब आई तुम्हारी वारी है।

है माई कहन मेरी मानो श्री राम से बैर न तुम ठानों

सीता को कर अर्पण प्रभु के लंकेश सलाह ये हमारी हैं

शिव सुनो विभीषण चल दिन्हा रामा दल के हनुमत चीन्हा

श्रीराम तरफ गये चरणा कमल चरणों में शीष दियो डारी

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15गुरू पास रहे या दूर रहे नजरों में समाये रहते हैं

इतना तो बता दे कोई हमें क्या कृपा इसी को कहते हैं

दुखियों की मंजिल लम्बी है जीवन की घड़िया थोड़ी है

इन दोनों को समझो एक समान गुरू अपना बनाये रहते हैं

जिस अंश के सारे अशी है उस श के हम भी वंसी है

माया में फंस कर झूले हैं गुरू याद दिलाये रहते हैं।

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16घड़ी दो घड़ी राम गुन गाया करो

शील सनेह की दरिया विछाई

प्रेम का पंखा डुलाया करो 

घड़ी दो घड़ी......................

सत संगत की बैठक जोड़ी 

प्रेमी भक्त बुलाया करो

घड़ी दो घड़ी राम गुन गाया करो

चेारी बुराई और पर निन्दा 

कोई कहे समुझाया करो

घड़ी दो घड़ी राम गुन गाया करो

गंगा बाई कहे कर जोरी 

हरि के चरण चित लगाया करो 

घड़ी दो घड़ी राम गुन गाया करो

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20भज मन राम राम राम तज मन काम काम काम

भोर मई मुख मल मल धोयो रे

धोय धाय तेने उदर ढढोरो रे

मुख से मजो न राम मजमन...............

बातन बातन सब दिन खोयो रे 

साँझ मई पलका चढ़ सोयो रे 

मारे होत उठो जाय मजमन ...............

भाई बन्धु और कुटुम्ब कबीला रे 

महल तिवारी तेरे धन बहुतेरे रे 

संग चले न छदाम मज मन ........................


Monday, 17 March 2025

Tips

 

To achieve a super smooth look when powdering the  face always warm the puff first this works for loose powder ,presses powder or powder and foundation combined

Clean out an old nail varnish bottle ,and brush with acetone wash and dry them. now have a hand bag size container for anti septic ,complete with its own applicator Useful for picnic stings and scratches .

A slice of dry bread placed over cooked and drained rice will absorb all the excess moisture leaving the rice dry and  pluffy.

If you are making banana chips .place the peeled bananas inside a vessel of water and add butter milk to it .Take out after five minutes and then slice them .Thus prevents the blackening of banana chips.

To prevent milk from spoiling during the summer season add a pinch of cardamom powder in the milk ]it will act as a preservative.

You can break a coconut in equal parts without any difficulty if you dip it in water for a while.

 add half a cup curd to chopped onions before frying them. Curd improves the taste and flavor of the curry it is also a handy substitute for tomatoes.

Sunday, 9 February 2025

Bhajan 24

 1ओम जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट क्षण में दूर करें। 

जो ध्यावे फल पावे दुःख बिन से मन का  सुख सम्पत्ति घर आवे कष्ट मिटे तन का 

ओम जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे मात पिता तुम मेरे शरणा गहूॅं  किसकी

तुम बिन और न दूजा आस करूॅं मैं जिसकी  तुम पूरण परमात्मा तुम  अर्न्तयामी

पार ब्रह्म परमेश्र तुम सबके स्वामी ओम.....तुम करूणा के सागर तुम पालन करता

मै मूर्ख खलकामी कृपा करो भरता ओम.....तुम हो एक अगोचर सबके प्रजापती

किस विधि मिलूं दया निधि तुमको मैं कुमती ओम....

दीन बन्धु दुख हर्त्ता तुम ठाकुर मेरे अपने हाथ उठाओ द्वार पड़ा तेरे 

विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ सन्तन की सेवा 

ओम जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे।  










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2जय जय सुर नायक जन सुख दायक प्रणत पाल भगवंता

गो द्विज हितकारी जय असुरारी सिन्धु सुता प्रिय कंता

पालन सुर धरनी अद्भुत् करनी मर्म न जानय कोई 

जो सहज कृपाला दीन दयाला करहु अनुग्रह सोई

जय जय अविनाशी सब घट वासी व्यापक परमानन्दा 

अविगत गोतीतं चरित पुनीतम माया रहित मुकुन्दा 

जोहि लागि विरागी अति अनुरागी विगत मोही मुनि वृन्दा 

निशि वासर ध्यावहि गुनगन गावहि जयति सो श्रद्धा नन्दा

जेहि सृष्टि उपाई त्रिविध बनाई संग सहाय न दूजा 

      सो करहुं अधारी चिन्त हमारी जानहि भगति न पूजा 

सो भव भय भंजन मुनि मन रंजन गजंन विपति वरूथा 

मन बचि क्रम वानी छाड़ि सयानी सरल सकल सूर यूथा

शारद श्रु्रति शेषा ऋिषिय अष्ेाषा जा कहु कोई नहीं जाना 

जेहि दीन पियारे वेद पुकारे द्रवहु सो श्री भगवाना

भव वारिध मन्दिर सब विधि सुन्दर गुण मन्दिर सुख पुंजा 

मुनि सिद्ध सकल सुर परम भयातुर नमत नाथ पद कजां 

जानि समय सुर ऋषि मुनि सकल समेत सनेह 

गगन गिरा गभीर भई हरहु षोक सन्देह 

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3हरि ओम तत्सत हरि ओम तत्सत जपा कर जपाकर जपाकर जपाकर 

जो दुष्टों ने लोहे का खम्बा रचा था तो निर्दोष प्रहलाद क्यों कर बचा था

करी थी विनय एक स्वर से जो उसने हरि ओम....

लगी आग लंका में हलचल मचा था  तो घर फिर बिभीषण का क्यों कर बचा था

लिखा था यही नाम कुटिया में उसके हरि ओम तत्सत .............

कहो नाथ शिबरी के घर कैसे आये    आये तो फिर बेर झूठे क्यों खाये

ह्नदय मे यही जिव्हा पर यही था हरि ओम तत्सत हरि ओम तत्सत 

हलाहल का प्याला मीरा ने पिया था कहो विष से अमृत कैसे हुआ था

दीवानी थी मीरा इसी नाम पर हरि ओम....

सभा में खड़ी द्रोपदी रो रही थी रो रो के आँसू से मुँह धो रही थी

पुकारा था दिल से यही नाम उसने हरि.....

हरि ओम में इतनी षक्ति भरी थी गरुड़ छोड़ धाये न देरी करी थी

बढ़ा चीर उसमें यही रंग रंगा था हरि ओम तत्सत हरि ओम तत्सत 

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4संझा सुमरन कर लें अरे मन संझा सुमरन करले

 काहे का दिवला काहे की है बाती काहे का धिरत जरे

सोने का दिवला कपूर की बाती सुरभी का धिरत जरे  रे मन ......

काहे की नाव काहे का है खेवा कोन लगावे बेड़ा पार 

सत्य की नाव धर्म का है खेवा राम लगावे बेड़ा पार रे मन ......

चन्दा सूरज और तारेन की इनकी माता जपले 

चोरी बुराई और पर निन्दा इन तीनो से बचले रे मन .....

संझा सुमरन करले अरे मन संझा सुमरन करले 

साँझ सकारे ओर दुपहरे तीनों वखत हरि भजले

काहे की चैोकी काहे का आसन काहे की माला जपले

ज्ञान की चौकी प्रेम का आसन ह्नदय की माला जपले

साधू संगत गुरून की सेवा माता की आज्ञा में चल रे 

चोरी चकारी और पर निन्दा इन तीनों को तज रे 

भूली भूली ािफरत बाबली ठाकुर द्वारे में पड़ रे 

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.....................................................................................................................

5साँझी विरिया मेरे घर में जसुदा के लाला आये 

जसुदा के लाला आये नन्द के दुलारे आये 

हीरा बालू मोती वालू चौमुख दिवला घर में वालू 

चोटी गूथू माँग सवाँरू दई के सवारे आये 

हरि की होवे एक नजरिया रंग रहे वो आठ पहरिया

मनन करे दिन रैन गुजरिया रसिया तुम्हारे आये 

रसिया तुम्हारे आये छैला हमारे आये

राहस रसिया मंगल गावे सहस बनी करताल बजावे 

गोपी नाचे भाव बतावे श्यामा नाचे भाव बतावे

नन्द के दुलारे आये जसुदा के लाला आये 

मोर मुकुट पीताम्बर सोहे मुरली अधर हाथ में सोहे 

सूर श्याम बलिहारी राधे सखियों ने दरशन पाये 

सखियों ने दरशन पाये सबने आनन्द मनाये

जसुदा ने मंगल गाये साझी

हरि की होवे एक नजरिया संग सहे चोहार पहरिया

 भजन करे दिन रैन गुजरिया 

नंद के दुलारे आये जसुदा के प्यारे आये

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6राम को अधार सिया राम को अधारा रे 

मेरी तेरी करते दिन रात यूँ गुजारा रे 

साँचा हरि नाम और धुन्ध को पसारा रे 

भस्मासुर भस्म किया शंकर दुख तारा रे 

गिरजा को रूप धरा मोर मुकुट वारा रे 

भक्तन पर भीड़ पड़ी आन खम्ब फाड़ा रे 

हिरनाकुश मार दिया प्रहलाद को उबारा रे 

खेलत खेलत गेंद गिरी यमुना बिच धारा रे 

अवतो गेंद मिलत नाही नन्द के दुलारा रे 

काली दह में कूद पड़े कालिय को नाथा रे 

कूबलि़या का दन्त तोड़ा कंस को पछारा रे

तुलसी दास यही कहत नही जानन हारा रे 

अग्रसेन राज दियो हो रही जय जय कारा रे 





7पहले मैं गौरी गनेश मनाऊॅं

प्रात हेात गणपति को सुमरू घटां शंख मृदंग बजाऊॅं 

फल मेवा पकवान मिठाई लड्डू का मैं भोग लगाऊँ 

कंचन थाल कपूर की बाती जगमग जगमग दीप जलाऊँ

पान सुपाड़ी ध्वजा नारियल माथे पर हरी हरी दूब चढ़ाऊँ

सूरदास गणेश भजन करो आठो पहर तुम्हारे गुण गाऊॅं ।

.............................................................................................................

8मेरो राम मिलन कैसे होय गली तो चारो बन्द पड़ी 

चार गली है चारांे बन्द है कौन गली से जाऊँ

एक तो चारो बन्द पड़ी मेरो राम 

पहली गली है दया धरम की दूजी गली है दान

तीजी गली है हरि सुमरन की चोथी मे साधु सम्मान 

गली तो ...................

हरि सुमरन में मन नही लागे दान दिया न जाय 

दया धरम देखे डर लागे साधू का किया अपमान

गली तो चारो.........................

आग लगे डाका पड़े चोर मोर लै जाय 

यह अधर्म तो सहे जात है दान दिया न जाय 

गली तो चारो...................

चारो ही पन ऐसे ही बीते जैसे सूकर श्वान

जब जाओगे यम के द्वारे कहा बताओगे राम 

गली तो .................................

...........................................................................................

9धनुष धारी पर होजा मतवाला रे भज सीताराम

ठोकर खाई बहुत सी झूठ जगत व्यवहार

सीता पति मैं इसीलये आया तेरे द्वार

मुझे दर दर नही भटकना रे भज......

नृप दशरथ के महल में जनम लिया सरकार

कौशल पति प्रभु प्रगट भये तीन लोक करतार

खेलत चारो सुकमारा रे भज

फूल लेन बगिया गये  दशरथ राजकुमार

राम धनुष जब तोड़ दिया सिय डाली जयमाल 

जहाँ मिल गये चन्द्र चकोरा रे मज...................

सीय स्वयंवर में जुड़ी भीड़ भूप दरबार

राम धनुष जब तोड़ दिया सिय डाली जयमाला

युगल जोड़ी पर जाऊॅं बलिहारा रे मज ................

...........................................................................................


Saturday, 8 February 2025

Bhajan 23

 150मन मूर्ख पापी कौन तुझे समझावे 

निन्दा कर के दिवस गंवाये रैन पड़ी सो जाये 

दुर्जन की संगत में बैठे संत संगत ना भाये 

कबहूँ की माया अधिक देख के धनी पुरूष बन जाये

कबहूँ दीन दुखी बन मूर्ख जग को शीश झुकावे 

आतम आनन्द रूप न जाने देह से नेह लगावे 

एक दिन तेरी सुन्दर काया माटी में मिल जाये 

महल अटारी भवन झरोखे आलीशान बनावे 

या सुन्दर देही पर पगले क्यों इतना इतरावे

या देही को भस्म करन हित जंगंल में ले जावे

गर्भ माह जो कौल कियो नर बाको मत बिसरावे 

बहनो सुमरन कर लो हरि का भव सागर तर जावो

                         

                      151 भगवान मेरी नइया उस पार लगा देना 

अब तकतो निभाया था आगे भी निभा देना 

दलबल के साथ माया घेरे जो मुझको आकर 

तुम देख लेना मोहन झट आके बचा लेना 

तुम ईश मैं उपासक तुम देव में पुजारी 

जो बात सत्य होवे सच कर के दिखा देना 

सम्भव है झंझटो में मैं तुमको भूल जाऊॅं

पर नाथ कहीं तुम भी मुझको न भुला देना 

हम मोर वन के मोहन नाचा करेगें वन में 

तुम श्याम घटा बन कर इन वन में उठा करना 

वन करके हम पपीहा पी पी रटा करेगें

तुम स्वाति बूँद वन कर प्याले पे दया करना 

हम राधे श्याम जग में तुम्ही को निहारेगें

तुम दिव्य ज्योति बनकर आँखो में रमा करना 


152 कर ले प्रभू से प्यार फिर पछतायेगा

झूठा है संसार धोखा खायेगा

माया के जितने धन्धे झूठे है उनके बन्दे

तन उजले मन गन्दे आँखों के बिलकुल अन्धे

नजर क्या आयेगा झूठा है संसार 

मतलब के रिश्तेदारी भा्रत पिता सुत नारी 

क्यो मति गई तेरी मारी जब चलेगी तेरी सवारी 

साथ कौन जायेगा झूठा है संसार ...............

मन प्रभू चरणों में लगाले तू जीवन सुफल बनाले 

ले मान गुरू का कहना दिन चार यहाँ का रहना 

कौन समझायेगा झूठा है संसार ...............

154तेरा रामजी करेगें बेड़ा पार उदासी मन काहे को करे 

नैया तेरी राम हवाले लहर लहर प्रभु आप सभालें

आप ही करेगें वेड़ा पार उदासी .............

काबू में मझधार है इसके हाथों में पतवार है उनके 

जरा सोच के देखो एक बार उदासी ............

सहज किनारा मिल जायेगा तुझको सहारा मिल जायेगा

जरा दिल से तो करिये पुकार उदासी.................

तू निर्दोष  है तुझे क्या डर है पग पर साथी हनुमत है 

तेरी वोही करेगें बेड़ा पार उदासी 


155फँस के माया के चक्कर में उलझ गयो रे 

तू भूल गयो हरि नाम भूल गयो रे 

जन्म मानव का लिया हरि ने हाथ फेरा है

भूल माया में गया कहता मेरा मेरा है 

साथ में लाया क्या और क्या जग में तेरा है

अमर रहना नही मरघट में होय डेरा है

झूठी बातन के झूले में झूल रहो रे

तू भूल प्रेम से कर ले भजन प्रेम की भिक्षा वाले 

गुरू से कर ले भजन प्रेम की भिक्षा पाले 

गुरू से प्रेम करे ज्ञान की इच्छा वाले

खुश रहते हैं सदा सतसंग की शिक्षा वाले 

मुक्ति पद पाते हैं गीता की परीक्षा वाले 

कुछ भी न कियो न जीवन में फिजूल गयो रे

राम के नाम में अपनी लौ लगायेगा

सहारे सत्य के वो बैकुन्ठ धाम पायेगा

तू ही करता तेरा कर्तव्य काम आयेगा

बने होनी वही जैसा कि तू बनायेगा


156माता अनसुइया ने डाल दिया पालना

तीनो देव झूल रहे वन करके लालना 

मारे ख्ुाशी के फूली न समाती 

गोदी में फिर फिर झूला झूलाती

कौन करे आज मेरे भाग्य की सराहना झूल रहे 

मेरे घर आये मुझे देने बड़ाई 

भूल गये यहाँ आप सारी चतुराई 

भारत की देवियो से आज पड़ा सामना झूल रहे 

स्वर्ग लोक से मृत्यु लोक पधारे 

मुनियों की कुटियों में करने गुजारे 

तन मन से नाच रहे पूछे कोई हाल ना झूल रहे 

ताहि समय नारद मुनि आये

 देख दशा मन मैं मुस्काये

सत्य मई आज तेरे मन की भावना झूल रहे .................


157राम का नाम लेकर के मर जायेगें

ले अमर नाम दुनिया में कर जायेगें

यह न पूछो कि मर कर किधर जायेगें

वो जिधर भेज देगें उधर जायेगें 

राम का नाम ..........................

टूट जाय न माला कहीं प्रेम की

कीमती ये रतन सब बिखर जायेगें 

राम का नाम ..............

तुम ये मानों ना मानों खुशी आपकी

हम मुसाफिर है कल अपने घर जायेगें 

राम का नाम ..................................

158राम भजन में चोकस रहना कलियुग नाच नचायेगा 

सधवाओ को सूखे टुकड़े विधवा चुपड़ी खायेगी

तस्वीरें नर्तकियोें की घर घर लटकाई जायेगी

सच्ची बात कहेगा जो वह वेबकूफ कहलायेगा 

पिता जायेेगा अस्सी तक चल देगा पुत्र जवानी में

ब्राह्नाण धर्म जीविका करके डूबेगें जजमानी में

नारी पुरुष की भाँति चलेगी पुरुष नारि बन जायेगा

बेटा यही धर्म समझेगा रकम बाप की खायेगा

भाई चारा कहाँ शत्रुता भाई ही दिखलायेगा

शादी भी व्यापार बनेगी यही अनोखा ढंग होगा

ब्याह नहीं लड़का होगा घर का वालि का होगा

स्वयं ज्योतिषी दलाल बन यह सम्बन्ध मिलायेगा

मन्दिर तीर्थ बनेगें अड्डे दुराचार व्यामचार के 

सन्यासी भी रहा करेेगे घर में साहूकरों के 

शूद्र व्यास गद्दी पर डटकर कथा पुराण सुनायेगें

जब यह हाल देश का होगा समय बिलक्षण आयेगा

सत्य पथ पर आडिगा रहेगा उसे न काल सतायेगा

राम भजन में चोकस रहना कलियुग नाच नचायेगा 



Wednesday, 29 January 2025

bhajan 22

 141मथुरा न सही कुजंन ही सही रहो मुरली बजाते कहीं न कहीं

कुंजन न सही मधुवन ही सही रहो रास रचाते कहीं न कहीं

चाहे लाख छिपो प्रभु भक्तन से दीदार न दो तरसाओ न तुम 

प्रेमी है जो तेरे दर्शन के चलो पार लगाते कहीं न कहीं

उस वक्त उठाया था गिरवर इस वक्त उठा भी गिरता धरम

मन्दिर न सही इस दिल में सही रहो झलक दिखाते कहीं न कहीं

अब वक्त मुसीबत का है प्रभु दम आखिर आया लवों पर है

नहीं तेरे सिवा कोई और मेरा रहो दुख से बचाते कहीं न कहीं

भक्तों पर विपदा भारी है हर तरफ से आहें जारी है

अब नाथ तेरी इन्तजारी है रहो चाहे निभाते कहीं न कहीं 


                       142     मित्र सुदामा आये श्याम तेरे मिलने को

                        श्ीगा पगा तन में नहीं जामा आपन नाम बताये सुदामा

नैनन नीर बहाये श्याम तेरे मिलने को 

नंगे पैरन फटी विवाई चितवत महल चकित रघुराई 

वेश दरिद्र बनाये श्याम तेरे मिलने को 

प्रभु कौ मित्र बतावत आपन सुनत कृष्णा उठे नंगे पैरन

चल द्वारे तक आये श्याम तेरे मिलने को 

ह्नदय लगाय श्याम अति रोये 

                        अंखियन के जल से पग धोये

हँसकर वचन सुनाये श्याम तेरे मिलने को

कहो मित्र कुछ कही है भाभी ने 

                         कहु सोगात दई भाभी ने 

पोटली काँख दबाये श्याम तेरे 

तन्दुल चाबि लोक एक दीन्हों 

                        याचक विप्र अजाचक कीन्हों 

रूकमनि हाथ दबाये श्याम तेरे मिलने को 


                   143    जसोदा लाल को अपने दिखा दोगी तो क्या होगा

अगर तुम दर्श मोहन का करा दोगी तो क्या होगा

खड़ी ब्रज गोपियाँ सारी तुम्हारे द्वार पर आई 

दिखाने को अगर मोहन मंगा दोगी तो क्या होगा 

जशोदा लाल को .........................

हमें भी चूम लेने दो वो सुन्दर चन्द्र सा मुखड़ा

कहाँ ब्रजराज प्यारा है बता देागी तो क्या होगा

जशोदा लाल को ..........................

दिखाऊॅं किस तरह आनन्द अपना श्याम प्यारा मैं 

नजर तुम गोपियाँ उसको लगा दोगी तो क्या होगा 

जशोदा लाल को अपने दिखा दोगीे तो क्या होगा

           145    नटवर नागर नन्दा भजो रे मन गोविन्दा 

             श्याम सुन्दर मुख चन्दा भजो रे मन गोविन्दा 

            तू ही नटवर तू ही नागर तू ही बाल मुकुन्दा 

           भजो रे ............................................

           सब देवन में कृष्ण बड़े है ज्यू तारा विच चन्दा 

           भजो रे .......................

           सब सखियन में राधा बड़ी है ज्यो नदियन विच गंगा 

           भजो रे ...........................

           ध्रुव तारे प्रहलाद भी तारे नरसिंह रूप धरन्ता 

           भजो रे .....................................

           काली दह में नाग ज्योे नाथो फण फण नृत्य करन्ता 

           भजो रे 

           वृन्दावन में रास रचायो नाचत बाल मुकुन्दा 

           भजो रे ...........................

            मीरा के प्रभु गिरधर नागर काटो जम के फन्दा 

           भजो रे मन गोविन्दा 


146तेरे नैना करे कमाल कटीले काजल वाली 

तू रोज कुआ पर आवे 

तोहे देख जिया ललचावे 

सुन तेरी पायल की झनकार कटीले

तेरो लंहगा धेर घमीरो

जामें पड़ा़े है रेशमी नारो 

                          तेरी चलगत अजब बहार कटीले     

147

बीत गये दिन भजन बिना रे 

बाल अवस्था खेल गंवायो जब जवान तन नार तना रे 

जाके कारण भूल गवायो अबहूँ न गई मन की तृष्णा रे 

कहत कबीर सुनो भाई साधो पार उतर गये संत जना रे 



148ओ प्यारे परेदेशी जिस दिन यहाँ से तू उड़ जायेगा

तेरा प्यारा पिंजड़ा पीछे यहीं पड़ा रह जायेगा

जिस पिंजड़े को सदा से तूने पाला था बड़े प्यार  से

खूब खिलाया खूब पिलाया रखा उसे सवाँर के 

तेरे होते होते नीचे जिसे सुलाया जायेगा 

ओ प्यारे ..........................

रोवेगें थोड़े दिन तुझको भूलेगें सब बाद में

ज्यादा से ज्यादा श्राद्ध यें करवा देंगे याद में

हलुआ पूरी खाकर तेरा स्वाद बनाया जायेगा 

ओ प्यारे .................................

तुझे पता है जो कुछ होना तो फिर क्यों नहीं सोचता 

मूर्ख वो दिन भी आयेगा जब पड़ा रहेगा लोथड़ा 

जन्म अमोलक हीरा वृथा जन्म गवाँया 

ओ परेदेशी ................................


149तुम मेरे प्रभु मैं तुम्हारा कैसे टूटेगा नाता हमारा 

तू चन्दा हरि में चकोरा धन घोर घटा में हूँ मोरा 

सदा देखू मैं राह तुम्हारा कैसे टूटेगा नाता हमारा 

मैं हूँ दीपक प्रभु तुम हो बाती 

                        मेरे जीवन के तुम हो साथी 

बिन तेरे न हो उजियारा कैसे टूटेगा नाता हमारा 

मैं हूँ मछली हरि तुम हो पानी

                        मैं हूँ मगता मगर तुम हो दानी 

बिन तेरे न कोई हमारा कैसे टूटेगा नात हमारा 

मै नैना हरि तुम हो ज्योति 

                        मैं हूँ सीपी प्रभु तुम हो मोती 

मेरे जीवन को तेरा सहारा कैसे 

मैं हूँ चातक हरि तुम हो स्वाति

                        मैं पुकारा करूॅं दिन रात्रि

मैं हूँ किश्ती तुम मेरा किनारा कैसे .....................


Monday, 27 January 2025

brij ke bhajan 21

 

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dSlh dk'kh dh uxfj;k                              pyus dh etcwjh gksxh

fo".kq esjs firk yxr gSa y{eh esjh ekrk              rsjk ru eu /ku NqV tk;         

HkkbZ cU/kq lc uj ukjh gS izse dk esjk ukrk          eq[k ls ti ys ue% f'kok;

dy dh fdls gS [kcfj;k fgekpy uxjh            f'ko iwtu esa eLr cu

                                              HkDr lq?kkjl iku fd;s tk

                                             n'kZu fnO; T;ksfr gS tk;

                                              eq{k ls ti ys ue% f'kok;

                            

 

 

135

';kek ';ke lyksuh lwjr dkS Jaxkj clUrh gS

eskj eqdqV dh yVd clUrh pUnz dyk dh pVd clUrh

eq[k eqjyh dh eVd clUrh

flj ij isp Jo.k esa dq.My dh Nfonkj clUrh gS

';kek ';ke ---------------

ekFks pUnz yL;ks clUrh dfV ihrkEcj dL;ks clUrh

eks eu eksgu clks clUrh

xqat eky xy lksgs Qwyu dks xy gkj clUrh gS

dud dMwyk gLr clUrh pys pky vy eLr clUrh

igj jgs iks'kkd clUrh

:uqd >quqd ix uiqj dh >udkj clUrh gS

lx Xokyu ds xksy clUrh csky jgs gSa cksy clUrh

cts pax <i <ksy clUrh

lc lf[k;u esa jk/ks th ljnkj clUrh gS

ije izse ij'kkn clUrh yxs plhyks Lokn clUrh

gS jgh lc 'kjtkn clUrh

/kklh jke ';ke ';key dksS uke clUrh gS

 

 

 

 

136

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tknw Hkjh ;s ck¡lqjh ctk;k u djks

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lwjr rqEgkjh ns[k dj lyksuh lk¡ojh

lqudj rqEgkjh cklq¡jh gksrh gw¡ ckcjh

bl cklq¡jh ij Vsj ;s lquk;k u djks

tknw Hkjh ----------------------

flj ij eqdqV xyeky dfV esa dkNuh lksgs

dkuksa esa dq.My >wers eu dks eksjs eksgs

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tknw ---------------------

viuh ;'kksnk eb;k dh lkSxU/k gS rqedks

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tknw ----------------------------

                        137

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                        Hkjh lHkk esa gS djrk m/kkjh

                        tqYe djrk flre vkt Hkkjh

                        nq"V nq'kklu gS vR;kpkjh

                        gS ;s ikih Hkyk dkV bldk xyk foink Hkkjh

                        Hkjh lHkk esa gS djrk m/kkjh

                        cSBs ik¡Mo lHkh ukj Mkys

                       dksbZ ,slk u eq>dks cpkys

                        esjh fcxM+h cuk djns ikih Quk D;k fcpkjh

                        Hkjh lHkk esa gS djrk m/kkjh

                        lkeus vkt foink [kM+h gS

                        of/kd ds QUns esa e`xuh iM+h gS

                        ikj ub;k djks Hkkj vkdj gjks

                        'kj.k rqEgkjh    Hkjh lHkk --------------------------

                        ';ke l`f"V ds rqe gks jpS;k

                        uko tudh gks rqEgh f[koS;k

                        Qfj;kn HkDr djas fourh fu'kfnu djs

                        turk lkjh     Hkjh lHkk --------------------------

 

 

138 ekrk vulqb;k us Mky fn;k ikyuk

rhuks nso >wy jgs ou djds ykyuk

ekjs [qk'kh ds Qwyh u lekrh

xksnh esa fQj fQj >wyk >wykrh

dkSu djs vkt esjs HkkX; dh ljkguk >wy jgs

esjs ?kj vk;s eq>s nsus cM+kbZ

Hkwy x;s ;gk¡ vki lkjh prqjkbZ

Hkkjr dh nsfo;ks ls vkt iM+k lkeuk >wy jgs

LoxZ yksd ls e`R;q yksd i/kkjs

eqfu;ksa dh dqfV;ksa esa djus xqtkjs

ru eu ls ukp jgs iwNs dksbZ gky uk >wy jgs

rkfg le; ukjn eqfu vk;s

 ns[k n'kk eu eSa eqLdk;s

lR; ebZ vkt rsjs eu dh Hkkouk >wy jgs -----------------

 

139

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;s ru gS txay dh ydM+h vkx yxs ty tkbZ

Hktu dj HkkbZ ;s esyk nks fnu dk

;s ru gS dkxt dh iqfM+;k gok yxs mM+ tkbZ

Hktu dfj HkkbZ--------------------

;s ru gS Qwyksa dk cxhpk /kwi iM+s eqj>kbZ

Hktu dj -----------------------------

;s ru gS feÍh dk Bsyk cw¡n iM+s xy tkbZ

Hktu dj -------------------------

;s ru gS Hkwrks dh gosyh ekj iM+s Hkx tkbZ

Hktu dj ------------------------------

;s ru gS liuks dh ek;k vk¡[k [kqys dqN ukbZ

Hktu djks HkkbZ ;s esyk nks fnu dk

 

140

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tiks jke lhrk Hktks jke lhrk

jke rsjh ek;k dk ikj ugh ik;k

tkdj ds leqUnj esa lsrq c/kk¡;k

ekfj vk;s jko.kk fyok; yk;s lhrk

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dkSjo ny dk uk'k fd;k Fkk

vtqZu dks rqeus lwukbZ Fkh xhrk

tiks jke lhrk ------------------

HkDr izgykn mckjk Fkk rqeus

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rkj nhUgh rqeus i<+k;s ls rksrk

tiks jke ----------------

dfy;qx dsoy uke v/kkjk

lqfej lqfej uj mrjfg ikjk

Hktu fcuk uj tk;sxk jksrk

tiks jke lhrk ----------------

vkvks HkbZ djys gfj ls le>kSrk

jke ;fn pkgs rks D;k ugh gksrk

cgrh gS xaxk yxk yks xksrk

tiks jke lhrk ----------------------

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