Friday, 18 December 2015

हास्यम शरणम् गच्छामि का पिछला भाग

हास्यम शरणम् गच्छामि  का पिछला भाग

उस हमले में बचे राॅड ने अपना अनुभव बताया कि हमले के तुरंत बाद, हम सब कर्मचारी एक साथ सीढि़यों से नीचे भागे। हमें यह भी नहीं पता था कि आगे हमारी जान बचेगी या नहीं। हम लोग ग्यारहवीं मंजिल पर पहुंचने तक इतना थक चुके थे कि किसी की आगे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। तब हमारी एक साथी ने कहा, ‘क्यों न हम जिस तरह नये साल के आने की खुशी में 10,9,8,7 गिनते हैं उसी तर हर मंजिल की गिनती करें।’ बस हम सभी जोर जोर से हंसने लगे और गिनते हुए नीचे पहुंच गये।


मानसिक शांति पाने के लिये भी हंसना बहुत आवश्यक है। अनावश्यक भय, अनिद्रा आदि से हंसी दूर रखती है। व्यक्ति की कार्य शक्ति  बढ़ जाती है विश्वास जगता है।

लाफिंग बुद्धा चीन में सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है , इसका गौतम बुद्ध या उनके जीवन से कहीं मेल नहीं है। वह हंसी के द्वारा लोगों को ऊर्जा प्रदान करता है, अर्थात् हंसी जीवन में सुख सौभाग्य लाती है। 

हम दूसरों की गलतियों ,मूर्खताओं या दुर्भाग्य पर हंसते हैं ,लेकिन कभी कभी हंसी कष्टदायक भी हो जाती है। जब हम किसी का मजाक बनाते हैं, छोटी गलत हंसी आपके व्यक्तित्व को ही गलत ठहरा देती है। किसी की खिल्ली उड़ाना ,किसी  की भावनाओं को ठेस पहुँचाना ,किसी की परेशानियों का मजाक बनाना हास्य नहीं है। दूसरों को गिराने के लिये न हंसो। दूसरों को देखकर बनावटी हंसी हंसना या अत्यधिक हंसना अनैतिक व्यवहार हो सकता है।


शायद हास्य व्यंग्य से कहीं जन मानस प्रभावित हो। व्यंग्य तीखी कटार की तरह उनके हृदय को मंद कर उन के अंदर के भ्रष्टाचार के दानव का अंत कर दे। उनका हृदय तंत्र साफ निर्मल हो। कलम की धार होती पैनी है, वह जितना तीक्ष्ण वार करती है शायद वास्तविक खंजर न कर सके। चारों ओर अराजकता रिश्वतखोरी, काम न करने की प्रवृति समाज का नासूर बन गई है। दिन व दिन अपराधिक प्रवृति बढ़ती जा रही है। एक आस, एक विश्वास, हम समाज की बुराइयों में एक तो बना ही पायेंगे।


हास्य बोध मस्तिष्क की उर्वरता का द्योतक है। वह डर मुक्त बनाता है । जीवन में साहस का संचार होता है। हंसी रिश्तों केा मजबूत बनाती है । साथ साथ हंसना खिलखिलाना, मुरझाये चेहरों पर ताजगी ला देती है। हास्य बोध के लिये गांधीजी ने कहा है ‘आज मैं महात्मा बन बैठा हूँ लेकिन जिन्दगी में हमेशा कठिनाइयों से लड़ना पड़ा है, कदम-कदम पर निराश होना पड़ा है, उस वक्त मुझमें विनोद न होता तो मैंने कब की आत्महत्या कर ली होती। मेरी विनोद शक्ति ने मुझे निराशा से बचाये रखा है। अतः हास्यम् शरणम् गच्छामि । केवल पांच मिनट का विशुद्ध हास्य आपके जीवन को बदल देगा इसलिये हंसिये और स्वस्थ रहिये। इसे जीवन का मूल मंत्र मानिये।

दुःखी हैं पड़ोसनें

सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति तो शायद फ्लोरोसेंट लैम्प लेकर चलने पर भी नहीं मिलेगा। हो सकता है अनजाने में हम भी ऐसी हरकते करते हैं जिन पर दूसरे हंसते हैं, दुःखी होते हैं। जब मैं अपने दोनों ओर रहने वाले पड़ोसियों की ओर नजर डालती हूँ तो हैरानी होती है कि कोई इस तरह कैसे कर सकता है।



मेरे एक तरफ एक परिवार है, गृहणी मुझे अपना परम मित्र मानती है। लेकिन मेरे बच्चे जब भी उसे देखते है यही कहते हैं मम्मी डिमांड आंटी आयी हैं। वास्तव में पूरा समय पलट दूँ तो वह महिला केवल कुछ मांगने या मुझसे कुछ काम कराने ही आती है ।


मैं इसे पड़ोसी धर्म मानती रही । लेकिन मजा तो उस दिन आया जब वह मेरे पास आई ,‘भाभी जी शाम को मुझे जरा गूंजे बनाना सिखा देना बस, सब मैं तैयारी कर रखूँगी आप आकर तैयार करा  कर एक भरकर बता देना ’। उसके जाने के बाद सभी समवेत् स्वर में बोले, ‘हाँ तो रसोइन रानी! तैयार हो जाइये। ’कुछ मेरे साथ परेशानी यह है कि अधिक देर खड़ी नही रह पाती पैर थकन से भरकर सूज जाते है। वैसे भी दीवाली का त्यौहार ऊपर था सफाई से थकान भरी हुई थी।



 सांय चार बजे थे रात परिवार के साथ बाहर ही खाने का कार्यक्रम था। पतिदेव से यह कहा कि मैं आधा घंटे में आई। पड़ेासन के घर पहुंची तो वहाँ कम से कम दो किलो मैदा रखी थी और यहां तक कि खोया भी भुना हुआ नहीं था, मेवा भी काटनी थी पूरी तैयारी में करीब एक घंटा लग गया और पड़ोसन का तो पूरा इरादा था कि सारे गूंजे मुझे ही बनाने हैं। स्वयं पड़ोसन रात के खाने की तैयारी कर रही थी,



 बेटी टी॰वी॰ देख  रही थी और सास पूजा में वैठी की। अकेले हाथ गूंजा बनाना वैसे भी बहुत मुश्किल काम है। मेरा बुरा हाल था कि बेटा आया ,‘ मम्मी मेहमान आये हैं।’ उस समय तो सुनकर मेरी दम निकल गई। थकान से चूर शरीर मेहमानों की खातिरदारी कर पायेगा क्या ?



लेकिन जब घर आई तो सब के चेहरे पर मुस्कराहट, क्यों क्या हाल है ? हे राम! तो यह इनका मुझे बचाने का तरीका था। पर उस दिन के बाद से आज तक यानि छः महिने हो गये वह पड़ोसन मेरे पास नहीं आई हैं बहुत दुःखी हुई थी मुझसे पता चला रात बारह बजे तक बैठकर गूंजे बनाये थे और दूसरे दिन सारा दिन चादर ओढ़े पड़ी रही।

दुःखी हैं पड़ोसनें का पिछला भाग

दुःखी हैं पड़ोसनें का पिछला भाग

उसके बाद प्रारम्भ हुआ है मेरे निकम्मेपन का पुराण, धोखा दिया है मैंने। उस दिन से अपने मुहल्ले में मैं खडूस किसी से मतलब न रखने वाली, स्वार्थी अपने आप को बनने वाली प्रसिद्ध हूँ। जब सिर जोड़कर बाकी बैठती हैं तब हर दूसरे की कलई ऐसे खुलती है जैसे दूध की सफेदी हलवाई खुरच खुरच कर कढ़ाई से साफ करे और अंदर से काली निकल आये।


 सबसे अधिक सबको दुःखी करता है कि मेरे पास किसी और पड़ोसन की कोई चटपटी खबर नहीं होती यद्यपि हर दिन कोई न कोई पड़ोसन दूसरी पड़ोसन की खबर सुना जाती है।  मैं भी ‘हाय दैया! ऐसा, कहती सुनती हूँ, अच्छा मैंने तो नहीं सुना। ’


इसलिये मुझसे पड़ोसन दुःखी है। मेरी काम वाली बाई बताती है कि सब सिर से सिर जोड़कर कहती हें 22 नं॰ वाली तो खडूस है हमारे पेट की सुन लेगी पर अपने पेट की नहीं बतायेगी। अब करे भी क्या ? मेरे घर न सास का झगड़ा न ननद की ताक झांक, न मियाँ की झिक झिक। सुबह के निकले पति देव आठ बजे आते हैं। सीधी साधी जिंदगी। अब पड़ोसियों के पेट में दर्द हो इसके लिये पेंच कहां से लाऊँ ? हाँ कभी कभी मसाला जरूर मिला जाता है उन्हें । एक पड़ोसन आई मिक्सी मांग ले गई



 और खराब करके लौटा गई। पता चला चावल का घोल पीसा। छोंटी सी विदेशी मिक्सी चावल की मार सह न सकी और उसने अंतिम सांस ले ली। कहीं उसके पार्ट मिले नहीं। उनके मुँह से ही कई बार सुना कि उनके भाई बहन सभी विदेश में हैं तो मैंने मिक्सी उनके पास यह कहकर भेज दी कि वह उसका पार्ट मंगवा दें। मिक्सी को ठीक करादे ,‘ अगर मिक्सी ठीक करानी होती तो अपनी मिक्सी में चावल न पीस लेते



, मेरी मिक्सी क्यों मांगती। ’अर्थात अपनी होते हुए खराब होने के डर से मेरी ली गई थी। मेरा यह कहना कि पार्ट मंगा दें मुहल्ले भर में मेरे खडूस पन का विषय बन गया और कई दिन तक इसकी चर्चा चलती रही। और वह मेरी छोटी सी मिक्सी एक कोने में अपने ठीक होने का इंतजार कर रही। उसकी शवयात्रा के लिये सोच रही हूँ मुहल्ले में घुमा दूँ, और उसे लकड़ी उन्हीं से दिलवा दूँ।


एक मेरी पड़ोसन मेरी खुदगर्जी की दुहाई देती रहती है कारण मेरी सोफे पर पड़ी साड़ी को उठा ले गई कि वे बहुत अच्छी रफू कर लेती है। मैं खुश इतनी कीमती सुंदर साड़ी दावत में मेज के कोने से अटक कर फट गई थी। उसकी रफू ही तीन सौ रुपये दर्जी मांग रहा था। तीन सौ के लोभ के कारण मुझे तीन हजार की साड़ी से हाथ धोना पड़ा। जब जो रफू होने गई साड़ी दो महिने तक लौट कर ही नहीं आई।



 मांगने पर, अरे! कर दूँगी इतना महीन काम है जल्दी क्या है ? मुहल्ले भर में कान से कान खबर गई ऐसी खडूस है काम भी कराती है और एहसान भी नहीं मानती, तुरंत काम चाहिय। उन्हें वह साड़ी पहने देखती हूँ तो अपने कलेजे में लोटते सांप और बच्चों की हंसी सब मिलकर मुझे वेवकूफ साबित कर देती है।

हाय! गजब

कैसे कैसे घर ? गजब के घर, गजब के लोग कहाँ से पकड़ कर लाते हैं ये सीरियल वाले घर। महिलाऐं भारी भारी जेवर कपड़े से लदी रहती हैं यहाँ तक रात सोते समय भी न साड़ी सिकुड़े, न जेवर टूटे, न चुभे। सोकर अंगड़ाई लेकर उठेंगी, गजब जो जरा भी बाल बिखरें,जिसे कहते हैं न तुम्हारा बाल बांका भी नहीं होगा । एक तरफ घर नीलाम हो रहा होगा बहुओं को फिक्र होगी दूसरे की टांग कैसे खींचे ? एक भी जेवर कम नहीं होगा। न जाने कौन से देशों से गजब की कोमलांगी आई है पति से तकरार हुई उठाया सूटकेस वह भी चालीस इंच वाला। हैंगर साहित कपड़े डाले और उठाया चल दी ,सूटकेस ऐसे झुलाती जायेगी जैसे दारा सिह से बाहें उधार ली थीं, अब सुशील कुमार या विजय कुमार से मांग लेती होंगी। यहाँ तो कभी सूटकेस की जरूरत पड़ती है तो पहले दुछती पर से लाना पड़ता है या सामान ठुंसा होगा और फिर उठाने में कमर ही लचक जायेगी पर बाप रे, गजब दो इंच की कमर जो जरा लचके पटर पटर चलती जायेगी।
क्या गजब का काम करने का माद्दा है। पूरे बड़े महल जैसे घर चमचमाते हुए, पर एक भी नौकर नहीं, कभी कभी रसोइया काका अवश्य दिख जाता है। क्या झक्कास सफेद कपड़े ,काम करता वह भी नहीं दिखेगा, मेज पर व्यंजन क्या गजब ? मेज के इर्द गिर्दे दस दस सदस्य छोटा सा बाउल एक काम करने वाली वह भी वही साड़ी जेवर से लदी न दाग न धब्बा । एक गैस पर फटाफट एक गद्दी पालक से बड़ा भगौना पालक पनीर तैयार कर देगी। सब्जी कढ़ाई भरकर बनायेगी। हाय! कहाँ से खरीदती भी है वो सब्जी, एक गोभी से ही कटोरा भर बना देगी। इतना खाना बनाने में अपन को तो हुलिया टाइट हो जायेगी। न झाडू न फटका न पोछा न               धुलाई घर है कि उसे देख मुझे आती है रूलाई, ऊपर वाले यह कैसी दुनिया बनाई। हमें भी दे दे जादू भरे हाथ ऐसी मजबूत कलाई, सबको बहू आज के जमाने में सिर ढके परोसते नजर आयेगी, खायेगे सब पर सीरियल की बहु कभी खाना नहीं खायेगी। न मेज पर न रसोई में बहू कौन से देश से आई ? कहाँ से यह ताकत पाई ?
सबसे ज्यादा हैरानी होती है चाहे कोई मरे एक मिनट में क्या सफेद कपड़े पहन पहन कर लिपटकर रोने आ जाती हैं । सब औरत मर्द एकदम सफेद कपड़े तैयार रखते हैं कोई मरे और हम पहने। तुरंत साड़ी ब्लाउज तैयार एक दम चुस्त, एकदम फिट, न ढीला न झोला, हीरो साड़ी लाकर देगा और उस रंग का ब्लाउज पेटीकोट न जाने कहाँ से बराबर में मिल जाते हैं पहन कर फिर चली आती हैं वैसे एक भी कपड़ा नहीं टंगा होगा। एक अलमारी में चंद साड़ी लटकी होंगी पर क्या भक्कास सुबह दोपहर शाम बदलती रहेगी। तैयार ऐसी रहेगी हमेशा जैसे शादी में जाना है पर कहीं जाना हैं कहेगी अभी तैयार होकर आई, अब भैया इस में और कया तैयार होगे।


बच्चों का ट्रेंड कम है बड़े बड़े बच्चे मिलेंगे, उनके बच्चे नहीं मिलेंगे। अगर अपने घर में दो तीन देवरानी जिठानी दो बच्चे भी होंगे तो लगेगा घर युद्ध का मैदान है। एक भी चीज ठिकाने पर नहीं मिलेगी पर सीरियल में पूरे पूरे परिवार में एक या दो सभ्य बच्चे होंगे जो कभी कभी कमरे में मिल जायेेंगे। असली हम दो  बस का जमाना सीरियल में दिखता है, बहुत सभ्य बच्चे। मैने तो उदण्ड बच्चे देखें हैं भागते दौड़ते गले में झूलते, बच्चों के होने के साथ मोती के जेवर तो बड़ी बड़ी दावतों में नहीं पहन पाते पर सीरियल की महिलाएं मोती के सतलड़े झुलाती रहती हैं। मतलब यह है अरबपतियों के घरों के सीरियल आम जनता को ललचाने के लिये दिखाये जाते हैं कि तुम तो भैये चींटी हो इन सबसे ऊपर जब बच्चे पूछते हैं, मम्मी आप सीरियल वाली मम्मी क्यों नहीं बन सकती तब सबसे ज्यादा बेवकूफ अपने को ही पाते हैं।




अखबार के मारे हैं हम

हमारी श्रीमती जी का और अखबार का उतना ही दूर का नाता है ,जितना जमीन पर बहती बाढ़ और सर्वे करने आये हवा में तैरते मंत्री जी का है। अखबार का उपयोग उनके लिये सर्वाधिक आलमारी में बिछाने के लिये ही है। दीवाली के ऊपर तो कभी कभी अगर उसकी सुबह के बाद सूरत देखना भी चाहें तो हमें कपड़ों का हुजूम उस पर से हटाना पड़ेगा।


श्रीमती जी का सबसे प्रिय अखबार है बर्तन साफ करने वाली रामप्यारी, जिसकी सूरत यदि न दिखे तो श्रीमती जी के चेहरे पर प्रलयंकारी तूफान के लक्षण नजर आते हैं, या एक उदिग्न प्रेमी की भांति नजरें दरवाजे पर ही अटकी रहती हैं। हर आहट पर चैक कर देखने लगती हैं कि कब उसकी नजरें इनायत हो। उनका दूसरा अखबार है पड़ोसन ,जिनकी पहुँच मुहल्ले के हर घर में है और वहां से ऐसी खबरें निकल कर आती हैं, जिनसे पड़ोसन के स्वय घरवाले भी अनजान हैं।


कभी कभी सोचते हैं शायद हमारी अक्ल पर पत्थर पड़ गये थे, या अक्ल घास चरने गयी थी जब हमने अपनी श्रीमती जी को अखबार पढ़ने की सलाह दी थी। हमको हमेशा बड़ी कोफ्त होती थी जब कभी घर आते, मन करता था कि मेज पर दौहत्थड़ जमा जमा कर राजनीति की बहसें करें। अखबार जब सुबह ही सुबह आता है तो उसके बाद किसी चीज पर ध्यान नहीं लगता है, जब तक कि अखबार का एक एक शब्द न चाट जायें।  अखबार पढ़ने के बाद दिमाग में कीड़े कुलकुलाने लगते हैं कि आज विधान सभा की बहसों का क्या नतीजा निकलेगा। दो पार्टियों की अनबन में किस का नुकसान होगा।


अब गप्पाजी रहेंगे या जायेंगे। पर किस पर यह सब अपने विचार थोपें ? क्योंकि सुबह हुई कि श्रीमती तो नमक मिर्च धनिया को लेकर रोना रोने लगती हैं या उनसे बात करने की कोशिश करो तो उनकी बातों का सार यह हुआ करता है, कि कल सामने वाले दीवान साहब दिल्ली जाकर अपनी लड़की की सगाई कर आए और सुना कह रह थे कि लड़का बिलकुल मम्मों के दुल्हा साहै।


देखो न कैसे मेरे बहनोई पर दांत लगाये बैठे थे, चाहे होगा दो कौड़ी का पर चले है मेरी मम्मो के दूल्हे जैसा बताने ,या कहेगी ,‘अरे ! सुना तुमने कपूर साहब है न ,उनका लड़का है न, कल काली पेन्ट, काली बुशर्ट और काले जूते पहने एक लड़की को मोटर साइकिल पर बिठाकर ले जा रहा था। मरा बिलकुल बिगड़ गया है।


अब आप ही बताइये कि सुबह ही सुबह प्यारी प्यारी गरमागरम अखबारी बहसों को छोड़कर इन बातों में किसका मन लग सकता है। शाम को दफ्तर से लौटने पर दिनभर की जोश खरोश से हई बहसों का नतीजा सुनाने का मन होता था ,पर श्रीमती जी बेचैन होती सुबह के बाकी बचे समसचारों को सुनाने के लिये ,उनका दोपहर का अखबार परिमार्जित खबरें ले आया होता है । अजी सुनते हो दीवान साहब की लड़की ने भाग कर कोर्ट मैरिज कर ली, जबकि परसों ही तो दिल्ली से सगाई तय की थी।


अखबार के मारे हैं हम का अगला भाग

अखबार के मारे हैं हम भाग 2

खबर लाती सुनते हो वो मास्टरनी है पिछली कोठी की किरायेदारिन उसके घर में से एक लड़की मिली है ,कह रही थी मेरी बहन की लड़की है ,पर सुनते हैं कल चार आदती उसे छोड़ गये थे। अब इनमें ऐसी कौन सी बात है जिसे सुनकर हम में रस संचार हो यह बात तो आम दिन की बातें हैं पर उनके लिये यही रस भीनी जलेबियां है। हो गया न हमारी गरम गरम चाय का सत्यनाश। इसलिये जनाब हमने अपनी श्रीमती जी को सलाह दी कि वे दिन भर इधर उधर की बातों में घूमती हैं इससे अच्छा है कि अखबार पढ़ा करें। साथ ही सलाह दी एक दो पत्रिकाएं भी मंगाऐं जिससे थोड़ी जनरल नाॅलेज बढ़ेगी, छोटे से मुहल्ले से निकल कर विश्व की सभी हलचलों में दखल दें।



हमारी इस सलाह का असर करीब एक महीने बाद से दिखाई दिया। हम आश्चर्य से ठगे से अब रोज क्या देखते हैं हमारे पास अखबार पीछे आता है, पहले वे उसे एक बार पलट कर अवश्य देख लेती है। कभी एक दिन हम अच्छी तरह से अखबार न पढ़ सकें और दूसरे दिन उसका तकाजा करें तो उसका कभी एक कोना गायब है ,तो कभी दूसरा कोना गायब। हम सोचते थे शायद अब अखबार पढ़ने का शौक लग गया है इसलिये जो खबर अच्छी लगी या कोई आर्टीकल अच्छा लगा उसे काट लेती होंगीं।



परन्तु कभी कभी हमें लगता अखबार  में खबरें ही खगरें हैं क्या उठा पटक है, पर उनके मरे इस निगोड़े अखबार में क्या आया है ,कुछ भी तो नहीं आया है ? पता नहीं क्या चाटे जा रहे हो, लो कर लो बात यहां तो कांग्रेस की गद्दी पर संकट छाया हुआ है। कुर्सी की छीना झपटी है , सारा देश सूली  पर टंगा है। अखबार है भूचाल और उनके लिये कुछ उसमें है ही नहीं। हम कहते जी तुम्हारे लिये मरने जीने की खबरें ही खबरें होती है पर बाबा तुम कुछ पढ़ा करो।



कुछ दिन बाद ही जासूसी करने का मालूम हुआ कि यह अखबार क्या रंग ला रहा है ? आये दिन कभी कोई अखबार आता कभी कोई। कभी पैट्रियट , कभी हिन्दुस्तान टाइम्स कभी नव भारत टाइम्स। हम उलझन में ये अखबार वाले को हो क्या गया है, जो रोज रोज पलट कर अखबार डाल रहा है। अंग्रेजी का भी एक नजर आने लगा। हाॅकर पर हम डंडा ले चढ़ दौड़े कि हमें तू क्या धन्नासेठ समझ रहा है जो तीन तीन अखबार खरीदें पर पता चला श्रीमती जी का हुक्म है। सोचा शायद ज्ञान पूरा बढ़ाया जा रहा है। धीरे धीरे आये दिन घर में ंतरह तरह की पत्रिकाएं दिखाई पड़ने लगीं। हमने भी सोचा चलो पड़ोसियों की आयं-बांय से छुट्टी और कुछ पढ़ने लिखने में भी मन लगेगा।



बी॰ए॰, में इंगलिश में कमजोर थी शायद अब अंग्रेजी सुधारने की इच्छा हो आई लगती है ? जो अंग्रेजी अखबार  मंगाया जा रहा है। चलो बड़ा अच्छा है कहती थीं घर में पड़े पड़े मन नहीं लगता है, कुछ पढ़ने लिखने में मन लगेगा। पत्रिकाओं में तरह तरह के पकवान आते हैं नये नये पकवान खाने को मिलेंगे। नयी नयी डिजाइन के तकिए के गिलाफ आदि काढ़े जायेगे। बस कुछ रुपये महिने खर्चा ही तो बढ़ेगा। पर हमें क्या मालूम था कि हम यह कुछ रुपये का नहीं वरन् सात आठ सौ रुपये महीने का खर्चा अपने सर पर बांध रहे हैं।
हम तो आफिस में लाटरी टिकिट खरीदने वालों को जुआरी और सरकार को जुआ खेलने के लिये प्रोत्साहन देने वाली कह रहे हैं। अपने साथियों को एक लम्बा लेक्चर पिला रहे हैं कि इस प्रकार सरकार लाटरी निकाल कर जनता को लूट रही है। जनता को बिना मेहनत किये बिना हाथ पैर हिलाए, रुपया पाने का तरीका सिखा रही है। जनता को जाहिल और निकम्मा बना रही है। और घर जाकर देखते है कि श्रीमती के पर्स में तरह तरह की रंग बिरंगी टिकटें रखी हैं, जिन पर लिखा है महाराष्ट्र सरकार लाटरी प्रथम इनाम ढाई लाख, उत्तर प्रदेश लाटरी प्रथम इनाम पांच लाख रुपये।


इनाम निकलने के काफी दिन पहले तक उनके चेहरे पर रौनक छाई रहती और कहती देख लेना इस बात तो इनाम मेरे नाम ही निकलना है। मैं इस बार यू॰पी॰ का टिकट खरीद कर जैसे ही दुकान से बाहर आई थीं सामने से मुर्दा आता दिखा था। और आज मेरी बायी आंख फड़क रही है, कल यू॰पी॰ का ड्रा होने वाला है। अब की बार तो मैदान मार ही लिया समझो।
अखबार के मारे हैं हम भाग 3 

अखबार के मारे हैं हम भाग 3

अखबार के मारे हैं हम का पिछला भाग

इस रोड से घर को फौरन बदल लेंगे... नया फर्नीचर भी ले आयेंगे। अगर पहला इनाम न मिला तो कोई न कोई तो मिलेगा ही आठ दस जगह की मैंने लाटरी खरीद रखी है। हरेक में न सही चार ,पांच में कोई न कोई इनाम निकले तो हम आदमी हो जाएंगे। हां, एक बात कहे देती हूँ ,यह न कहना कि क्या गंवारों की सी बात कही है। मैं एक या दो वाली बात नहीं मानूंगी कम से कम चार पांच तो होने चाहिए। और हम सिर पकड़े उस कुघड़ी को कोस रहे थे। जब हम बड़ी शान से लाटरी के टिकिट खरीदने वाले अपने दोस्तों को आफिस में लेक्चर पिला रहे थे।



यही नहीं आये दिन पोस्टल आर्डर मंगा मंगा कर क्रासवर्ड पहेलियाँ आदि भरी जाने लगी थी। अखबार ने पैसे कमाने का चस्का लगा दिया था। उनकी एक से एक बढि़या दिल को मखमल पर लोटा देने वाली प्लानिंग व ख्याली पुलाव अपने गले से नीचे नहीं उतर पाते थें ,पर कमाई के लिये खरीददार चाहिए जो पैसे दे, हमारी श्रीमती जी पैसे दे रही थीं और कमाई और लोगों की हो रही  थी। हल्की फुल्की प्रतियोगिताऐं भरकर आॅलबेब ट्रांजिस्टर आधे दाम में खरीदने के चक्कर में पूरे पैसे गंवा मुंह बाये उनके चेहरे के आत जाते रंग को देखा करते थे।



उनके अखबार पढ़ने ने ऐसा रंग दिखाया कि हमको आये दिन घर में नई नई चीजें दिखाई देती थी। किसी दिन देखते श्रीमती जी प्लास्टिक की बाल्दी में छः साबुन के पैकेट लिये चली आ रही हैं। किसी दिन मैजिक के दो डिब्बे अगर उनसे पूछिए कि इतने साबुन का क्या होगा तो जबाब मिलेगा ,‘अरे ! कैसा अखबार पढ़ते हो। मैंने कल ही तो अखबार में पढ़ा था, कि साबुन के छः डिब्बों के साथ एक बाल्टी मुफ्त।’ अरे! वाह क्या बढि़या बात है, कुछ रुपये की चीज मुफ्त आ गई फिर साबुन रोज के काम आने की चीज है।



मैजिक की ओर देखकर बोली, घर में नहाने वाला साबुन खत्म हो गया था। हमने चौंक पर देखा कि नहाने वाला साबुन भी ऐसे डिब्बों में कब से आने लगा तो सब कुछ साफ था, उस पर लिखा था दो के साथ मोती सोप मुफ्त। अरे ! कैसा अखबार पढ़ते हो ,इतना बड़ा बड़ा तो लिखा था दो के साथ एक नहाने वाला मुफ्त। हद तो जब हो गई हमें दूध में घोल घोल कर चुस्ती फुर्ती के आइटम पिलाये जाने लगे , कारण उनके साथ मिलने वाली चम्मचें थीं।


हां तो इस मर्ज की समाप्ति यही नहीं थी। कभी नहाने वाले साबुन के लिये मटर के पैकेट खरीदे जाते तो कभी गिलास के लिये एनर्जी ड्रिंक पीकर उसके ढक्कन इकठ्ठे किये जाते। बच्चों को  आइसक्रीम जबरदस्ती खिलाई जाती जिससे ताश का पैकेट मिल जाये। कभी काली वाली को छोड़कर श्रीमती ने दूसरी ड्रिंक को हाथ नहीं लगाया। पर अब तीन लाख ने उनका आंख खोल दी थी ,अब दूसरी के आगे काली बेकार हो गई है। किसी दिन शृंगार मेज पर कोई क्रीम दिखाई देती किसी दिन अन्य। कभी कोई सा तेल कभी कोई सी शेविंग क्रीम।



हम हैं अपने चेहरे और बालों की सही सलामती के लिये भगवान से दुआ मांगते डोलते हैं। क्रीम लगानी ही पड़ती, दूसरे दिन दूसरी से चाहे ऐलर्जी हो जाये और उसके लिये डाॅक्टर को पूरी फीस देनी पड़े साथ ही चेहरे और बालों की सलामती की दुआ भगवान से मांगते रहते हैं।


मजाक उनका उ़ड़ा सकते नहीं क्योंकि जरा से मजाक से उनके दिल को ऐसी चोट पहुँचती है कि आठ दस दिन तक उसमें दरार पड़ी रहती हैं, और हमें फीकी चाय और जली दाल रोटी खाने को मिलती हैं। पहले उनके लिये अखबार एक रद्दी का ढेर और आलमारी में बिछाने के सिवाय और किसी उपयोग का नहीं था, अब वही उनके लिये सबसे अधिक उपयोगी बन गया है। उनके हिसाब से अखबार पढने से उन्हें एक नया प्रकाश मिला है।


ज्ञान का भंडार उनके आगे खुला है। मतलब घर नई चीजों से भर गया है। मुफ्त चीजों से, चाहे उनके कारण से खरीदी गयी चीज फालतू ही क्यों न हो परन्तु, मुफ्त चीज का आर्कषण, बस पैसे वसूल। कितनी ही इनाम पाकर तिजोरी भरने के चान्सेज हैं वैसे अब तक घर में सिर्फ रद्दी का ढेर अवश्य ऊँचां होता जा रहा है। उनके लिए वह घड़ी महाशुभ वरदायनी है जिस क्षण से उन्होंने अखबार पढ़ना शुरू किया है , और हम , न बाबा ,हमसे न पूछो तब ही अच्छा है।


रद्दी अधिक पैसों में बिकने लगी है पर हमारी जेब हल्की हो गई है। अखबार उनके लिये नियामत और हमारे लिये कयामत बन गया है।

अखबार के मारे हैं हम

जनता रस

एक राजा के बाग में एक अदभुत वृक्ष उगा। रातों रात वह एक बड़ा वृक्ष बन गया। दूसरे दिन उसमें एक फल लगा उसमें से रस झरने लगा। राजा ने एक हंडिया उसके नीेचे लटकवा दी। प्रातः देखा तो हडि़या लबालब भरी थी। राजा नहीं चाहता था कि उस की एक बूंद भी बेकार हो। उस ने सात विद्वान बुलाये और हल पूछा कि बिना छलके हंडिया कैसे उतारी जाये। सातों विद्वान विचार विमर्श करने लगे।


एक विद्वान ने लंबी सीढ़ी लगाई और चढ़कर हडिया में झांका लाल फल का लाल शहद सा गाढ़ा रस देखकर उसका मन चखने का करने लगा उसने पेड़ से एक पत्ता तोड़ा उसकी चम्मच सी बनाई और एक चम्मच रस पी लिया। वाह! मजा आ गया। उसने एक चम्मच रस और पी लिया और बोला, सावधानी से उतारने पर उतर आयेगी।

‘देखूं’ कहकर दूसरा विद्वान चढ़ा, उसने कहा, नही अभी छलक जायेगा उसने और बड़ी पुंगी बनाई और दो चम्मच रस पी लिया, ‘अरे यह तो अदभुत रस है’। सुनकर बाकी पांचों विद्वान भी एक एक कर चढ़ें और रस पी गये अब उसमें आधा भी रस नहीं बचा था । कह देंगे बहुत जहरीला रस था इसलिये उसे गड्ढे में दबा दिया एक विद्वान ने कहा।


‘नहीं नही।... राजा यह नहीं पूछेगा कि तुम्हें कैसे मालूम ?’
‘चलो आसपास के घरों में देखते हैं जिसके घर में ऐसा कुछ पदार्थ होगा निकलवा लेंगे।’
विद्वानों ने मुनादी करवा दी जिसके पास भी लाल शहद है एक एक चम्मच इस हडिया में डाल दे नहीं तो राजा द्वारा उस स्थान के सभी मधुमक्खी के छत्ते अपने कब्जे में कर लिये जायेंगे।


इसके साथ ही वो घर घर देखनरे लगे कहां मधु मक्खी का छत्ता है। जनता घबरा गई और हडिया में डालना शुरू कर दिया। लेकिन उसका रंग वैसा लाल नही हुआ। अब विद्वान उलझन में पड़ गये राजा ने भी सीढ़ी से चढ़कर देखा था। यदि वैसा रंग नहीं मिला तो राजा समझ जायेगा और नौकरी खतरे में पड़ जायेगी।



यदि जरा सा खून मिला दिया जाये तो रंग वैसा ही हो जायेगा। एक बूंद शहद में दो बूंद खून मिलाया बिलकुल वही रंग हो गया। शहद की हाडी फिर जनता के बीच पहुंच गई, अपना एक एक बूंद रक्तदान करते जाओ तो तुम्हारा भविष्य सुरक्षित रहेगा नहीं तो जो कुछ भी है वह राज्यकोष में चला जायेगा और तुम्हें राज्यद्रोह के अपराध में जेल भेज दिया जायेगा, यह राजा का आदेश है । यदि अपना रक्त खुशी खुशी दोगे तो राजा में बहुत ताकत आ जायेगी वह दूने जोश से तुम्हारे हित के लिये काम करेगा।


मरती क्या न करती जनता रक्त देती गई। राजा ने विद्वानों को बिना रस फैलाये रस लाने के लिये मालामाल कर दिया फिर रस चखा, रक्त पीकर राजा में शक्ति आई तो उसने उस वृक्ष के फल के और बीज लगा दिये विद्वान असली रस अब अपने घर वालों को भी पिलाने लगे। जनता बार बार हडिया भरती विद्वानों के चेहरे चमकने लगे और जनता सूखने लगी।

हमें गिड़गिड़ाना आता है

आम जनता का काम केवल और केवल गिड़गिड़ाना है । हे देवों के देव ,हमारे परम पिता नेता ,आप तो पांच साल मैं एक बार गिड़गिड़ाते हैं बाकी समय तो जनता ही गिड़गिड़ाती है। हम तो रोज गिड़गिड़ाते हैं।

न लकड़ी है , न कोयला , न कंडे ,न बिजली । अधिकतर जमीन है ,मालिक नेता । किराये के मकान में रहने वालों की नेता बनते ही बड़े बड़े माॅल कारखाने इंडस्ट्री खड़ी हो जाती है ।

और हर रिश्तेदार मालामाल । हमारे पास तो आपके धरों के आसपास फुटपाथ पर खड़ी की छोटी सी छबरिया है ,किसी न किसी पेड़ के नीचे या बस्ती में एक कमरे में घुसी दस जान । पेड़ को तो आपके कारिंदे काट ले जाते हैं , आपके अफसर उसकी टहनियां काट कर पेड़ के नाम पर आपकी किसी घोषित बंजर जमीन पर गढ़वा देते हैं जो तीसरे दिन सूख जाती हैं पर आपका वृक्षारोपण समारोह हो जाता है।

सरकारी नौकरी

‘ए !बहू जी तुम तो इत्ती जगह जात होई ,मेरे लाला के लिए नौकरी लगवाय दो ’ मेरी मनुहार करती काम वाली बाई बोली ।

‘कितना पढ़ा है ? क्या काम कर सकता है ?’
मेरे अंदर समाज सेवा करने  का उत्साह कुलबुलाया ,किसी के लिए कुछ करने का जज्वा जोर मारने लगा, तुरंत कहा।

‘बाने दसई को साटिफिकेट लियो है, एक हजार लगे वैसे स्कूल में सातवीं तो पढ़ो हतो पास कर ली है।’
‘तब क्या नौकरी लगेगी ? पास मैं गोदाम है लगवा दूं  मेहनत का काम है कार्टून उठा उठा कर रखने होते हैं।।’‘ अरे बापे, काम ई तो ना होत ,कछु करे न चाहत ,जई लिए कह रही है कि सरकारी लगवाय दो,चपरासी की तौ लग जायेगी वामें दसई पास होनो चहिये।’

‘ये दसवीं के कागज कहां से बनवाये।’मेरे अंदर का जासूस चैतन्य हो गया
‘चैं बन जात है, हजार रुपया लगत है सरकारी नौकरी में दसवीं पास चाहिए न ’।
‘सरकारी ! सरकारी नौकरी क्या इतनी आसानी से लग जायेगी ।’


‘खच्च कर दूंगी ,बाकी चिंता मत करो, काई भी जगे लगवा दो अब का करुँ बिलकुल हर्रम्मा है । बासे काम ही तो नाय होत। पिरैवेट में तो काम कारनो पड़ेगो । काम नाय करेगो तो कल निकार देंगे । सरकारी में तो एक बार परमामेंट है जय फिर कोई माई कौ लाल न निकार सकत। ’


नहीं मालुम फिर उसका क्या हुआ , क्योंकि मैंने मना कर दिया कि मैं नहीं कर पाऊँगी ,तो वह काम छोड़ गई । जाते जाते  मेरे मुहँ पर तमाचा सा मार गई ,‘मैंने तो सुनी त्यारी भौत पौंच है , तौ का फायदा काम करवे तै ।’

फिर दिखी भी नहीं । सच है, सरकार कई डिब्बे वाली ट्रेन है जिसके फस्र्ट ,सेंकंड ,थर्ड पर तो ऊपरी तंत्र टांग पसार कर सो रहा है । अगर एक भी सीट खाली तो मौजूदा व्यक्ति के परिवार का बच्चा ही सही स्टेशन से चढ़ जायेगा स्लीपर पर अफसर बैठे हैं ,सो रहे हैं।

कुछ डिब्बे जनता के इसमें ठुस्सम ठुस्सा हो रही है और सरक यार । सरक यार । दुसरे दरवाजे से गिर जाये कोशिश करते हैं और खुद लटक कर ही सही चढ़ जाते हैं ,फिर क्या बस ठुसना चाहिए । रेल तो अपने आप चल रही है चलती जायेगी ।

आराम बड़ी चीज है मुंह ढक के सोइये,
किस किस को याद कीजिए किस किस को रोयिये।’
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम
दस मलूका कह गए सब के दाता राम।

और कितना गिरोगे

गिरने का दौर जारी है । रोज रिकाॅर्ड टूट रहे हैं ,गिरने के रेकार्ड तो होते ही हैं टूटने के लिए ,अब चिंता रोज रोज रिकाॅर्ड टूटने की है ,तो रिकाॅर्ड ही नहीं उसे बिलकुल शून्य पर पहुंचा दो।

अब लो कर लो बात ,रुपये को गिरा हुआ क्यों बता रहे हो ?

यहां तो हर बात मर्जी पर चलती है । बोलने पर चलती है ,अगर नेता कह रहे हैं मंहगाई गिर रही है तो गिर रही है ,उसे उठी कैसे मान लोगे ? रही रुपये की बात तो गिर कहां रहा हैं ? ऊपर उठ रहा है ,गिर तो डालर रहा है ।हम तो ऊपर जा रहे हैं । जनता को समझना चाहिए हम रिकाॅर्ड स्टार पर चमक रहे हैं वह एक और हम चैंसठ, हमारी संख्या ज्यादा हुई न।


अब नेता समझायेंगे, पर्यटन बढ़ रहा है ,विदेशियों को भारत अब सस्ता लग रहा है ,है न बल्ले बल्ले तो उठाना हुआ न, नेता संसद में उठ रहे हैं । मुक्के लहराते हैं तो कितनी टी आर पी ,टी वी की बढ़ रही है । मुफ्त का तमाशा देश विदेश को मिल रहा है।कितना उठ गए हैं हम, नई नई गालियाँ ,आरोप प्रत्यारोप लगा कर बोलने की क्षमता उठ रही हैैं।

पहले कथा कहानियों में ,अखबार में, फिल्मों में हम आदर्श पाते थे और अपने गिरने का दुख होता था। हम भी ऐसे बनेंगे, अब हमारा कितना मनोबल उठ गया हैं की हीरो से ,नेताओं से ,नायक से गालियां सुनते हैं और सुनाने वाला अपना काॅलर ऊँचा करता है, वह देश का हीरो है।

नेता प्रसन्न है उसने विरोधी को चुन चुन कर सुनाई हैं कि भला आदमी मुॅह से बोल भी नहीं पाये। हर कोई नापता है कितना गरियाए । भाषण का स्तर उठ गया । महिलाएं कितना उठ गई हैं दुर्गाबाई, लक्ष्मीबाई, अहिल्या बाई  से मुन्नीबाई, चमेलीबाई बन गई हैं ।छम्मक छल्लो कहलवाने पर खुश हैं ।
छल्ले सी ड्रेस पहन कर इठलाती हैं और हम कह रहे हैं गिर रहा हैं स्कर्ट उठ रहा है ,टाॅप उठ रहा है । सब कुछ उठ रहा है ,हमारी बेईमानी का स्तर उठ रहा है । गिर रहा है तो देश गिर रहा है । हमारी संस्कृति गिर रही हैं। हमारा ईमान, हमारा चरित्र गिर रहा है ,पर इससे कुछ होता नहीं हैं इसके गिर कर हमारा बैंक वैलेंस उठ रहा हैं अब बस इंतजार है तो


तुमने कुचले हैं मिट्टी के घरौंदे,

कितने सपनों को उसके नीचे दबाया होगा।


कोई कथित कीड़ा ही दफन मिट्टी से,

पाके मिट्टी की ताकत सरमाया होगा।

लहर

भारत में हर चीज की लहर आती हैं जैसे सागर में लहर तट की और दौड़ती है फिर दूसरी लहर तट की ओर आती है ,एक के बाद एक लहर आती जाती है। मनोरंजन से प्रारम्भ करे तो सिनेमा मैं आजकल एक से एक भद्दी गालियां बकी जा रही हैं ।बताया जाता है दूसरी भाषा मैं मतलब शुद्ध है वह भी लड़कियो के मुँह से तो टी आर पी बहुत बढ़ेगी लड़कियाँ कोई लड़कों से कम हैं।


वो तो अब हर मामले में उनसे आगे हैं । जितनी ज्यादा गाली उतनी ज्यादा सीटी ,अब थर्ड क्लास में सीटी न बजे तब तक सिनेमा क्या ? और चलेगा भी कैसे ? फिल्म नगरी बंद करानी हैं क्या उपदेश सुनने तो जा नहीं रहे।थर्ड क्लास सब श्रेय ले जाये यह कैसे हो सकता है।


अपर क्लास कोई सीटी बजाने में कम है । गाली देने और लिखने वालों को हम सम्मान देते हैं । उन्हें बड़े सम्मानों से लाद देते हैं ।जब भटियारे लड़ते हैं तब ऐसी गाालियाॅं सुनने को मिलती है ।
लहर गाने की आती है ,चमेली बाई चली तो एक से एक फूहड़ बाईयां आ गई ,मुन्नीबाई और भी जितनी बाईयां हैं सब मटकने लगीं और बारातों की जान बन गई । एक धाय धू का गाना आया तो कान फट गए सभी पटाके फोड़ रहे हैं।


साहित्य में लहर आयेगी विमर्शों की कभी दलित आएंगे तो कभी स्त्री मतलब ये बेचाारे हैं । क्यों बेचारे हैं यह अलग बात है। तो उसमें भी जो जितना गन्दा लिख सकता है लिख कर नाम कमा रहे हैं । बहुत वेबाक लिखा?है। अच्छा है । सब खोल कर रख दिया है।


कवितायें आजकल बेटियों पर हैं, कल तक माँ ही माँ थी ,अब भू्रण हत्या है तो कल बहू आजायेगी ,क्योंकि बेटी ही बहू बनती है ,पर बहू बनते ही मुँह बिगाड़ खलनायिका बन जाती है । आजकल तो बहू हर सीरियल में रो रही है और बेटिया माँ के साथ मिल कुचक्र रच रही हैं।

आंसुओं की धार बंध जाएगी पर क्या मजाल रुमाल की जरूरत पड़ जाये । यहाॅं तो आॅंख पीछे भरेगी नाक  पहले दौड़ेगी

आॅंखें दोनों बह रहीं भीगे आंसू से गाल
तुरत नाक बोली नहीं मैं भी हॅूं कंगाल।


भगवान जी की लहर चल जाती है कभी हनुमान जी ,कभी देवी जी ,कभी शनि महाराज और आजकल सांईबाबा के अब पीछे पड़े हैं । कुछ तथा कथित संत परेशान है सब मलाई साई बाबा के रखवाले खा रहे हैं उन्हें कोई पूछ ही नहीं रहा है ।

सांई को ही क्यों  पूजे जा रहे हैं । सांई बाबा ऊपर नौ-नौ आंसू रो रहे होंगे । कभी धन को हाथ नहीं लगाया ,बांटा ही बांटा,अब सब रिश्वत दे रहे हैं। सोने के सिंहासन पर बैठा रहे हैं ।


एक वक्त संतोषी माता का  आया था अब कहाँ है पता नहीं ? लहर तो आनी जानी है कब आ जाय कब लौटे जायं भगवान करे आपकी । अरे! बाप रे अब आपकी कहने से गलत समझेागे मुश्किल तो अब राधे राधे बोलने में हो गई है । राधे का ध्यान धरो लााल पोशाक  सामने आ जाती है ।
पूरे अक्तूबर माह में कोशिश कर बापू मुॅह से नहीं निकाला, तुम सबकी ऐसे ही लहर चले और निकल पड़े।

समझ अपनी अपनी

बोर्ड की अपनी दुनिया है निकलो पढ़ते जाओ अब चलो मैं जो पढ़ा जाये जो समझ में आय ओ नाम में तो जरा से हेरफेर से क्या बन जाता है राधा रमन अधिकतर "र" का आधा हिस्सा बच्चे मिटा ही देते है

एक जगह लिखा था कागज चिकटावो नवा अब हम समझे नया कागज लगाओ नये कागज को चीकट कर दो हम ने सडक से पोंछकर कई कागज लगा दिये पता नहीं क्यों कागज लगवाने की कह रहा है शायद मकान को नजर न लग जाये बड़ी साफ सुथरी दीवार है।
बोर्ड पढ़ते जाय और परेशान की अभिताभ बच्चन ने साड़ी भी बेचना शुरू कर दिया है और फिर साड़ी का सीमेंट से क्या वास्ता बड़ा कड़क मांड लगाती होगी ये बिनानी कम्पनी एस ए डी आई वाइ ओ एन बिलकुल ठीक साडि़यों के लिये बिनानी सीमेंट पर हाथ मे अभिताभ बच्चन साड़ी नहीं मकान का माॅडल लिये अब हम महान वाले होते तो सदियो पढ़ते साड़ी पहने रहते है तो साडि़यों ही पढ़ेंगे

अब कोठी पर लिखा रहता है सावधान यहाँ कुत्ते हैं हांँ ठीक है सब बूढ़े ही रहते होंगे एक समय आता है कुत्ते समान ही हो जाता है टिपिर टिपिर सामने बैठा चैकीदार करता रहता है और जो सामने डालो खा लेता है तो यही तो लिखा जायेगा।


आगे बढ़ी तो लिखा था केश काउंटर वाह! गजब क्या बिढ़या नाई की दुकान है बच्चों के केश कटवा लिये जाये पर अंदर तो वह ए टी एम निकला केश को कैश करने के लिये बैंक बैलेंस तो बनाना ही पड़ेगा

अब बदरी नाराण पर कोई मनचला बिंदी लगाकर उसे बंदरी नारायण बना दे तो बीबी की जूती तो उसी के सिर पड़ेगी मनचले के सिर पर तो पड़ेगी नही वो तो अपना काम करके निकल लिया पतली गली से। अब यह अपनी समझ में नहीं आया कोठियों के बीच पतली गली मिली कहाँ ?


शाहिद चिकिन शाॅप यहा ताजा चूजे मिलते हैं उसके ऊपर क्यों भाजपा ने अपने आकाओ का फोटो सहित बोर्ड लगाया कुछ समझ नहीं आया।

बोर्ड तो बोर्ड पढ़ने वाले की अपनी समझ है अब नासमझ पढ़े जो लिखने वाला क्या करेगा।

ऐश

‘चल भैये, आज ऐश करते हैं

फटी कमीज और गंधाते शरीर से एक हाथ से खुजाते फते लाल बोले ‘आज सत्ताइस की जगह तीस रुपये कमा लिए हैं , आज हम अमीर हो गए है ,चल नमक से प्याज खाई जाये ’ फत्ते और सुर्ती सब्जी वाले के पास पहुॅंचे और उसको तीन रुपये देकर बोले ,‘लाला तीन रुपये हैं, तीन रुपये , ला प्याज तोल दे,’ प्याज को ढकते लाला बोला, ‘जा ,जा, प्याज खाएगा ,ऐसे आ गया ,तीन रुपये का सोना तोल दे।



दोनों ने एक दूसरे को देखा, सुर्ती बोला,‘ फत्ते , चल जामा मस्जिद ही चलते हैं यही टिन डाल लेंगे, नहीं तो सोने की जगह तो मिल ही जाएगी ,पांच रुपये का खाना खायेंगे भर पेट ,पांच सुबह, पांच शाम ,दस रुपये बाकी बैंक मेे जमा कर देंगे ,हो जायेंगे हाल लखपति, जब सात साल मैं फटेलाल अरबों पति बन सकता है ,तो हम लखपति तो बन ही सकते हैं ।’


अरे नहीं सुर्ती दिल्ली नहीं मुम्बई चलते हैं। बारह रुपये में राजबब्बर के साथ खायेंगे’ ‘हां हां यही ठीक है ,पर बूढ़े मां-बाप और बच्चों का क्या करे वो तो कमाते नहीं ।’


‘सुरती तू रहेगा घौंचू, ,उनकी क्या फिकर ,मां-बाप को वृद्ध आश्रम मैं और बच्चों को अनाथालय में डाल देंगे। वहां कम से कम नहाने को और चाय तो मिल जायेगी । नहाने का साबुन ,पानी चाहिए । पहले तो जमुना में नहा लेते थे । अब तो वहां भी पानी नहीं हैं ।

नल लगवायेंगे तो पैसे लगेंगे । पैसा क्या पेड़ पर उगता हैं । मंत्रियों के खर्चें तो पूरे होने वाहिये चाहिए भय्ये। फत्ते ,जनता रुपी पेड़ हैं तो हिला मंदिर के आगे कटोरा लेकर बैठेंगे । वहां खाने के साथ और भी कुछ न कुछ मिल जायेगा ।


सोमवार शिव, मंगल हनुमान, बुध गणपति, ब्रहस्पति साईं, शुक्र देवीजी, शनिवार शनि देवता, रविवार को तो बहुत जगह मिलता है, नहीं तो गुरुद्वारा तो हैं ही सुरती । गोगी साहब ने एक खाना और सुझाया है कीड़े मकोड़े का चल वहीं पकड़ेगे बैठे बैठ। बोलो धरम करम की जय।
लो । चल


एक अदृश्य सत्ता के सामने हम नत मस्तक हैं । हर धर्म मानता है कि कोई शक्ति है जो कण कण में व्याप्त है । हिन्दू धर्म में हम उस सत्ता को भगवान् कहते हैं ।

क्या भगवान है ?
प्रश्न उठता है हमारा अस्तित्व भगवान् से है या भगवान् का आस्तित्व हम से है। भगवान् है यह हमने कहा है ,भगवान् ने तो कभी आकर नहीं कहा कि वह है । हमें किाी को तो अपने कर्मों का दोषी ठहराना है ,हमने एक स्वरूप बनाया । इसलिए भगवान के निर्माता हम हैं । क्योंकि हम स्त्रष्टा हैं , इसीलिए  रोज एक भगवान का निर्माण कर लेते  हैं।भगवान् के कोई मानदंड नहीं बनाये इसलिये जिसे चाहे भगवान् कहना शुरू कर देते हैं।नहीं तो खुद अपने को भगवान् कहना शुरू कर देता है ।


कभी वो भगवान् हमे जेल के अंदर मिलता है। कभी कलकत्ते मैं ढूढ़ने जाते हैं । पता लगता है वह कही मैदान में है और अगर कभी जरा कम देर के लिए मैदान में टिकता है तो हम तुरंत भगवान् के पद से उतार देते हैं ।

ऐश:अगला भाग

ऐश भाग 2

ऐश पिछला भाग
कुर्सी खिसकाने में हम माहिर हैं। हिन्दू धर्म के भगवान् अगर अजन्में हैं  अमर हैं तो जन्म भी लेते हैं। अवतार हैं न ।एक भगवान चन्द्रमा कि कलाओं के साथ आये ,मस्त मस्त आश्रम बनवाये , लेकिन  इस दुनिया को छोड़ गए उनकी आवाज आज भी सुनने को मिल जायेगी ,प्रवचन मिल जायेंगे ।


राम कृष्ण की तो नहीं मिलेगी तो  कौन बड़ा भगवान् हुआ एक भगवान् पुट्टपर्थी में थे ,कहा जाता था कि उनकी उम्र किसी को नहीं मालुम ,लेकिन हमारे देखते देखते वो बूढ़े हुए और मर गए । छोड़ गए अरबों रुपये लूटते सेवकों को। भगवान् निर्लिप्त हैं तभी सोने पर सोते थे क्या रुपयों का पलंग बनाया था।


एक लम्बी सूची है भगवानों की। हिन्दू धर्म में वैसे भी 33 करोड़ देवी देवता हैं। अपने अपने भगवान्, अलग अलग धर्म के अलग भगवान्, इस हिसाब से औसत प्रति तीन व्यक्ति एक भगवान् हैं । पर हम दूसरे को अपना भगवान् कैसे मानने दें इसलिये रोज एक भगवान् बना लेते हैं। 


जितने जीव उतने भगवान्। रोज हम भगवान् बनाते हैं । नए भगवान् का निर्माण करते हैं । फिर उसका कुछ दिन बाद नाम मिटा देते हैं। अजर अमर अनादि अनन्त के आस्तित्व का एक अदना सा आदमी निर्माता है ।वाल्तेयर ने कहा था ‘ भगवान् का निर्माता इन्सान है और फिर उस इन्सान ने भगवान् को  अपने सिक्के में ढाल लिया ।



बहुत भव्य कार्यक्रम था, बड़े पुण्य के कार्य के लिए कार्यक्रम हुआ । शहर के प्रसिद्ध समाजसेवी उपस्थित थे। बड़़े धार्मिक गुरु भी उपस्थित थे क्योंकि अभिनेत्री नृत्यांगना उनकी प्रिय शिष्या थी। भव्य मंच ,भव्य साज सज्जा और  भव्य कार्यक्रम हो तो सारा प्रशासन तो होगा ही । शहर की सभी नामचीन हस्तियां, उपस्थित होंगी ही । पास से एंट्री आावश्यक हैं, यदि पास नहीं तो शहर का नामी व्यक्तित्व नहीं ,इसलिये उनकेा अपनी उपस्थिति दिखाना जरूरी होता है नहीं तो कैसे मालुम पड़ेगा कि वे शहर की हस्ती हैं ।

समाज सेवा का उद्देश्य भी तो बहुत नेक था । सुन्दर अशिक्षित अविकसित सभ्य समाज से दूर इंसानों के भले के लिए आयोजन । सबने नृत्यांगना की कला को देखा और सराहा और धन्य हुए और धन्य हुए  वे दूरस्थ प्राणी नयन सुख मिला , आत्मा बाग बाग हुई तो लहरें सुदूर वासियों को जरूर पहुंची होंगी । कवि निंदा फाजली ने कहा तो माँ के लिए हैं पर सटीक बैठती हैं

मै रोया पददेस में भीगा (माँ) समाजसेवियों का प्यारदिल ने दिल से बात की बिन चिट्ठी बिल तार

राम ने अपने साथ जंगल वासियों को जोड़ा था तो स्वाभाविक है कार्यक्रम भी राम को ही समर्पित किया गया।  संस्था उनके हित में कभी रामकथा कराती उस अशिक्षित समाज के लिये राम के वन गमन पर रो-रो देती । यह शहर में होता  उन्हें शिक्षा मिल जायेगी । हां अपने शहर की बस्तियों में उससे बुरा हाल हैं ।  विदेश में बसे बच्चों ने  मां का जन्मदिन मनाया ।


बड़ा सा केक काटा और स्वदेश में अकेली बैठी मां को फोन किया मां हम तुम्हारा जन्मदिन मना रहे है  माॅं आप टैब चलाना जानती तो दिखाते। फोन पर माँ को सुनाया ,‘माँ हैप्पी वर्थ डे टू यू ’सबने मिल कर गाया । सुन सुन कर कल्पना कर रही माँ प्रसन्न थी , आर्शीवाद दे रही थी ,कितना ख्याल रखते हैं बच्चे और बच्चे केक के साथ स्वादिष्ट खाना खाते कह रहे थे ,‘माँ बहुत बढि़या खाना है ’

बच्चे तृप्ति से खा रहे  हैं माॅं प्रसन्न थी , और माँ सुबह की रखी रोटी एक सब्जी से खा, आशीष देती अकेली सो गई।

जूता भाग 2

जूता
वही नाली के पास उसे रख देते हैं, जहां उनकी पवित्रता का इतना ख्याल रखा जाता है कि किसी ने खाने को दिया खाया और उठाया चल दूसरी गाछ़ी पर ।देवी देवताओं के कोप से तो सब घबराते ही हैं जब वे खुद चल कर आये हैं तो  कुछ श्ऱ़घ्दा तो करनी ही पड़ेगी।


मंदिर में भी हर कोई नहीं घुस सकता वहां देवी देवता की अवमानना का ख्याल है कि कोई चाहे नहा धोकर आये पर जात चिपकानी होगी स्वच्छता नहीं । पर इन दौड़ते भागते   मंदिरों  की स्वच्छता का ख्याल किसी को भी नहीं आता कि इस को बंद करा दे पर बात जुगाड़ की है यह भीख् मांगने का जुगाड़ है ।  जुगाड़ फिट करते है बेकार लड़के जो यहां तादाद में हैं। अपनी प्रेमिकाओं को पटाने के लिए पाकेटमारी चेन तोड़ना करते हैं।


प्रेमिका पटती कम बेवकूफ बना कर अपना जेब खर्च चलाने की जुगाड़ करती है । कोई बैंको से सरकारी रुपया क्योंकि सरकार का माल तो अपना माल । पहले लोन लेता है फिर जुगाड़ बिठा माफ करा लेता है ।



ये जिंदगी ही जुगाड़ है ठोक ठोक कर बनायी हुई। अगर देखा जाये तो जीवन क्या है ? जीवन खाने की जुगाड़ मात्र है बस खाना खाना और खाना। एक वर्ग है उसका पेट इतना बड़ा है कि उसमें पूरा देश समाता जा रहा है तब भी भूख नही मिटती वो बड़ी बड़ी जमीने बड़ी बड़ी बिल्डिंगे और बड़े बड़े बैंक लाॅकर उठाया और दबा लिया । एक एक गस्से में मुँह में रखते जा रहे हैं । एक वर्ग है पूरा परिवार सुबह से खाने की जुगाड़ में निकलता है।


कभी लकड़ी बीनता है ,कभी कागज बीनकर चूल्हा जलाता है ,एक आटे की जुगाड़ करता है ,तो एक सब्जी की। न मिले तो प्याज फोड़ कर नमक रखकर खा लेता है । पर अब तो फरमान ऊपर से आ गया है ,अगर प्याज मंहगी है तो क्या जरूरी है खाना ,मत खाओ ।


एक है गोगोई वो सलाह दे रहे हैं क्यों नहीं कीड़े मकौड़े खायें ,अगर खाना नही है ठीक है ।  जाल लेकर भागते रहो एक पकड़ा मुंह में । हां जाल  के लिये पैसे तो गोगोई दे ही देगे क्योंकि पेट भर कीड़े पकड़ने के लिये भागते भागते कमाने का समय कहा होगा और जनता पर से आलसी होने का धब्बा भी हट जायेगा । गोगोई ही कहते है जनता आलसी है ,इसलिये पूरा महकमा आलसी है । हां अब एक नया महकमा खुलने जा रहा है कीड़ा पकड़ महकता।
श्रद्धेय नीरज जी से खेद सहित-मानव होन पाप है गरीब होना अभिशापबन्दर होना भाग्य है जिम्पाजी होना साॅभाग्य
एक टीवी ऐड में चिम्पैजी को च्यवनप्राश खिलाया जाता देख कर तो यही लगता है जैसे श्री राम जी दूरदर्शी थे । उन्हें मालुम था एक बार आदमी फिर बन्दर बनेगा फिर चिम्पैजी । वही उसका लक्ष्य होगा कम से कम च्यवनप्राश तो खाने को मिलेगा आदमी को तो सूखी रोटी नसीब नहीं है । कुछ दिन में तो महाराणा प्रताप की तरह घास पर ही जिन्दा रहेगा बहुत हुआ तो इधर उधर उगे जंगली फल ही खा लेगा ।



न लकड़ी, न बिजली, न कोयला, न तेल ,काहे पर पकाए ?क्या खाए ? सत्ताईस रुपये मैं एश करने वाला परिवार एक आदमी के कमाने से तो चलने वाला है । नहीं उसे खाने की तैयारी के लिए वैसे ही एक क्रिकेट टीम चाहिए । एक जायेगा घास ,कूड़ा, लकड़ी बीनने । एक जायेगा राशन की दुकान आटा लेने जेा एक किलो का  सात सौ पचास ग्राम मिलेगा।  एक जन एक बार मैं ढाई सौ ग्राम खा लेता है तीन ने खाया चौथा भूखा रहा गया अब हिसाब लगाओ । बीस रुपये का आटा हो गया नमक तेल लगाया तो दस रुपये का हो गया ।


जलावन लाना ही पड़ेगा । किसी से लगा कर तो खायेगा बेचारा । अब बूढ़े माँ बाप वे कहा जायें । कपड़े कहां से लायेगा बच्चों को कहां से खिलायेगा । साबुन तेल और बाप रे ! ये क्या ? खर्चे तो सुरसा के मुख की तरह बढ़ते जा रहे हैं ।  बीपीएल कार्ड तो अमीरों के लिए बनता है क्योंकि गरीब के पास पैसा खिलाने के लिए है ही नहीं ,जहां मरने की सनद के लिए पैसे देने पडे़, की हां मर गया है हां अमीरो के लिए जिन्दा रहेगा क्योंकि उसके जिन्दा रहने पर ही तो उसकी पेंशन खायेंगे । मरेगा कैसे? उसे मरना है पर किताबों में जिन्दा रहना है। क्योंकि अमीरों के मुर्गे का जुगाड़ उसकी रोटी ही करेगी ।



जूता

भारत का राष्ट्रीय व्यंजन क्या है, यदि यह प्रश्न किया जाये तो इसका उत्तर आएगा आलू का पराठा और चैकिये मत । यदि किसी को भी  खाने का प्रलोभन दिया जाता है तो यही कहा जाता है ,‘आओ, आओ गरम गरम आलू के पराठे बनाए हैं, और आने वाला खाने का प्रलोभन छोड़ नहीं पाता । कोई फिल्म देखिये कोई सीरियल ,यदि खाने का प्रसंग होगा तो यही  होगा,‘ वाह आलूू का पराठा! मजा आ गया’ ,अब अगर कृष्णलीला लिखी जाएगी तो कृष्ण गोपियों के घर जाकर आलू का परांठा चुरायेंगे ।

नई रामायण में शबरी वन मैं जब गरम करारे आलू के पराठे खिलाएगी तो राम की आंखों में उसकी निष्ठा के प्रति स्नेह का दरिया स्वतः बहने लगेगा । बीबी को मिया को रिझाना है ,रिझाने से मतलब कोई काम निकलवाना है वह कहेगी, ‘आज आलू के पराठे बनाए हैं’। जैसे दुनिया का सबसे लजीज व्यंजन बनाया हो ,‘वाह! मजा आ गया ’ और उसकी लार टपक जाती है । मियां का पेट भरा है तो जहन्नुम मैं भी ले चलो ,पर ये ही पराठे दूसरे रूप में भी प्रचलित है

‘पराठे खाने हैं ?’ मतलब बेभाव के जूते खाने हैं । अगर गरमा गर्म ,तपा तपा कर किसी को लगाने हैं तो यह है पराठे रूपी जूता, जो आजकल सभाओं में खूब चलते हैं, और खाए भी खूब जाते हैं , चुराए भी जाते हैं । कुछ का तो खर्च भी इसी से चलता है । ये मंदिर के आगे या उठावनियों में, मुर्दनियों में गायब हुए जूतों के मालिको से पूछो। पहले कवि सम्मेलन में किसी कवि को उखाड़ना  होता था तब चलते थे ।


वैसे बहुत समय से जूतों की राजनीति चली आ रही है तभी तो भरत जी रामजी की चरण पादुका ले आये। जूता सिघासन पर, तब ही से जूते की राजनीति चली आ रही है । मानेगा बात कैसे नहीं मानेगा जूते के दम पर मानेगा । तेरी बात तो जूते की नोक पर है फिर दस नम्बरी हो तो बात ही क्या है किसी ने सच ही कहा है ,

बूट दसों ने बनाया, मैंने एक मजमून लिखा।मुल्क में मजमून न फैला, और जूता चल गया।

गढ़चिरौली में अजित पवार पर महिला ने चप्पल फेकी। बहुत दिन से जूते चप्पल का प्रसंग शांत था इसलिये बेचैनी हो रही थी । केवल टी वी में फीफा वल्र्ड कप के समय अवश्य लोग भागते दौड़ते जूतों को देखरहे थे चेहरे कम जूते ही जूते भागते थे । कितने प्रेम से लोग उन जूतों को देख रहे थे ।


हर उछलने वाले जूते पर वाह ! वाह! कर उठते थे सबके दिन फिरते है जूतों के भी फिरे हैं। जूते मंदिर में ही  उठाये जाते या शोक सभा में ,अब प्रकाश सिंह बादल की सभा में भी जूते बाहर ही उतरेंगे ,क्या बात हुई ? भैये कुछ गड़बड़ तो है । एकबार खन्ना गांव में उछला जूता तो बार बार पड़ने का डर लग गया क्या ? या कुछ और बात है बादल की सभा है पूरी बात कौन सुनता है । जूते बाहर उतरें । देखेंगें तो सोचेंगे आगे आप सोचो।



अब लो मुशर्रफ तो रिकाॅर्ड बनाने जा रहे है जूते खाने का। आधुनिक काल में यह अमेरिका के राष्ट्रपति से प्रारम्भ माना जाये और विश्व वीरता पदक प्रदान किया जाना चाहिए । जूता खाने से ज्यादा जूता चलाना मुश्किल है ।


जूता चप्पल टमाटर अंडे छुटभैये नेता ,गायक, सबसे ज्यादा कवि अपने प्रदर्शन से बटोरते रहे है । पर पहला जूता फ़ेकने का असली श्रेय उसी अमरीकी पत्रकार को जाता है जिसने बुश पर जूता फेंकने की बहादुरी की । उसके बाद तो जूता फेकना प्रचलन में आ गया जुगाड़ है

जिंदगीगरीबी की आड़ है जिंदगी
कर कर मर जाओमरना भी जुगाड़ है जिंदगी


आवश्यकता आविष्कार की जननी है ,

यह निश्चत है और आवष्किार का दूसरा नाम है जुगाड़ , जो आजकल सड़कों पर तो दौड़ ही रहा है  असल जिंदगी में भी दौड़ रहा है । यह भी किसी ने रोजी रोटी का जुगाड़ किया । किसी के पहिये किसी की बाॅडी और ठोक दिए तख्ते और चल दी सवारी भर कर गाड़ी ।


पिन भी तो जुगाड़ है । बटन टूट गया ,तार जोड़ कर फटे को सीने का जुगाड़ कर लिया हो गई व्यवस्था । ऐसे ही करते जाओ जुगाड़ । गरीब की जिंदगी तो जुगाड़ ही है। दो रोटी का जुगाड़ करने के लिए बच्चे हर चैराहे पर देवी देवता की तस्वीर रखकर अपने आकाओं की शराब और ऐश का जुगाड़ करते हैं । उन्हें तो धूप में ताप में गंदे कपड़े पहन कर बिना नहाए हुए पवित्र देवता की तस्वीर घुमानी है।

जूता: अगला भाग

नयी शब्दावली

फत्ते जल्दी जल्दी नामों की शब्दावली बनाऐं एक नवीन नाम डिक्शनरी छाप देते हैं । कमाई का मौका हैं ।  दूसरी पार्टी के लोगों को नए नए संबोधन करने होते हैं 


चलो अच्छे अच्छे छांट लेते हैं । उनके नए अर्थ भी बनाता चल मेंढक बनाम मोदी, कोकरोच बनाम खुर्शीद, ऐसे ही हांकू ,फेंकू सब नए नामों के आगे लिखता जा।


 नए नाम भी बनाकर लिखते हैं बोलने में सहायता रहेगी। फूटू  जाॅकू , दल्लू, धंदू,  चालू, इन नामों के आगे इनकी विशेषता लिख । किस किस को कहे जा सकते हैं संभावित लिख ,देख दौड़ेगी किताब ।


पर सुरती, किताब के लिए नाम तो बहुत इकठ्ठे करने पड़ेंगे , कहां से लायेंगे।’


‘ घबरा नहीं, दो जगह बहुत बढि़यां हैं ,नई नई फिल्में और संसद ,सुना तूने,, आजकल बिना गंदी गाली के कोई फिल्म नहीं चलती ,जब तक हाॅल में सीटी न बजे फिल्म कैसी, और बिना मार कुटटम्मस के संसद नहीं चलती ,मार कुटाई से पहले जीभ तो कमाल दिखाती है ’

एक भाषा विज्ञानी
अपनी नई पुस्तक के लिए
शब्द भण्डारण कर रहे थे

गली गली शहर शहर
लोगों से मिल रहे थे
शब्दों का अच्छा सा
जखीरा था हो गया

लेकिन यह तो गाना
बिन ढोल मंजीरा हो गया
गली गुप्ता तो आई नहीं

शब्दों की सीमा भाई नहीं
कुंजड़ों की बस्ती के चक्कर लगा आये
दस पांच शब्दों से ज्यादा न बढ़ा पाए

सबसे कहते कुछ तो बोलो
अपने शब्दों का पिटारा खोलो
कुजड़े धकियाते मुस्काते बोले

हमारे असली बोलने वाले
संसद में पहुंच गए
सीखनी हमारी भाषा है तो

संसद में सीख लो
पुस्तक के कुछ पन्ने क्या
पुस्तक ही भर लो

एक से अच्छी उपमाएं मिलेगी
शब्दों  की मालायें मिलेंगी
पहन कर जिन्हें

मुस्कराते हैं सांसद
प्रसन्न हो मीडिया के सामने
आते हैं सांसद ।


राम का नाम

चुनाव आ गये ,राम नाम का जिन्न फिर बाहर आ गया ।
तरस आता है एक दिन ऐसा था बैचारे राम जी अच्छे खासे छत के नीचे थे । ऐसा झगड़ा पड़ा उनकी छत भी गई। करे भी क्या छत देने वाले बार बार परदे के कोने पकड़ कर खड़े हो जाते हैं ,‘कोई कहता है मैं जो कह रहा हूँ वही सच ,मैं सबसे ताकतवर ।’दूसरा ताली बजाता है, राम को एक तरफ रखो ,मुझसे भिड़ो मैं ताकतवर और उन्हें जनता एक तरफ रख देती है ।


पहले तय कर लो , इससे तो लाला को ही बुलालो ,लड़ेंगे तो नही । तो फिर सब मिल कर राम जी को बुलाने लगते हैं । एक बार सबसे ताकतवर कौन ?
यह सवाल उठा ,समुन्दर ने कहा,‘मुझसे ताकतवर कौन है? जहां चाहे फैल जाऊँ ,सुनामी मचादूं।’

इस पर पहाड़ ने कहा, ‘नहीं मुझसे ज्यादा ताकतवर कौन है ?  समुन्दर लाख सिर टकरा ले उसे वापस जाना पड़ता है । समुन्दर को कहो तो लाशों से पाट दूं ,देखा नहीं अभी उत्तराखंड मैं जरा सा कुल्ला ही किया था। इस पर हवा ने कहा, शट अप मुझसे ज्यादा पावरफुल कैसे ? सुनामी तूफान मेरी वजह से असर छोड़ते हैं ।


इस पर पवनपुत्र हनुमान ने कहा,‘ आज के दौर में हर बाप अपने बेटे से खौफ खाता है , सो आप से ज्यादा पावरफुल मै ’।
इस पर सबने कहा, ‘हे हनुमान तुम सबसे ज्यादा पावरफुल कैसे हो सकते हो ? तुम तो खुद राम के सेवक हो ,सबसे ज्यादा पावरफुल तो राम हुए न,’ हनुामन जी ने मुस्कराते हुए कहा ,‘चलो , राम जी से पूछ लेते हैं, ।’ रामजी ने बताया, ब्रह्माण्ड में सबसे ज्यादा पावरफुल आप मुझे मानते हैं न मुझसे ज्यादा पावरफुल नेता है।’ सबने पूछा ,‘वो कैसे ?’

‘अरे, उनकी ही पाॅवर है। जब चाहे उनकी मर्जी होती है तो आपने एजेंडे में शामिल कर लेते हैं जब मर्जी होती है एजेंडे से बार कर देते हैं ।’
राम नाम लड्डू अयोध्या नाम घीमंदिर नाम मिश्री तो घोर घोर पी।

आजादी

साढ़े तीन साल बाद अग्रवाल दंपत्ति अमेरिका से वापस आये । पांच वर्ष पहले पुत्र अमेरिका चला गया था । वहीं पढ़ाई करके वहीं नौकरी कर ली । अब दो वर्ष पूर्व उसने अपना निवास बना लिया था


और पत्नी को लेकर चला गया था, पहले बच्चे के जन्म केसमय उसे माँ की आवश्यकता हुई ,तो माँ-बाप को टिकेट भेज कर बुला लिया ,छः माह रह सकेंगे बच्चों के संग अच्छा लगेगा।


एयरपोट्र्र से बाहर आते ही उनकी नाक सिकुड़ उठी। अमेरिका की सड़कें हैं ,क्या फर्राटा भरती हैं एक दम चिकनी कहीं गड्ढे नहीं । क्या मजाल जरा भी जाम लग जाए ,‘जाम जैसी चीज तो वहां है ही नहीं यहाॅं तो  निकलते ही जाम में फंस गये ।

 ट्रैफिक जाम था, किसी ने यूटर्न ले लिया ,उसमें देर लग गयी और जाम की स्थिति आ गई पुलिस वाले से झिकझिक चल रही थी। जाम बढ़ता जा रहा था।


‘अरे ! क्या कर रहा है ,बगल से ले ले ,’उन्होंने ड्राइवर से कहा, ‘नहीं, और जाम लग जाएगा सिंगल रोड हैं न,’ मित्र जो लेने आये थे उन्होंने कहा।


‘ अरे !यार इस समय तोे घर की जल्दी पड़ी है। निकाल तू ,’उन्होंने बेताबी से कहा और किसी पान वाले पर रोकियों पान मसाला तम्बाकू खाए जुग बीत गया। बस वहां यही खराबी है ,पान मसाला नहीं मिलता ,ले गया था ,सब झपट लिया । पर प्रदूषण नाम का भी नहीं ,कोई होर्न भी नहीं बजा सकता। यहाँ देखों कैसी चिल्ल पों मची है । एक टुकड़ा भी सड़क पर डाल दो न जाने जुर्माना लेने प्रगट हो जाते हैं ।



गलती से भी टाफी का रैपर भी नहीं डाल सकते ,एक कागज की थैली हमेशा गाड़ी में रहती है ।  आप पुलिस वाले को कुछ दे भी नहीं सकते ,देने का प्रयास किया तो अन्दर । ’ अमेरिका की बातें बताते उनकी छाती गर्व से फूल रही थी।


‘ ड्राइवर रुकना ,गरम मूंगफली मिल रही हैं बीस रुपये की लाना’ पीछे और लंबी लाइन बढ गई ,मूंगफली लेकर छील छील कर सबको देने लगीं, साथ ही बोलीं,‘ अरे भाई साहब ,वहाँ तो कुकर में सीटी भी नहीं लगा सकते ,कुछ तल नहीं सकते ,जरा कुछ तलने लगती ,तो बहू दौड़ कर आ जाती ,‘मम्मी जी क्या कर रहीं हैं  अलार्म बज जायेगा ’ कभी कभी खिड़कियाँ बंद कर तला भुनी जरा सी करते, ब्रैड खा कर थक गए, पर हवा एकदम शुद्ध है वहाँ सांस लेने में आनंद तो था यहाँ तो ऐसा लग रहा है चारों ओर धुंआ ही धुआं है ,सुनो वो गरम कचैरी मिल रही है ले लो।’


‘अब आते ही एकदम मत खाओ ,पेट खराब हो जायेगा ,जरा यहाँ के खाने की आदत पड़ने दो ,वहाँ शुद्ध खाया है न।’
‘पर आप तो छः माह के लिए गए थे ’ मित्र हो हो कर हंसते बोले, ‘बहू ने निकाल दिया , उनका काम पूरा हो गयां’


‘अरे, नहीं बहू बेटा तो बहुत कह रहे थे । पर अकेले बोर हो जाते बच्चे तो सुबह ही चले जाते , अरे भाई साहब सब काम अपने हाथ से करने पड़ते मैं तो बर्तन मांजते तंग आ गई  अब मुढसे नहीं पलते बच्चे , यहाॅ होती हाल नौकरानी लगा लेती ,मेरे क्या बस की है ,’ पत्नी ने शीशा खोला और छिल्के का थैला बाहर फेंक दिया।
‘अरे यहाँ आजादी है यार वहाँ तो बंदिशें बहुत हैं यह कहते हुए दरवाजा खोला और पिच्च से  पीक का गोला थूक दिया ।

आप मोटी है तो इसे पढि़ये भाग 2

आप मोटी है तो इसे पढि़ये
आपका नौकर कभी जली, कच्ची दाल ,कभी कच्ची पक्की रोटी सेक कर देगा। कभी सब्जी की शक्ल ही ऐसी होगी कि देखकर उल्टी करने की तबियत करे तब यह स्वाभाविक है कि आप सूंघ कर ही पेट भरें। यह मोटापे से बचने का सफल उपाय होगा।


आपका आये दिन नुकसान होगा कभी विदेशी टी सैट टूटेगा, काॅच के गिलास तो बचेंगें ही नहीं। कभी दूध उबल कर नाली में बह जायेगा इससे आप झीकेगी चिल्लायेंगी अतिरिक्त कैलोरी खर्च हो जायेगी।


भूल कर भी आप तला भुना नहीं खायेंगी। क्योंकि आप खायेंगी एक परांठा वह भी इस हिदायत के साथ कि दो बूंद तेल लगाना और नौकर फिर कैसे पीछे रह जायेगा । वह भी इंसान है वह अपने दस परांठे बनायेगा।


यह तो अपनी अपनी भूख की बात है। तब आप घी तो मंगाना भूल ही जायेगी तो मोटापा अपने आप कम होगा क्योंकि अपने एक मराठे पर दस पराठों का आप बलिदान देना नही चाहेगी और आप रूखी रोटी ही बनवायेंगी।


ऊपर से नौकर का खर्चा आपका बजट डगमगा देगा तो वैसे भी पकवान आपकी लिस्ट में से कम हो जायेंगे। मेहमानों के लिए मंगाकर रखा नमकीन मीठा कभी नहीं मिलेगा तो आप मेहमानों को बुंलाने से परहेज करने लगेंगी और मेहमान के साथ खुद भकोसने की आदत से भी बचेंगी।


नौकर दूध पर से मलाई तो नहीं चाट रहा है, अपनी रोटी के अंदर घी तो नहीं लगा रहा है। हर कमरे में पोंछा लगाया कि नहीं यह जासूसी करना। एक ही काम के लिये बार बार उससे कहना और न करने पर सातवें आसमान पर सिर उठा लेना आपकी चरबी घटायेगा।


अंत में अगर किसी दिन नौकर मालमत्ता लेकर भाग गया तो यह अक्सीर दवा का काम करेगा क्योंकि सालों तक उसके शोक मे आप मुस्कराना भूल जायेगी और आपने देखा होगा जो कुढ़ते रहते हैं


वे हमेशा दुबले पतले होते हैं और दिनभर ठी ठी हंसने वाले मोटे। मैंने गलत उपाय तो नहीं बताये हैं न। कुछ उपाय तो आपके काम आ ही जायें।

आप मोटी है तो इसे पढि़ये

आप मोटी हैं और पतली होना चाहती हैं तो सिर्फ एक अदद नौकर रख लीजिये। अरे! रे, यह क्या आप तो चैंक गई। चैकिए मत मेरी पूरी बात सुन लीजिये।


आप कुछ मत करिये बस एक अदद नौकर रख लीजिये। आप कहेंगी यह कैसी उल्टी बात। नौकर रख लेने से तो आराम ही मिलेगा और उल्टा मोटी हो जायेगी।


जी नहीं ऐसी बात नहीं है। मैं इसके चंद कारण बतलाती हूँ कि आप क्यों पतली हो जायेंगी। अब देखिये न नौकर आ जायेगा तो आप काम तो करेंगी नहीं दिन भर पलंग पर बिराजमान रहेंगी। पलंग पर बैठे रहने से खाना हजम नहीं होगा आपको भूख नही लगेगी तो आप का पेट जरा सा ही खाना स्वीकार करने लगेगा क्योंकि उसे
उतने की ही आदत हो जायेगी।


और यह भी हो सकता है बैठे रहने से पेट ही खराब हो जाये। पेट की खराबी अधिकतर बीमारियों की जड़ है और रोग लगी काया तो होती ही दुबली पतली है। है न।


फिर ऊपर से आये दिन नौकर छुट्टी कर जायेगा। नौकर की वजह से महरी आदि की तो आप पहले ही छुट्टी कर चुकी होंगी। एक ही दिन सारे काम आ पड़ने से गुस्सा बढ़ जायेगा। आपकी एनर्जी सब पर बड़बड़ाने खीझने में बहुत खर्च होगी।


यह सब मिलकर आपके शरीर पर एकदम असर करेंगे। अगर आप कोठी मेें रहती हैं तो या मकान में ही जहां आप होगी आप को जब भी जरूरत होगी नौकर को दूसरे छोर पर पायेंगी। चीखने में तो पूरा दम लगता ही है और यदि बुलाने जायेंगी तो बार बार चक्कर लगाने पड़ेंगे जिससे कि आप की अच्छी खासी कसरत हो जायेगी।


हां ,एक बात है नौकर बैठा न रह पाये जल्दी से काम पर लग जाये इसके लिये सामने रखने के लिये जल्दी जल्दी जाकर बुला कर लायेंगी तो तेज तेज चलने की आदत हो जायेगी जो आपको दुबला करने में सहायक होगा।


आप मोटी है तो इसे पढि़ये अगला भाग

मेरी पुर्नशिक्षा

कुछ साल से मुझे अपना बचपन नित्य याद आता है। कभी कभी तो इतनी शिद्दत से याद आता है कि मैं बहुत साल पहले अपने छोटे से शहर की गलियों में पहुंच जाती हूँ


जहाँ बरसात होने पर पुरानी काॅपियों के कागज फाड़ फाड़ कर नाव बनाया करते और देखते बाजार के मोड़ तक किसकी नाव पहुँचती है। मोड़ पर नाली का भंवर बनता । उसे कोई नाव पार कर जाती कोई फंस जाती। जिस बच्चें की नाव पार कर जाती उसकी छाती चैड़ी हो जाती।


मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी, ‘मम्मी होमवर्क कराइये न’उफ! मैं तो बरसात में खोई थी तुमने मुझे कहां ला पटका।’ मैं अभी भी रोमांटिक मूड में थी।‘ मम्मी अगर हमने होमवर्क नहीं किया तो जो बरसात हमारी आंखों में होगी वह आपसे संभले नहीं संभलेगी।’ ‘


हाँ तुम सही कह रही हो बच्ची, पर तुम्हारे भाग्य में वह सुख कहाँ’’ एक दीर्घ निश्वास के साथ बड़े बड़े पोथों में से पढ़ पढ़ कर बिटिया का होमवर्क कराने लगी। अल्पी की सिक्स्थ की और बेचू की फोर्थ स्टैन्डर्ड की पढ़ाई देखकर अपनी एम.ए. पी. एच. डी की पढ़ाई बौनी लगने लगती है।


इन लोगों की उम्र में तो हम कुद्दकड़े लगाते फिरते थे। हमारी घोटामार पढ़ाई थी, पंडितजी आ जाते घोट घोट कर पट्टी बुतके से अ आ इ ई पढा जाते। गा गा कर दो एकम दो याद कर लेते।


कहां इनका लदा फदा बोझा, गाड़ी भर किताबें, बैग भर रुपये के साथ अपनी चार आने की पहाड़े की किताब याद आती है। हमारी चार आने की किताब चालीस तक पहाड़े, इकाई दहाई, सैकड़ा, मन सेर छंटाक, मील, सब समेटे बैठी थी और दस पेज की बीस तक टेबल वाली बुक जा लगाकर सौ रुपये कीमत की ऊँचाई पर जाकर बैठ गई।


गुणा जोड़ बाकी सीधा साधा हिसाब न जाने कौन-कौन से नये चिन्ह और बड़े बड़े शब्द लेकर आ गये कि बच्चों के आगे मुँह छिपाना पड़ जाता है। साइंस में एडीसन मारकोनी आदि जरा जरा सा पढ़ा वह भी ऐसे याद किया कि जिसे कोहनी मारने की आदत थी उसे मारकोनी कहते है।


मेरी पुर्नशिक्षा का अगला भाग

मेरी पुर्नशिक्षा का पिछला भाग

मेरी पुर्नशिक्षा का पिछला भाग
बात बात पर अपनी खिल खिल हंसी से इनके हवाइयाॅं उड़े चेहरे से मिलाते हैं तो समझ नहीं आता कि हमने बचपन जिया या ये खो रहे हैं। दस साल की उमर में बम परमाणु की बातें अपनी तो सोच कर ही रूह कांप जाती है। हमारे लिये तो हिस्ट्री ज्याग्रफी है बेवफा सुबह को पढ़ी और शाम को सफा’ गा गाकर किताबों से सर मारने वाले हम अब बच्चों को रटाते हैं तो सारा मंजर आंखों के आगे से गुजर जाता है।


कहां हमारे माँ बाप जिन्हें यह ही नहीं मालुम था कि बच्चे किस क्लास में पढ़ रहे हैं और एक हम हैं कि हम बच्चों का सारा कोर्स एक एक अक्षर सहित रटा रहे हैं। लगता है भर्ती स्कूल में बच्चे हुए हैं पर अप्रत्यक्ष रूप से पढ़ाया उनके माँ बाप को जा रहा है। जैसे कह रहे हो बहुत मस्ती मारी पढ़ाई को फालतू काम समझा। अब पढ़ो और समझो कि पढ़ाई इसे कहते हैं।


घर में किसी से कह भी नहीं सकती कि छटी की पढ़ाई पढ़ाने में असमर्थ हूँ। सब मेरी पी.एच.डी. की डिगरी छीनने को तैयार हो जायेंगे, या कहेंगे न पढ़ाने के बहाने है। बताओ छटी और चैथी को नहीं पढ़ा पा रही हैं। चुपचाप ध्यान लगाकर अल्पी और वेबू की पुस्तकों का अध्ययन मनन करती हूँ


अंग्रेज़ी का उच्चारण उनके मुँह से सुनती हूँ। मन ही मन कई बार दोहराती हूँ, तब बोलती हूॅं तब भी बच्चों की ही ही के बाद उनसे सीखना पड़ता है। मम्मी कैसी अंग्रेजी में एम.ए. हो बोलना तो आता नहीं है।


इधर यह लिख रही हूँ उधर बिटिया कर रही है,‘ माँ क्या फालतू का काम कर रही हो, कल हमारे स्कूल में बेजीटेबुल डेकोरेशन और फ्लावर शो है, हमने बैजीटेबल में नाम लिखाया है कुछ सिखाइयें हमको।


सिखाना बिखाना क्या है आप अभी तो बता दीजिए सुबह काट कर रख दीजियेगा हम वहां लगा देंगे।’ उधर वेबू कह रहा है माँ हमारा एनीमल का प्रोजैक्ट बनाकर दो नहीं तो हमें डांट पड़ेगी। हाँ भई पहले तो बाजार जाती हूँ सब्जियाॅ और एनीमल का चार्ट लाती हूँ। फिर दोनों का काम करूंगी। खाना वाना देखी जायेगी सामने होटल से मंगा लूंगी।

Wednesday, 16 December 2015

देशी में विदेशी तड़का

चटनी है रोटी खवईयों पर मोय बलाइवै आइयो

मतलब जिसकी कोई अहमियत नहीं बेचारी चटनी नमक के बाद चटनी ही एक ऐसी चीज थी जो सर्व सुलभ थी किसी भी चीज को पीस कर नमक मिर्च के साथ पेश कर दो चाहे धनिये की डंडियों और पालक की ढेर सारी डंडी सहित मिर्च के साथ पीस दो चाहे समोसे हो चाहे कचैड़ी चाहे गोलगप्पे सब स्वाद ले लेकर चाट जायेंगे

लेकिन उसको मिलेगा सर्वहार का स्थान लेकिन यही चटनी अंग्रेजी में डिप बनकर नायाब चीज हो गई है।

अंग्रेजी का एक तो कहीं भी लग जाये उसका महत्व एकदम बढ़ जाता है वैदिक काल से चला आ रहा योग अभी तब किताबों या मेले ठेले मे आने वाले साधुओं के पास था एकाएक ग्लोबल हो गया

हां जी ग्लोबल से बात वजन बढ़ता है वैश्विक तो ऐसा लगता हे मानो विदेशी को उसी के देश में देशी कह दिया हो जब कि ग्लोबल कहने मे ऐसा लगता है
अमेरिका में भारतीय को फाॅरनर कह दो तो उसकी अहमियत बढ़ जाती है। भारतीय सामान जब दस गुने दाम के साथ विदेशी से आता है तब उसकी कीमत एमदम बढ़ जाती है तब गली मुहल्ले में वह फाॅरनर का सामान होता है।

राम रामा कृष्ण कृष्णा बुद्ध बुद्धा बनकर एकाएक बहुत महत्वपूर्ण बनकर विदेशों में भी पहुंच गये हे जहां-जहां भारतीय पहुंचा है बिना मंदिर के काम चलता नहीं है पर उसके साथ अंग्रेजी का एक तो जुड़ेगा तब ही वह आधुनिक होगा। राम को राम कहने से उसकी आधुनिकता या कहना न होगा अंग्रेजियत में फर्क आ जायेगा भरी सभा में पार्टी सू-सू कहने में जबान जरा भी नही हिचकेगी


जबकि हगना-मूतना कहते ही खाना बाहर आ जायेगा और बाथरूम की ओर भागेगा चाहे उस समय व नहाने तो जायेगा नहीं पर कुछ भी करना हो जायेगा वो बाथरूम ही।

कुत्ते को कुत्ता मत कहना हां डागी कहने से वह बुरा नहीं मानेगा समझे न छाॅक चाहे राई का लगाओ या जीरे का सब्जीसब्जी जो भी डालो ढककर बनाना डालना पत्तागोभी बताना सैलेरी तब ही इज्जत बनी रहेगी नहीं तो देशी बनकर ही रह जाओंगे।

होली आई रे

होली आते ही कृष्ण को महारास रचाने के लिये एक के बाद एक निमन्त्रण मिलने प्रारम्भ हो गये। नहीं ,उस वन्दे जितना फास्ट कोई नहीं नाचता है, आरकेस्ट्रा भी उस बहुत बढि़या है बांसुरी लगता है


चैरसिया से सीखी है। धीरे धीरे ख्याति बढ़ती जा रही थी। कृष्ण के पास गोपियों के साथ रास रचाने के लिये समय कम होता जा रहा था। कुछ गोपियां भी उसने अपने ग्रुप में ले ली। परन्तु सारी गोपियों को अपने साथ ले जाने में मुश्किल हो रही थी।


गोकुल, वृन्दावन, मथुरा, बरसाना, नन्दगांव से तो निमंत्रण आ ही रहे थे लेकिन दिल्ली, हैदराबाद, पूना फिर फिल्मों से आफर आने लगे। रथ को छोड़ना पड़ा। अब चार्टर प्लेन किया और फिर उनका एक दिन अमेरिका में तो दूसरा दिन लंदन में तीसरा टोकियों मे, चैथा दिन दुबई में रहने लगा।


कुछ गोपियां साथ रहती पर बाकी का रो रो कर बुला हाल था खास खास गोपियां राधा की सहेलियां बिसाखा आदि को तो फिल्मों में भी चांस मिल गया हमारा नंबर कब आयेगा? कृष्ण को मोबाइल मिलाती कृष्ण को स्विच आॅफ करना पड़ता तो मोबाइल पर कृष्ण को मैसेज कर देती।


होली आ ही गई पर कृष्ण वृन्दावन नहीं पहुंच पा रहे थे। महारास का समय हो रहा था। हर गोपी चाह रही थी कि कृष्ण उसके साथ हो।


एकाएक सारी गोपियों के मोबाइल पर मैसेज और फोटो आया उसमें कृष्ण उसके साथ नाच रहे थे। उसे देख कर हर गोपी के आनन्दाश्रु बह उठे, कृष्ण हमेशा उनके साथ हैं और हर गोपी ने वह तस्वीर दूसरे से छिपा ली।
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