Thursday, 21 January 2016

खेल और खिलाड़ी

दिल्ली आने के बाद से पहिली बार अपना वास्ता क्रिकेट से पड़ा। वास्ता भी ऐसा कि अब तो सोच लिया है क्रिकेट के खिलाड़ी दिल्ली मे तो हम दिल्ली से बाहर। टीम तो ग्यारह की कोटला मैदान में खेली परन्तु खिलाड़ी पूरी दिल्ली ही नजर आयी।


क्या बड़े क्या बूढ़े या बच्चे सब का बस चले तो पर सड़क दफ्तर कुछ भी हो उसे ही क्रिकेट का मैदान बना लें। क्या ही जोश व्याप्त था कि स्कोर पूछने वाले हर जगह आपको मौजूद मिलेंगे, इस स्कोर ही अकेले ने हमें इतना तंग किया कि हम इससे बचने की राह ही निकालने लगे।


मैच का पहिला दनि था। हम इतमीनान स बस में चढ़े दफ्तर की ओर पत्रिका पढ़ने हुए जा रहे थे। खचाखच भरी बस में बोल रहे व्यक्तियों की आवाज ऐसी लग रही थी मानो हजारों झीगुर आवाज कर रहे है। कभी लारी कप्तान फला, कभी गावस्कर या कभी विश्वनाथ कभी तेंदुलकर कुछ इसी किस्म के शब्द कानों में टकरा रहे थे। सोचा, होंगे कोई नेवी के कैप्टन जो तेज दौड़ती लारी के नीचे आ गये होंगे।



फिर से पत्रिका में ध्यान लगाया तो लगा जैसे दो बन्दर बड़ी तेजी से पास ही गुर्रा रह हो देखा, दो सज्जन बहस कर रहे थे। एक कह रहा था, अरे यार तुम मानोगे नहीं, अब तक उमरीगर ही सबसे आगे रहे हैं। वो अपने जमीन को ले आये।


दूसरा बोला, मैं कैसे मान लूँ, हजारे ने वह सिक्का जमाया था कि बस।
बस तो राजनीति लड़ाने का अड्डा है ही पर हमारी समझ में ये दोनों नाम नहीं आये। अभी तक इन दोनों के नाम कोई मंत्री या नेता तो सुना ही परन्तु तभी हमारे बगल में बैठे सज्जन उन दोनों के बीच में कूद पड़े, हां साहब यह बात तो है क्रिकेट के मैदान में अब तक रन तो सबसे ज्यादा तेंदुलकर ने ही बनाये है।



उसने ये बाक्य कहे और हमने अपना सिर पीट लिया अपनी अकल के दिवालिये पन के लिये। तो यह सब बहस कासार क्रिकेट था। अब पटौदी और लारी का रहस्य भी समझ में आ गया था।


पेपरवेट ने तो इतनी जोर की उछाल मारी थी कि वह सीधे दीवार पर लगी एक बहुमूल्य पेंटिंग से टकराया और उसके छक्के उड़ गये। हालांकि क्रिकेट के मैदान में अभ एक भी छक्का नही लग पाया था। जिस समय चाय की छुट्टी हुई उस समय मेज की आधी वस्तुओं की भी छुट्टी हो चुकी थी।


इतवार का दिन था हमने सोचा लाओ आज क्रिकेट का मैच ही देखा जाय। पता नहीं उस दिन किस के ग्रहों ने जोर मारा कि खेल खूब जमा। पास बैठे मौलवी जी बार-बार पान मुंह में ठूंसते और खिलाड़ी के आउट होने पर पिच-पिच कर आस-पास की जमीन को ठोस बना देते थे।


बीच-बीच में भरे मुंह से क्रिकेट की हिस्ट्री सुनते जा रहे थे, जिससे उनके मुंह से पीक नहीं फूल झड़ झड़ कर हमारे स्वेटर, बांह पेन्ट की शोभा बढ़ा रहे थे।

खेल और खिलाड़ी भाग 2

खेल और खिलाड़ी भाग 2

रास्ते में एक स्थान पर भीड़ लगी थी बस को रुकना पड़ा। मालुम हुआ कि एक लड़की को जाते हुए एक लड़के ने ओ मेरी रानी ले जा छल्ला निशानी। कहाकि उसने अपनी सैडिल के छाप की निशानी उसके सिर पर मार दी। लड़के की किस्मत खराब कि उस लड़की का नाम रानी ही था।


साथ ही आसपास के व्यक्तियों ने अपनी हथेलियों का मैल बहती गंगा में धोकर छुड़ाया। मन ही मन घटना का आनन्द लेते हुए दोस्तों को सुनाने की उत्सुकता में दफ्तर पहूँचे तो देखा आधे से ज्यादा लोग गायब है ओर बाकी बचे लोग एक ट्रांजिस्टर के चारों ओर घेरा लगाये हुए है।


उस घेरे में जाकर जो मैंने दास्तान सुनानी चाही कि सिर पर लट्ठ सा पड़ा, अबे चुप हो जा, बोर मत कर, सुनने दे, कहां मैच और कहां हमारी दास्तान मन मार कर चुप हो गये।


बाकी के लोगों बारे में जानने पहूँचे तो मालुम हुआ पांच छः की तो उस दिन एक साथ नानी मर गयी थी बिशन जो अभी कुंवारा ही था के लड़का हुआ था।


किसी की बीबी की तबियत खराब थीतो किसी को कुछ। यह तो बाद में मालुम पड़ा कि यह बस हुआ फिरोजशाह कोटला मैदान में था। उस दिन दफ्तर में काम तो क्या किसी ने किया होगा, वैसे और रोज ही कौन सा काम करते थे, पर उस दिन सबका मन यही था काश वह दफ्तर ही क्रिकेट के मैदान पर लगा होता। साहब के आ जाने पर सब अपनी सीट पर तो चले गये।


परन्तु कान सुरेन्द्र के एक दम धीमे बजते ट्रांजिस्टर पर ही थे। सुनने में असफल टुकुर-टुकुर सुरेन्द्र का ही मुंह देखते रह जाते। सुरेन्द्र के पास इस समय मानों कारूँ का खजाना हो। स्कोर ऐसे बताता कि लगता गरीबों को खजाना लुटा रहा है।


जरूरी काम के साहब के दफ्तर में गया तो सुना मोबाइल पर साहब कह रहे है। या कहा! रमन्ना के चार विकेट ले लिये। वे इतने खुश थे जैसे खुद ही मैदान मारा हो।


घर पहुंचा तो देखा टीनू, विक्की, रीमा तीनों टीवी को घेर जोर जोर से क्रिकेट देख सुन रहे है। अनदेखा करके अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था कि ऐसा लगा कि घर में भूचाल आ गया है। पलट कर झांका तो विक्की के तीन चार दोस्त और आ गये थे।


सब लोग चिल्ला रहे थे आल आउट,आल आउट का शोर ऐसा लग रहा था और खुश भी ऐसे हो रहे थे मानों दिल्ली में इनके नाम मकान ऐलाट हो गया हो। मन में डर लग रहा  जैसे तैसे यह जर्जर मकान मिला है कहीं इनके उछलने से फर्श ही न नीचे धसक जाय।


कपड़े बदल कर हम भी वहीं बैठ गये और उत्सुकता दिखाने लगे। कहीं बच्चों के मन में यह नहीं आ जाय कि आप दकियानूसी है। गंवार है अब तक का अनुभव मुझे अच्डी तरह से बता चुका था कि स्कोर पूछना अपने ज्ञान को विस्तार देगा और बताना ज्ञान का प्रदर्शन हैं दिलचस्पी दिखाना अपने को आधुनिक बनाना।



आस्ट्रेलिया की टीम आउट हुई साथ में हमारा दिमाग भी आउट था। हमारे ही सामने ही मेंज पर इनते मुक्के पड़े थे कि बीच बीच में पी जाने वाली चाय के रूप तश्तरियों में से दो तश्तरियों बेबा हो चुकी थी। उधर इंडिया का कोई खिलाड़ी चैका मारता इधर मेज पर पड़ी चीजें भी चैका मारने के लिस बेताब हो जाती थी।

खेल और खिलाड़ी भाग 3

रास्ते में एक स्थान पर भीड़ लगी थी बस को रुकना पड़ा। मालुम हुआ कि एक लड़की को जाते हुए एक लड़के ने ओ मेरी रानी ले जा छल्ला निशानी। कहाकि उसने अपनी सैडिल के छाप की निशानी उसके सिर पर मार दी। लड़के की किस्मत खराब कि उस लड़की का नाम रानी ही था।


साथ ही आसपास के व्यक्तियों ने अपनी हथेलियों का मैल बहती गंगा में धोकर छुड़ाया। मन ही मन घटना का आनन्द लेते हुए दोस्तों को सुनाने की उत्सुकता में दफ्तर पहूँचे तो देखा आधे से ज्यादा लोग गायब है ओर बाकी बचे लोग एक ट्रांजिस्टर के चारों ओर घेरा लगाये हुए है।


उस घेरे में जाकर जो मैंने दास्तान सुनानी चाही कि सिर पर लट्ठ सा पड़ा, अबे चुप हो जा, बोर मत कर, सुनने दे, कहां मैच और कहां हमारी दास्तान मन मार कर चुप हो गये।


बाकी के लोगों बारे में जानने पहूँचे तो मालुम हुआ पांच छः की तो उस दिन एक साथ नानी मर गयी थी बिशन जो अभी कुंवारा ही था के लड़का हुआ था।


किसी की बीबी की तबियत खराब थीतो किसी को कुछ। यह तो बाद में मालुम पड़ा कि यह बस हुआ फिरोजशाह कोटला मैदान में था। उस दिन दफ्तर में काम तो क्या किसी ने किया होगा, वैसे और रोज ही कौन सा काम करते थे, पर उस दिन सबका मन यही था काश वह दफ्तर ही क्रिकेट के मैदान पर लगा होता। साहब के आ जाने पर सब अपनी सीट पर तो चले गये।


परन्तु कान सुरेन्द्र के एक दम धीमे बजते ट्रांजिस्टर पर ही थे। सुनने में असफल टुकुर-टुकुर सुरेन्द्र का ही मुंह देखते रह जाते। सुरेन्द्र के पास इस समय मानों कारूँ का खजाना हो। स्कोर ऐसे बताता कि लगता गरीबों को खजाना लुटा रहा है।


जरूरी काम के साहब के दफ्तर में गया तो सुना मोबाइल पर साहब कह रहे है। या कहा! रमन्ना के चार विकेट ले लिये। वे इतने खुश थे जैसे खुद ही मैदान मारा हो।


घर पहुंचा तो देखा टीनू, विक्की, रीमा तीनों टीवी को घेर जोर जोर से क्रिकेट देख सुन रहे है। अनदेखा करके अपने कमरे में कपड़े बदल रहा था कि ऐसा लगा कि घर में भूचाल आ गया है। पलट कर झांका तो विक्की के तीन चार दोस्त और आ गये थे।


सब लोग चिल्ला रहे थे आल आउट,आल आउट का शोर ऐसा लग रहा था और खुश भी ऐसे हो रहे थे मानों दिल्ली में इनके नाम मकान ऐलाट हो गया हो। मन में डर लग रहा  जैसे तैसे यह जर्जर मकान मिला है कहीं इनके उछलने से फर्श ही न नीचे धसक जाय।


कपड़े बदल कर हम भी वहीं बैठ गये और उत्सुकता दिखाने लगे। कहीं बच्चों के मन में यह नहीं आ जाय कि आप दकियानूसी है। गंवार है अब तक का अनुभव मुझे अच्डी तरह से बता चुका था कि स्कोर पूछना अपने ज्ञान को विस्तार देगा और बताना ज्ञान का प्रदर्शन हैं दिलचस्पी दिखाना अपने को आधुनिक बनाना।



आस्ट्रेलिया की टीम आउट हुई साथ में हमारा दिमाग भी आउट था। हमारे ही सामने ही मेंज पर इनते मुक्के पड़े थे कि बीच बीच में पी जाने वाली चाय के रूप तश्तरियों में से दो तश्तरियों बेबा हो चुकी थी। उधर इंडिया का कोई खिलाड़ी चैका मारता इधर मेज पर पड़ी चीजें भी चैका मारने के लिस बेताब हो जाती थी।

Wednesday, 20 January 2016

बचपन की सांस्कृतिक यात्रा भाग 6

मैने पहले भी लिखा है कि हमारा घर कुछ ऐसे स्थान पर था जहां से हर मेला तमाशा जुलूस शोभायात्रा जरूर निकलती या आस पास ही खेली जाती थी। नरसिंह लीला वैषाख त्रयोदषी की रात को प्रारम्भ होती और चतुर्दषी की भोर को समाप्त होती। हमारे घर के पास ही है सतघडा वहां एक बडा तालाब कहते है उसके अंदर सात बडे घडो मे भर धन डूबा हुआ है मथुरा मे कई बडे बडे तालाब है उनके चारो ओर सीढीयां और पत्थर की इमारत बनी हुईं हैं|


यहां कई बार गहराई पाने की कोशीश की गई बाद मे उन पर बडी जाली लगा दी गई। उसके बाहर ही बडा सा चबूतरा था वहीं नरसिंह भगवान का तख्त सजता पहले नरसिंह भगवान की शोभायात्रा निकलती बडे़ बडे़ झांझ झप की टंकार के बीच सिंह का विशालकाय मुखौटा लगाये रंग विरंगी गोटे लगी फ्रिल की पोशाक ढीला पाजामा हाथ मे मोटे मोटे कडे़ उगलियो मे बडी बडी अंगूठियां उगलियो में बध नखा भयंकर रूप और तेज झमाझम युद्व का सा नृत्य स्वरूप बार बार उतरता घूम घूमके दाव पेच दिखाता और सिंहासन पर बैठ जाता यात्रा चल पड़ती


पीछे खडे दो व्यक्ति तेजी पखा झलते क्योकि मुखौटा करीब 30 सेर का होता था चंदन की लकडी का बना मुखौटा 40 हाथ की घोती से बंधा रहता अप्रैल माह गरमी का प्रारम्भ होजाता था चारो ओर रोषनी इसिलिये स्वरूप पर तेजी से पंखा झला जाता बडा रोमांचित करती थी वह लीला स्वरूप दोना घुटनो पर हाथ रख इधर उधर तेजी से झूमता।  अन्य स्वरूप निकलते वे थे योगिनी षिव शत्रुहन ब्रहमा आदि के। सतघडा शोभायात्रा पहुँचती हमसब वहां पहुच जाते और स्टेज पर बिछे चादर पर हमारे बैठने का स्थान था सामने मकान के बडे चबूतरे पर  सब लीला खेली जाती ।सबसे पहले शांत सौम्य बृहमा जी का स्वरूप आता पूरी गली मे घूमता हाथ से सबको रूक रूक कर आषीर्वाद देता फिर हिरणाक्षय का वध करने बराह आते लवणा सुर आता हा हा करते शत्रुधन और लवणासुर मं युद्व होता योगिनी और लांगुरा का नृत्य होता षिव महिषासुर का वध करते इस प्रकार बहुत देर तक लीला चलती रहती शायद ही पूरी लीला देखी तो हां सुबह मां के साथ जाकर नरसिंह की आरती मं भाग लिया था तब ही वह लीला देखी जब नरसिंह जाधपर लेटे हिरणयकष्यप का पेट फाडने का अभिनय करते साथ ही जयकारे के साथ आरम्भ होता जोर जोर से झाप झाओ का नगडिया का बजना झमाक झाझाडका आयी देवी ताडका


       माँ पतिंग, माँ पतिंग       झै झै  नरसिंह
       रौद्ररस में बाले जाने बाले ये बोल बातावरण में जोष सा भर देते थे। हम डर से माँ का पल्लू पकडकर उनसे चिपक जाते उनके पीछे से झाकते थे। नर सिंह का बड़ा विषाल शेर मुखी चेहरा ही हमे डराने के लिये काफी था लेकिन उनका झूम झूम कर हुंकार लेना हमारी धड़कनो को बढ़ा देता था। जेर जोर से धमधम सी करते पांव पटखते घूमते और फिर खुले स्थान पर तेजी से घूम घूम कर युद्व नाचते घूमते वो भीड़ मे घुस जाते तो जैसे भीड़ फट जाती वे जब मुद्राऐ बनाते बच्चे कसकर बड़ो को पकड़ लेते


 चैत्र नवमी को वैसे तो राम जनम मनाया जाता पर हमारे लिये मुख्य आकर्षण होता दुर्वासा का मंदिर। साल में एक दिन दुर्वासा मंदिर पर मेला लगता और उस दिन उनकी पूजा करना अनिवार्य सा था दुर्वासा का मंदिर यमुना पार करीब एक मील पगडंडियों पार करके ऊॅचाई पर सीढियां चढकर बना था छोटा सा मंदिर था शायद पूरे वर्ष  वहां शयद ही कोई जाता था पर उस दिन वहां भी जंगल में मंगल हो जाता। जैसाकि अन्य अवसरों पर होता था 


चाचा ताऊ के परिवार स्वामी घाट से नाव मे बैठते और हम सती घाट से करीब करीब साथ साथ पार पहुँचते उन दिनो छोटी छोटी लाल बेरी और कतारे मिलने शुरू जो जाते थे वे हमारे रास्ते के साथी होते और चाची ताई के बच्चे आपस मे छीनने झपटने बोलते और हंसते खिलखिलाते भागते दौडते एक एक झाडी मे घुसते मंदिर तक पहुचते। मंदिर जाने का मुख्य कारण नाव मे होते हुए खंतेा मे एक तरह से पिंकनिक मनाना।



       सूपर्णखां की नाक कटना देखना हमे बहुत प्रिय था घाघरा चोली और चमकदार दुपटटा पहनकर सूपर्णखां पूरे मैदान का भटक भटक कर चक्कर लगाती राम लक्ष्मण और सीता भी वन के कपडों मे घूमते फिर प्रारम्भ होता सूपर्ण खा और राम लक्ष्मण संवाद कभी गाने मे कभी वाक्यो मे और जब लक्ष्मण नाक काटते कटर नाक लेकर सूपर्ण खां चक्कर लगाती बडा सुखद क्षण होता था हू हू करती लाल लाल कटरी नाक कभी छिपाती कभी दिखाती।



       ताडका वध की लीला भी  असकुंडा बाजार मे होती थी। वह स्थान भी हमारे घर से नजदीक ही था एक किनारे पर ताडका की विषाल पुतला खडा किया जाता राम और लक्ष्मण हाथी पर आते या घोडो पर आते फिर ताडका बनी चरित्र छम छम करते भयनक मुखौटा लगाये बडी सी जीभ निकालकर युद्व का अभिनय करती। सभी आसुरी चरित्रो की पोषाक काले कपडे पर चैड़ा गोटा लगाकर बनाइ्र हुई होती थी और राम लक्ष्मण की सुनहली पीली। झम झम झम झम युद्व होता ताडका बडी तेजी से घूमती लपकती और अंत मे राम का तीर लगता वह जमीन मे छटपटाती और उधर पुतले मे आग लगा दी जाती। पुतला भी बडा भयानक बनाया जाता था चेहरा कम से कम पांच फुट लम्बा चैडा होता चैडी


चैडी नाक उसमे नथ कानो मे थाल जितने बडे बडे गोल कुंडने बडी बडी आखों। हंसता हुआ चेहरा जिसमे तिकोने कागज के दात बनाये जाते। फिर विजय जुलुस निकलता।

बचपन की सांस्कृतिक यात्रा 
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